नई दिल्ली। कश्मीर के अलगाववादियों की पाकिस्तान से बातचीत का विरोध करने वाली केन्द्र सरकार ने अब यू-टर्न ले लिया है। भारत सरकार ने कहा है कि उसे अलगाववादी हुर्रियत नेताओं के पाकिस्तान से बातचीत पर कोई एतराज नहीं है। सरकार का कहना है कि चूंकि कश्मीर के नेता भी भारतीय नागरिक हैं और इसके चलते वे किसी भी देश के प्रतिनिधियों से वार्ता कर सकते हैं। पिछले हफ्ते विदेश मंत्रालय ने संसद में एक सवाल के लिखित जवाब में ये बात कही थी।
विदेश मंत्रालय के जवाब के मुताबिक विदेश मामलों के राज्यमंत्री वीके सिंह ने कहा,जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। इस लिहाज से कश्मीर के नेता भारतीय नागरिक हैं। इसलिए कश्मीर के नेता किसी भी देश के प्रतिनिधियों से बातचीत कर सकते हैं। हालांकि सरकार ने ये भी साफ किया है कि भारत-पाकिस्तान की बातचीत में किसी थर्ड पार्टी की भूमिका नहीं होगी। भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय संवाद में किसी भी तीसरे पक्ष की भूमिका नहीं होगी। भारत इस बात को हमेशा कायम रखेगा। दोनों देशों के बीच बातचीत शिमला समझौते और लाहौर डिक्लेरेशन के मुताबिक ही होगी। भारत ने पाकिस्तान को एक बार फिर जता दिया है कि वह हमारे आतंरिक मामलों में दखलअंदाजी न करे।
2014 में सरकार ने एक शर्त लगाते हुए पाकिस्तान के साथ विदेश सचिव स्तर की वार्ता कैंसिल कर दी थी। इसकी वजह भारत में पाकिस्तान के हाई कमिश्नर अब्दुल बासित ने हुर्रियत नेताओं को वार्ता का न्योता दिया था। 2001 में आगरा शिखर वार्ता के बाद से पाकिस्तानी नेता और वरिष्ठ अधिकारी हुर्रियत नेताओं से लगातार मिलते रहे हैं। अगस्त 2015 में पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को भारत आना था लेकिन उससे ठीक पहले दिल्ली में मौजूद पाकिस्तानी हाई कमिश्नर ने अलगाववादी नेताओं से बातचीत कर ली। इसके बाद भारत ने वार्ता कैंसिल कर दी।
प्रेस कांफ्रेंस में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने पाकिस्तान को कहा था कि भारत और अलगाववादी नेताओं से में एक को चुनना होगा। 2015 में उफा समझौते के बाद जब भारत और पाकिस्तान के बीच एनएसए लेवल की बातचीत होनी थी तब भी हुर्रियत ने अंतिम समय में बातचीत डिरेल करने की कोशिश की थी। तब सरकार ने हुर्रियत नेताओं को दिल्ली आने से साफ मना कर दिया था।