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जन्मदिन विशेष: आज भी लखनऊ में बहती है अटल जी के भाषणों की हवा

bday 4 जन्मदिन विशेष: आज भी लखनऊ में बहती है अटल जी के भाषणों की हवा

नई दिल्ली। भारत रत्न से सम्मानित और भारत के बेहतरीन प्रधानमंत्रियों में से एक अटल बिहारी वाजपेयी का आज 93वां जन्मदिवस है। अटल बिहारी वाजपेयी की जितनी तारिफ की जाए उतनी ही कम है। भाषण की अनोखी अदा, मोहक मुस्कान, कविताओं से सबका दिल जीतने वाले अटल जी दो बार भारत के भावी प्रधानमंत्री रह चुके हैं। पहली बार इन्होंने प्रधानमंत्री के तौर पर 16 मई 1996 को पदभार संभाला था, लेकिन इस पद पर वो मात्र 13 दिन तक की रह सके। इसके बाद इन्होंने 19 मार्च 1998 से लेकर 22 मई 2004 तक प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाली। अटल जी का लखनऊ से बहुत ही खास रिश्ता रहा है। वो वहां से लगातार पांच बार सांसद रहे। लखनऊ में चुनाव के दौरान दिए उनके भाषण बीजेपी के लिए जीत की हवा बहा देते थे।

वैसे तो लखनऊ अटल जा की जन्मभूमि नहीं है, लेकिन लखनऊ को उन्होंने अपनी कर्मभूमि माना है। भले ही मुसलमान बीजेपी से से नाराज रहे, लेकिन उनके दिल में अटल जी के खिलाफ कोई गिला-शिखवा कभी नहीं रहा। तभी तो जिस लखनऊ में 25 फीसदी मुस्लिम आबादी हो, उस लखनऊ से उनका सांसद बनना अपने आप में ही कमाल की बात है। साल 2007 के विधानसभा चुनाव से उनका मत नहीं पड़ा। लखनऊ में अटल जी की अंतिम सभा 25 अप्रैल 2007 को कपूरथला चौराहे पर बीजेपी उम्मीदवारों के समर्थन में हुई थी। इसके बाद खराब स्वास्थ्य के चलते उनका लखनऊ से नाता टूट गया और साल 2009 का लोकसभा चुनाव उन्होंने नहीं लड़ा और हमेशा के लिए राजनीति से किनारा कर लिया। bday 4 जन्मदिन विशेष: आज भी लखनऊ में बहती है अटल जी के भाषणों की हवा

अटल जी का जन्म 25 दिसंबर 1925 को गवालियर में हुआ था। वहीं लखनऊ से अटल बिहारी वाजपेयी साल 1991, 1996, 1998, 1999, 2004 में सांसद रहे। अटल जी अपनी भाषण शैली से कार्यकर्ताओं में नई जान फूंक देते थे। बात साल 1962 की है, जब अटल जी ने बलरामपुर से जनसंघ की टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ा और हार गए। उनकी हार से जनसंघ के सभी कार्यकर्ता बुरी तरह से टूट गए, लेकिन अटल जी तो अटल जी है। जब उन्होंने कार्यकर्ताओं का मायुस चेहरा देखा तो उन्होंने कार्यकर्ताओं से कहा कि क्यों मुंह लटका कर खड़े हो, निराश मत हो फिर लडूंगा और जीतूंगा।

इस दौरान जब कार्यकर्ता उनसे मिलने पहुंचे, तो पहले तो वह गुस्सा हुए। डांटते हुए कहा कि थोड़ी और मेहनत करते तो जीत जाते। फिर बोले, अब क्यूं मुंह लटकाकर बैठे हो। उदास न हो, मैं फिर आऊंगा, फिर लड़ूंगा। आज भी  कई कार्यकर्ताओं को याद है कि जब अटल जी पैदल ही टहलते हुए उनके घर पर आ जाते थे। जब खाना खाते तो वे खाने के लिए एक साथ बैठने की जिद करते थे। आम तौर पर वो चटाई पर सोते थे, उन्हें काला नमक चावल बहुत पसंद था। संसद तक अटल बिहारी वाजपेयी को पहुंचाने का श्रेय गोंडा को ही हासिल है। वे पहली बार बलरामपुर संसदीय सीट से 1957 में चुनाव जीते थे। वर्ष 1967 में भी वह बलरामपुर से ही सांसद चुने गए थे। हालांकि अब अलग जिला बना बलरामपुर उस वक्त गोंडा का ही हिस्सा था।

 

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