निर्मल उप्रेती, संवाददाता, अल्मोड़ा
इस कोरोना काल के दौरान मानव सेवा के कई किस्से मीडिया प्लेटफार्म पर दिखाई दिए हैं। वहीं इस वक्त आवारा पशुओं की देखभाल करने वाले कम ही दिखाई देते हैं। वो भी तब जब पिछले दो सालों से आम लोग कोरोना से संघर्ष कर रहे हैं।
मां से मिली प्रेरणा- समाजिक कार्यकर्ता
ऐसे समय में अल्मोड़ा शहर की ये महिला जो एक वकील हैं। उनका जीवन इस समय आवारा पशुओं की देखभाल और निगरानी करने में बीत रहा है। उन्होंने अपने निवास में सेल्टर हाउस बनाया है, जिसमे बेसहारा जीवों के संरक्षण में जुटा हुआ है।
वो कहती हैं कि उनको ये प्रेरणा अपनी मां से मिली है। और आज वो इन जानवरों के लिये दिन-रात जुटी रहती है उनके दर्द में सहभागी बनती हैं। उनकी आवाज पर शहर के आवारा जानवर खिंचे चले आते हैं।
‘जानवरों की सेवा में लगी हैं 6 टीमें’
राज्य सरकार द्वारा पशु आयोग सदस्य और अपने वकालत के व्यवसाय से अर्जित धन से वो पिछले 35 सालें से इन बेसहारा पशुओं-जानवरों की सुरक्षा और उनके स्वास्थ्य का भी ध्यान रखती है। उनका कहना है कि लॉकडॉउन के दौरान इनके भरण पोषण के लिये जिला अधिकारी नितिन भदौरिया द्वारा भोजन और दवाइयां का प्रबंध होता है। और इनकी देख-रेख के लिये मैं हरपल सचेत रहती हूं। इन जानवरों की सेवा में 6 टीम लगी हुई है, ताकि ये बेसहारा कुते और पशु भूखे न रहे।