निर्मल उप्रेती,संवाददाता,अल्मोड़ा
हिमालयी राज्य उत्तराखंड जैव विविधता के लिए मशहूर माना जाता है। यहां कई दुर्लभ प्रकार की वनस्पतियां पाई जाती है। जिनसे कई प्रकार की दवाइयां तैयार होती है। लेकिन वैज्ञानिकों ने अब कई प्रकार के वनस्पतियों के अस्तिव पर खतरा बताया हैं।
‘भविष्य में भुगतने पड़ सकते हैं दुष्परिणाम’
उत्तराखंड में अतीस, वन ककड़ी, कुटकी, वन हल्दी, थुनेर, मीठा विष, जटामासी समेत कई दुर्लभ वनस्पतियों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। अनियंत्रित दोहन के कारण यह स्थिति उत्पन्न हुई है। वैश्वीकरण ने जिस तरह उत्तराखंड की जैव विविधता को नुकसान पहुंचाया है, यदि यह नहीं रुका तो भविष्य में इसके भयानक दुष्परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
456 प्रजातियां का अस्तित्व खतरे में
गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान कोसी-कटारमल अल्मोड़ा के जैव विविधता संरक्षण एवं प्रबंधन विभाग के विभागाध्यक्ष और वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. आईडी भट्ट के अनुसार हिमालयी राज्य में कुल 8 हजार प्रकार की वनस्पतियां हैं। जिनमें से 456 प्रजातियां का अस्तित्व अब खतरे में आ गया है।
बात अगर उत्तराखंड की करें तो यहां 4 हज़ार प्रकार की वनस्पतिया हैं जिनमे से 701 प्रजातियां अब लुप्त होने के कगार पर हैं। यह सभी मेडिसिन प्लांट हैं। इनमें अतीस, वन ककड़ी, गंदरैणी, कुटकी, वन हल्दी, थुनेर, मीठा विष, जटामासी समेत कई दुर्लभ किस्म की वनस्पतियां बहुतायत में मौजूद हैं, जिनका किसी न किसी रूप में औषधीय महत्व है।
‘वनस्पतियों के अस्तित्व पर संकट’
लंबे समय से बड़े पैमाने पर इन वनस्पतियों का अनियंत्रित दोहन हो रहा है। इस कारण इन वनस्पतियों के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है। उन्होंने कहा कि जैव विविधता को पहुंच रहे नुकसान के कारण जंगलों में जंगली जानवरों के प्राकृतिक आवास नष्ट हो रहे हैं। उन्हें जंगलों में खाने को कुछ नहीं मिल रहा है। इस कारण जानवर आबादी की ओर रुख कर रहे हैं। दुर्लभ वनस्पतियों की ऐसी प्रजातियों को बचाने और संवर्धन करने का काम वन प्रभागों के जरिये हो सकता है।
‘स्कूलों में बनाने चाहिए हर्बल गार्डन’
वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. आईडी भट्ट ने कहा कि जैव विविधता को बचाने के लिए स्कूलों में हर्बल गार्डन बनाए जाने चाहिए। साथ ही किसानों को औषधीय उत्पादों की खेती करने के लिए प्रोत्साहित करना होगा।