नई दिल्ली। भारत ने अब तक के सबसे वजनी उपग्रह जीसैट-11 को यूरोपीय स्पेस एजेंसी के प्रक्षेपण केंद्र फ्रेंच गुयाना से अंतरिक्ष रवाना कर दिया है। सैटेलाइट का प्रक्षेपण बुधवार सुबह किया गया। इस सैटेलाइट के प्रक्षेपण से भारत ने अंतरिक्ष में ऐतिहासिक कदम रखा है। जानते हैं इस सैटेलाइन में क्या खास है और इससे भारत को क्या फायदा मिलेगा इस सैटेलाइट से देश में ब्रॉडबैंड सेवाओं को बढ़ावा मिलेगा। यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी आरियानेस्पेस का प्रक्षेपण यान आरियाने-5 इस सैटेलाइट को लेकर गया है। बता दें कि इसका वजन करीब 5854 किलोग्राम है, जिसका निर्माण इसरो ने किया है। यह इसरो निर्मित सबसे ज्यादा वजन का सैटेलाइट है।
बता दें कि जीसैट-11 अगली पीढ़ी का ‘हाई थ्रोपुट’ का संचार सैटेलाइट है, जिसका विन्यास इसरो के आई-6 के इर्द-गिर्द किया गया है। यह 15 साल से ज्यादा समय तक काम आएगा। इसे शुरू में 25 मई को प्रक्षेपित किया जाना था लेकिन अतिरिक्त तकनीकी जांच को लेकर इसके प्रक्षेपण की तारीख बदल दी गई। ये जियोस्टेशनरी सैटेलाइट पृथ्वी की सतह से 36 हजार किलोमीटर ऊपर ऑरबिट में रहेगा। सैटेलाइट इतना बड़ा है कि इसका हर सोलर पैनल चार मीटर से ज्यादा लंबा है। रिपोर्ट्स के अनुसार जीसैट-11 में 40 ऐसे ट्रांसपोंडर होंगे, जो 14 गीगाबाइट/सेकेंड तक की डेटा ट्रांसफर स्पीड के साथ हाई बैंडविथ कनेक्टिविटी दे सकते हैं।
मीडिया खबरों के मुताबिक अब तक बने सभी सैटेलाइट में ये सबसे ज़्यादा बैंडविथ साथ ले जाना वाला उपग्रह भी होगा और इससे पूरे भारत में इंटरनेट की सुविधा मिल सकेगी। यह 36,000 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थापित होगा और इसकी लागत करीब 500 करोड़ रुपये बताई जा रही है। बताया जा रहा है कि इसकी सूचनाओं के माध्यम से सूचना तकनीक के और उन्नत उपकरण बनाए जा सकेंगे। इसे शुरू में भू-समतुल्यकालिक स्थानांतरण कक्षा में रखा जाएगा। बाद में लिक्विड एपोजी मोटर की मदद से इसे भू-स्थैतिक कक्षा में स्थापित किया जाएगा।