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Independence Day 2022: आजादी के ऐसे परवाने, जिन्होंने बहुत कम उम्र में देश के लिए की जान कुर्बान

85301238 Independence Day 2022: आजादी के ऐसे परवाने, जिन्होंने बहुत कम उम्र में देश के लिए की जान कुर्बान

Independence Day 2022: देश इस 15 अगस्त को अपनी आजादी के 75 साल पूरे करेगा। ये आजादी का अमृत महोत्सव है। करीब 100 साल तक लड़ाई लड़ने के बाद 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों के चंगुल से देश आजाद हुआ था। इस संग्राम में करोड़ों देशवासी अपनी आजादी के लिए लाठियां खाईं और जान न्यौछावर की। वहीं, इनमें से कुछ ऐसे योद्धा भी थे जिन्होंने बहुत कम उम्र में देश के लिए अपनी जान कुर्बान की।

मंगल पांडे
उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवा गांव में जन्में मंगल पांडे स्वतंत्रता संग्राम के पहले हीरो हैं। मंगल पांडे के पिता का नाम दिवाकर पांडे और मां का नाम अभय रानी था। सन 1849 की बात है। तब मंगल की उम्र महज 22 साल थी। उस वक्त वह ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में शामिल हुए थे। मंगल पश्चिम बंगाल के बैरकपुर की सैनिक छावनी में 34वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री की पैदल सेना में एक सिपाही थे।

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यहां गाय और सुअर की चर्बी वाली राइफल की नई कारतूसों का इस्तेमाल शुरू हुआ। इसके चलते हिंदू और मुस्लिम सैनिकों में आक्रोश बढ़ गया। नौ फरवरी 1857 को मंगल पांडे ने गाय और सुअर की चर्बी से बनने वाले नए कारतूस के इस्तेमाल से इनकार कर दिया। इसे अंग्रेजी हुकूमत ने अनुशासनहीनता माना।

29 मार्च सन 1857 को अंग्रेज अफसर मेजर ह्यूसन मंगल पांडेय से उनकी राइफल छीनने लगे। इस दौरान मंगल पांडे ने ह्यूसन को मार डाला। इसके अलावा अंग्रेज अधिकारी लेफ्टिनेन्ट बॉब को भी मार डाला। इसी के साथ मंगल पांडे ने अंग्रेजों के खिलाफ एक जंग छेड़ दी। अंग्रेजों को मारने के चलते मंगल पांडे को आठ अप्रैल 1857 को महज 30 साल की उम्र में फांसी दे दी गई। मंगल पांडे की मौत के कुछ समय बाद प्रथम स्वतंत्रता संग्राम शुरू हो गया था। जिसे 1857 का विद्रोह कहा जाता है।

शहीद भगत सिंह : ट्रोल आर्मी का झूठ और इतिहास की सच्चाई | न्यूज़क्लिक

भगत सिंह
28 सितंबर 1907 की बात है। पंजाब के लायलपुर जिले के बंगा में किशन सिंह और विद्यावती के बेटे ने जन्म लिया। दोनों ने बेटे का नाम भगत रखा। ये वही भगत सिंह हैं, जो महज 23 साल की उम्र में देश की आजादी के खातिर खुशी-खुशी फांसी पर चढ़ गए थे।

जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह की जिंदगी पर काफी असर डाला। इसके बाद उन्होंने लाहौर के नेशनल कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर नौजवान भारत सभा की शुरुआत की और आजादी की लड़ाई में कूद पड़े। 1922 में चौरी चौरा कांड में जब महात्मा गांधी ने ग्रामीणों का साथ नहीं दिया तो भगत सिंह निराश हो गए। तब वह चंद्रशेखर आजाद के गदर दल में शामिल हो गए।

इसके बाद काकोरी कांड में राम प्रसाद बिस्मिल समेत चार क्रांतिकारियों को फांसी और 16 को आजीवन कारावास की सजा मिलने पर भगत सिंह भड़क गए। इसके बाद उन्होंने चंद्रशेखर आजाद की हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन को हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के रूप में बदला। इसका उद्देश्य आजादी के लिए नए युवाओं को तैयार करना था।

भगत सिंह ने राजगुरु के साथ मिलकर 1928 में लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक रहे अंग्रेज अधिकारी जेपी सांडर्स को मार डाला। इसके बाद भगत सिंह ने क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर नई दिल्ली स्थित ब्रिटिश भारत की तत्कालीन सेंट्रल एसेंबली के सभागार में बम फेंकते हुए क्रांतिकारी नारे लगाए थे। इसके साथ आजादी के लिए पर्चे भी लहराए थे। इसे अंजाम देने के बाद भगत सिंह भागे नहीं, बल्कि उन्होंने गिरफ्तारी दी। उनपर ‘लाहौर षड़यंत्र’ का मुकदमा चला और 23 मार्च, 1931 की रात उन्हें फांसी अंग्रेजी हुकूमत ने फांसी दे दी। उस वक्त उनकी उम्र केवल 23 साल थी।

चन्द्रशेखर आजाद : गुलामी के दौर में आजादी का मंत्र फूंकने वाला क्रांतिकारी | News on AIR

चंद्रशेखर आजाद
चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के अलीराजपुर स्थित भाबरा में हुआ था। इनका पूरा नाम चंद्रशेखर तिवारी था। लोग इन्हें आजाद कहकर भी बुलाते थे। पिता का नाम सीताराम तिवारी और मां का नाम जाग्रानी देवी था। 14 साल की उम्र में मध्य प्रदेश से आजाद बनारस आ गए। यहां एक संस्कृत पाठशाला में पढ़ाई की। यहीं पर उन्होंने कानून भंग आंदोलन में योगदान भी दिया था।

1920-21 में आजाद गांधीजी के असहयोग आंदोलन से जुड़े। बाद में क्रांतिकारी फैसले खुद से लिए। 1926 में काकोरी ट्रेन कांड, फिर वाइसराय की ट्रेन को उड़ाने का प्रयास, 1928 में लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए सॉन्डर्स पर गोलीबारी की। आजाद ने ही हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र सभा का गठन भी किया था। जब वे जेल गए थे वहां पर उन्होंने अपना नाम ‘आजाद’, पिता का नाम ‘स्वतंत्रता’ और ‘जेल’ को उनका निवास बताया था।

27 फरवरी 1931 को वह प्रयागराज के अल्फ्रेड पार्क में अपने क्रांतिकारी साथी से बातें कर रहे थे। इसी दौरान सीआईडी का एसएसपी नॉट बाबर जीप से आ पहुंचा। उसके साथ भारी संख्या में पुलिस फोर्स थी। किसी ने चंद्रशेखर आजाद की मुखबिरी कर दी थी।

चारों तरफ से आजाद को घेर लिया गया था। तब आजाद ने गोली चलाई। इसमें तीन पुलिसकर्मी मारे गए थे। जब आजाद के पास सिर्फ एक गोली बची तो उन्होंने अंग्रेजों के हाथों मरने की बजाय खुद से मौत को गले लगाना ठीक समझा। आजाद ने खुद को गोली मार ली और शहीद हो गए। जब वह शहीद हुए तब उनकी उम्र 25 साल थी।

पिता के निधन के बाद महान क्रांतिकारी शिवाराम हरि राजगुरु ने यूं बनाई पहचान

राजगुरु
हंसते-हंसते फांसी पर चढ़ने वाले युवा क्रांतिकारियों में एक नाम राजगुरु का भी है। राजगुरु का जन्म 24 अगस्त 1908 में पुणे के खेड़ा गांव में हुआ था। इनका पूरा नाम शिवराम हरि राजगुरु था। जब राजगुरु छह साल के थे, तभी उनके पिता का निधन हो गया था। इसके बाद राजगुरु संस्कृत की पढ़ाई करने के लिए वाराणसी पहुंचे।

यहां वह चंद्रशेखर आजाद के हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़ गए। अंग्रेज अफसर सॉन्डर्स की हत्या में राजगुरु भी शामिल थे। एसेंबली में बम ब्लास्ट करने में भी राजगुरु ने हिस्सा लिया। 23 मार्च 1931 को 23 साल की उम्र में राजगुरु को भी भगत सिंह और सुखदेव के साथ फांसी दे दी गई।

Sukhdev Thapar: अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिला देने वाले सुखदेव जब बंद कमरे में रोए...

सुखदेव
पंजाब के लुधियाना शहर में सुखदेव थापर का जन्म 15 मई 1907 में हुआ था। सुखदेव के पिता रामलाल थापर और मां रल्ली देवी थीं। जन्म से तीन महीने पहले ही सुखदेव के पिता का निधन हो गया था। इसके बाद इनका पालन पोषण इनके ताऊ अचिन्तराम ने किया। सुखदेव लाला लाजपत राय से काफी प्रभावित थे। उन्हीं के जरिए ये चंद्रशेखर आजाद की टीम में शामिल हुए।

लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए जब चंद्रशेखर ने प्लान बनाया तो सुखदेव भी उसमें शामिल हुए। उन्होंने अंग्रेज अफसर सॉन्डर्स को मौत के घाट उतार दिया। जेल में रहते हुए भी सुखदेव ने राजनीतिक बंदियों के साथ किए जा रहे व्यवहार के खिलाफ आंदोलन चलाया था। 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, राजगुरु के साथ सुखदेव को भी फांसी दी गई। फांसी के वक्त सुखदेव की उम्र भी महज 23 साल थी।

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