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समझे क्या है आत्मनिर्भरता में स्थानीय अर्थव्यवस्था का महत्व

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लखनऊ: भारत में लोकल इकोनॉमी उत्पादन तथा रोजगार के अवसर बढ़ाने में कारगर साबित हो सकती है।  ग्रामीण अर्थव्यवस्था में स्थानीय उत्पादन और रोजगार की असीम संभावनाएं है। यह प्राचीन ग्रामीण भारतीय संस्कृति की परंपरा में निहित है कि एक ग्रामीण कृषक २७ परिवारों का भरण पोषण करता था। एक किसान अपनी उपज को कई हिस्सों में बाटकर उन वर्गों के मध्य वितरित करता था जिनकी वह सेवाएं लेता था । इस वर्ग में नाई, धोबी, कहार, कुम्हार, बरई, भूज , लुहार इत्यादि वर्ग सम्मिलित थे जो अपने कर्म विशिष्टता के आधार पर सेवाएं प्रदान किया करते थे और पूरी ग्रामीण अर्थव्यवस्था का संचालन सुचारू रूप से चलता था।

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आत्मनिर्भरता बढ़ेगी

अर्थव्यवस्था वस्तु विनमय बाजार पर आधारित थी जिसे हम इस समय नहीं अपना सकते है । इस मॉडल को हम एक आधार मॉडल मान कर इसे रूपांतरित करके आत्मनिर्भरता के दृष्टिकोण से देखे तो इसे हम व्यापक स्तर पर अपना सकते हैं । जिस व्यक्ति की जिस वस्तु या सेवा के उत्पादन कौशल में विशिष्टता हो तथा जिस क्षेत्र की जिस वस्तु विशेष उत्पादन में विशेषीकरण हो उसको प्रोत्साहित करें, उस उत्पादन की स्थानीय स्तर पर, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ब्रांडिंग करे ,इन वस्तुओं एवं सेवाओं के लिए मांग एवं पूर्ति शृंखला का विधिवत निस्पादन करें तो इसके माध्यम से स्थानीय अर्थव्यवस्था अपने आस पास के लोगों की रोजगार की जरूरतें को भी पूरा करेंगी और अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर भी बनाएगी।

स्थानीय अर्थव्यवस्था के एक उदाहरण के रूप में प्रयागराज जिले को हम ले सकते हैं। प्रयागराज जिले में मूँज स्थानीय स्तर पे प्रचुर मात्रा में पाया जाता है और एक जिला एक उत्पाद में सम्मिलित भी किया गया है । मूँज द्वारा निर्मित उत्पाद प्लास्टिक का एक बेहतर विकल्प हो सकता है

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इसके लाभ को निम्न बिंदुओं में देखा जा सकता है
  • इससे स्थानीय स्तर पर रोज़गार में वृद्धि होगी।
  • यह पर्यावरण अनुकूल होगा ।उपयोगानुकूल न होने की स्थिति में इसके विनष्ट होने में कम समय लगेगा।
  • इससे आय में वृद्धि होगी विशेषतः महिलाओं की आय में।
  • इसकी लागत कम है ।
  • इसमें लगने वाले कच्चे माल की आपूर्ति स्थानीय स्तर पर ही हो जाती है।
  • इसके विकास के लिए हमें निम्न उपायों को अपनाना श्रेयस्कर होगा –
  • इसकी ब्रांडिंग की जाये।
  • बिचौलियों का उन्मूलन किया जाए ताकि लोगों को उनके उत्पाद का उचित पारितोषिक प्राप्त हो सके।
  • सरकार इसके लिए बाजार उपलब्ध कराए ।
  • प्रदर्शनियों एवं मेलों के माध्यम से इसे प्रचारित किया जा सकता है ।

उपरोक्त उपायों के माध्यम से हम मूँज निर्मित उत्पाद को एक बाजार उपलब्ध करा सकते है और इसके माध्यम से स्थानीय स्तर पर रोजगार और आय का सृजन कर सकते हैं। ऐसा नहीं है की यह कोई नवीन वस्तु है जिसे हमें अपनाना है यह १०-१५ वर्षों पूर्व हमारे ग्रामीण जीवन का अभिन्न अंग थी जैसे-दादी व नानी की पूजा की टोकरी ,घर में बच्चों व बड़ों के किसी भी सूखी चीज को खाने का पात्र ,बेटी की विदाई में दी जाने वाली आटें व चावल की टोकरी आदि।

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कई छोटे रोजगार भी अर्थ व्यवस्था में सहायक

आवश्यकता बस इस बात है कि हम इस तरह के उत्पादों को पुनः अपने दैनिक जीवन में स्थान दे । इस प्रकार की वस्तुओं को अपने दैनिक जीवन में स्थान देकर हम स्थानीय अर्थव्यवस्था के विकास में अपना योगदान कर सकते है ।इसी प्रकार प्रतापगढ़ का आँवला ,मिर्जापुर की चीनीमिट्टी आदि भी स्थानीय अर्थव्यवस्था के विकास में योगदान दे सकते हैं ।

तकनीकी कौशल की अत्यंत कमी है

भारत के पास जो श्रमिक है उसके लिए सबसे बड़ी समस्या है कि उसके पास तकनीकी कौशल की अत्यंत कमी है , ऐसे में जब इस प्रकार का व्यापक संकट आन पड़ा है तो स्थानीयता को बढ़ावा देने के लिए हम उनके पारम्परिक कौशल का प्रयोग कर सकते है । उनके पारम्परिक कौशल पर आधारित उत्पादों को बढ़ावा दिया जा सकता है जैसे कुम्हार से कुल्हड़ बनवा कर उसके पूरे परिवार को बड़े पैमाने पर रोजगार दिया जा सकता है । कुल्हड़ के प्रयोग को सभी सरकारी व निजी संस्थानों तथा स्थानों पर प्रयोग के लिए आवश्यक कर दिया जाए । ये तो पारम्परिक कौशल का एक मात्र उदाहरण है ऐसे कई अन्य पारम्परिक कौशल हैं जिनके द्वारा स्थानीय स्तर पर उत्पादन किया जा सकता है, रोजगार के अवसर बढ़ाए जा सकते है ।

सड़क से बिजली तक का ढांचा तैयार होगा

स्थानीय उत्पादन के विकास के लिए कुछ महत्वपूर्ण घटकों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है ,ताकि उन स्थानों की आर्थिक क्षमता को मापा जा सके ।इसके लिए कुछ पैमाने हम बना सकते है जैसे कि बाजार तक उसकी पहुंच कितनी है, मानव पूंजी के रूप में वहा किस प्रकार के कौशल को बढ़ावा दिया जा सकता है, सबसे महत्त्वपूर्ण पैमाना वहा का आधारभूत ढांचा कैसा है जिसमें सड़क, बिजली और पानी प्रमुख रूप से है ,प्राकृतिक उत्पादन या फिर कौशल युक्त उत्पादन में उस क्षेत्र की प्रमुख विशिष्टता ये सब पैमाने उसके स्थानीय उत्पाद को बढ़ावा देने में उसकी मांग बढ़ाने में सहायक सिद्ध हो सकते है। इसके साथ ही सरकार के द्वारा एक उचित प्लेटफार्म और सहयोग प्रदान किया जाए ताकि उपयुक्त रूप से इसकी मार्केटिंग व ब्रांडिंग हो सके । इसके लिए स्थानीय उत्पादों को भी ई -कॉमर्स का प्लेटफार्म प्रदान किया जाए ।

वैश्विक स्तर पर मजबूत होगा भारत

इस समय जब समस्त विश्व महामारी की चपेट में है और सभी प्रकार के आयात और निर्यात पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ा है तो ऐसे में हमें इसे भी एक अवसर के रूप में लेना चाहिये । अब आवश्यकता इस बात की है कि हम अपनी आयात – प्रतिस्थापन नीति को बढ़ावा दे , कम से कम आयात करे । इस प्रकार स्थानीय अर्थव्यवस्था के आधार पर जो आत्म निर्भरता हमें प्राप्त होगी वो लंबे समय तक सतत रूप से चलेगी और वैश्विक स्तर पर भारत को मजबूती प्रदान करेगी।इस समय जब समस्त विश्व में में नेतृत्वक्षमता का अभाव दिख रहा है तो ऐसे में अपनी अर्थव्यवस्था के माध्यम से आत्म निर्भर बन कर भारत वैश्विक नेतृत्व में अग्रणी राष्ट्र बन सकता है।

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