मर्द को दर्द नहीं होता, इसी कहावत को सच मान कर, ता उम्र अपना दर्द छिपाता है, वो एक पुरुष होता है. भारत एक पुरुष प्रधान देश माना जाता है, लेकिन फिर भी लोग मां के प्यार को याद करते हैं लेकिन पिता के त्याग की बात कोई नहीं करता, महिला के सफलता की तारीफ होती है, लेकिन पुरुष की मेहनत की बात कोई नहीं करता. लेकिन आज का दिन उसी मेहनत और उसी त्याग को याद करने का है. आज है इंटरनेशनल मेन्स डे.
इंटरनेशनल मेन्स डे, हर साल 19 नवंबर को पुरुषों के हक में मनाया जाता है. इस दिन को मनाने का उद्देश ये दिखाना है कि किस तरह मर्द परिवार, कम्युनिटी और दुनियाभर में पॉजिटिव बदलाव ला रहे हैं. इसके अलावा इस दिन को पुरुषों से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं और उनके मुद्दों को भी उठाने के लिए मनाया जाता है.
पुरुषों को एक खास दिन की जरूरत आखिर क्यों ?
महिलाओं की तरह पुरुष भी असमानता का शिकार होते हैं. उनकी सेहत समेत असमानता और शोषण के मुद्दों को उठाने के लिए ही मनाया जाता है आज का दिन.
कैसे हुई शुरुआत?
अमेरिका के मिसौर यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर थॉमस योस्टर की कोशिशों के बाद पहली बार 7 फरवरी 1992 को अमेरिका, कनाडा और यूरोप के कुछ देशों ने पहली बार अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस का जश्न मनाया था, लेकिन साल 1995 से कई देशों ने फरवरी महीने में पुरुष दिवस मनाना बंद कर दिया.हालांकि कई देश इस दौरान अपने-अपने हिसाब से पुरुष दिवस का जश्न मनाते रहे. 1998 में त्रिनिदाद एंड टोबेगो में पहली बार 19 नवंबर को अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस मनाया गया और इसका सारा श्रेय डॉ. जीरोम तिलकसिंह को जाता है. उन्होंने इसे मनाने की पहल की और इसके लिए 19 नवंबर का दिन चुना. इसी दिन उनके देश ने पहली बार फुटबॉल विश्व कप के लिए क्वालिफाई करके देश को जोड़ने का काम किया था. उनके इस प्रयास के बाद से ही हर साल 19 नवंबर को दुनिया भर के 60 देशों में अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस मनाया जाता है और यूनेस्को भी उनके इस प्रयास की सराहना कर चुकी है.
भारत में कब हुई शुरुआत?
भारत में पहली बार 2007 में इंटरनेशनल मेन्स डे मनाया गया और इसे पुरुषों के अधिकार के लिए लड़ने वाली संस्था ‘सेव इंडियन फैमिली’ ने पहली बार मनाया था. इसके बाद ‘ऑल इंडिया मेन्स वेल्फेयर एसोसिएशन’ ने भारत सरकार से यह मांग की कि महिला विकास मंत्रालय की तरह पुरुष विकास मंत्रालय भी बनाया जाए.