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भारतीय युवाओं में हार्ट फेल्योर की समस्या कहीं महामारी न बन जाए: उमेश कुमार सिंह

dehradun 1 भारतीय युवाओं में हार्ट फेल्योर की समस्या कहीं महामारी न बन जाए: उमेश कुमार सिंह

देहरादून। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हृदय रोग मौत का प्रमुख कारण है और दुनिया भर में 5 में से एक पुरुष और 8 महिलाओं में से महिला की मौत हृदय रोग के कारण ही होती है। यह धमनियों में फैटी पदार्थों के बनने और हृदय की रक्त आपूर्ति में अवरोध पैदा करने के कारण होता है। यह मुख्य रूप से धूम्रपान, अधिक वजन, उच्च कोलेस्ट्रॉल, उच्च रक्तचाप और मधुमेह जैसी जीवनशैली से जुड़ी आदतों और स्थितियों के कारण होने वाली बीमारी है।

लुधियाना स्थित सिबिया मेडिकल सेंटर के निदेशक डा. एस.एस. सिबिया का कहना है दिल के दौरे का संबंध पहले बुढ़ापे से माना जाता था। लेकिन अब अधिकतर लोग अपने 20 वें, 30 वें और 40 वें दशक के दौरान ही दिल की बीमारियों से पीडि़त हो रहे हैं। आधुनिक जीवन के बढ़ते तनाव ने यहां तक कि युवा लोगों में दिल की बीमारियों के खतरे पैदा कर दिया है। हालांकि अनुवांशिक और पारिवारिक इतिहास अब भी सबसे आम और अनियंत्रित जोखिम कारक बना हुआ है, लेकिन युवा पीढ़ी में अधिकतर हृदय रोग का कारण अत्यधिक तनाव और लगातार लंबे समय तक काम करने के साथ-साथ अनियमित नींद पैटर्न है, जिसके कारण इंफ्लामेशन पैदा होता है और हृदय रोग का खतरा बढ़ जाता है। धूम्रपान और आराम तलब जीवनशैली भी 20 से 30 साल के आयु वर्ग के लोगों में इसके जोखिम के लक्षणों को और बढ़ाती है।

हर रोज 9000 लोगों की मौत दिल की बीमारियों के कारण हो जाती है। इसका अर्थ यह है दिल की बीमारियों के कारण हर 10 सेकंड में एक मौत होती है। उनमें से 900 लोग 40 साल से कम उम्र के युवा होते हैं। भारत में हृदय रोग की महामारी को रोकने का एकमात्र तरीका लोगों को शिक्षित करना है वरना 2020 तक सबसे अधिक मौत हृदय रोग के कारण ही होगी।

भारत में कार्डियक अस्पतालों में 2 लाख से अधिक ओपन हार्ट सर्जरी की जाती है और इसमें सालाना 25 प्रतिशत की वृद्धि हो रही है, लेकिन वे दिल के दौरे की संख्या को नियंत्रित करने में सक्षम नहीं हैं। जो सर्जरी की जाती है वह केवल तात्कालिक लाभ के लिए होती है। हृदय रोग के कारण होने वाली मौतों को रोकने के लिए लोगों को हृदय रोग और इसके जोखिम कारकों के बारे में जरूरी चीजों से अवगत कराना महत्वपूर्ण है।

लक्षण क्या हैं?

सीएचडी के सभी रोगियों में समान लक्षण नहीं होते हैं और एंजाइना छाती का दर्द इसके सबसे आम लक्षण नहीं है। इसके लक्षण शून्य से लेकर गंभीर तक अलग-अलग हो सकते हैं। कुछ लोगों को अपच की तरह असहज महसूस हो सकता है और कुछ मामलों में गंभीर दर्द, भारीपन या जकडऩ हो सकता है। आमतौर पर दर्द छाती के बीच में महसूस होता है, जो बाहों, गर्दन, जबड़े और यहां तक कि पेट तक फैलता है और साथ ही धडक़न का बढऩा और सांस लेने में समस्या होती है।

अगर धमनियां पूरी तरह से अवरुद्ध हो जाती हैं, तो दिल का दौरा पड़ सकता हैै, जो हृदय की मांसपेशियों को स्थायी नुकसान पहुंचा सकता है। दिल के दौरे में होने वाले असुविधा या दर्द आमतौर पर एंजाइना के समान होता है, लेकिन यह अक्सर अधिक गंभीर होता है और इसमें साथ ही पसीना आना, चक्कर आना, मतली और सांस लेने में समस्या जैसी समस्या भी हो सकती है। मधुमेह वाले लोगों में यह अधिक आम है। दिल के दौरे का तुरंत इलाज नहीं किये जाने पर यह घातक हो सकता है।

दिल के दौरे का पूर्वानुमान कैसे करें?

डा. एस.एस. सिबिया का कहना है कि सीएचडी की संभावना वाले रोगी का आकलन करने के लिए चिकित्सकीय और पारिवारिक इतिहास की जानकारी, जीवनशैली का आकलन और रक्तपरीक्षण किया जाता है। सीएचडी की पहचान की पुष्टि करने के लिए आगे के परीक्षणों में दिल के प्रत्येक वाल्व की संरचना, मोटाई और मूवमेंट की पहचान करने के लिए इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम (ईसीजी), लक्षण पैदा करने वाली अन्य स्थितियों का पता लगाने के लिए दिल, फेफड़ों और छाती की दीवार को देखने के लिए एक्स-रे, दिल पर व्यायाम के प्रभाव को जानने के लिए व्यायाम के दौरान ट्रेडमिल टेस्ट (टीएमटी), कोरोनरी धमनियों में संकुचन का पता लगाने और रुकावट कितना गंभीर है, इसका पता लगाने के लिए कार्डियोवैस्कुलर कार्टोग्राफी हार्ट फ्लोमैपिंग, सीटी एंजियोग्राफी और इंवेसिव कोरोनरी एंजियोग्राफी की जाती है।

दिल की बीमारियों का प्रबंधन कैसे करें?

हालांकि कोरोनरी हृदय रोग ठीक नहीं हो सकता है, लेकिन इसके इलाज से लक्षणों का प्रबंधन करने, दिल की कार्यप्रणाली में सुधार करने और दिल के दौरे जैसी समस्याओं की संभावनाओं को कम करने में मदद मिल सकती है। इसके प्रभावी प्रबंधन में जीवनशैली में परिवर्तन, दवाएं और नॉन-इंवैसिव उपचार शामिल हैं। अधिक गंभीर मामलों में इंवेसिव और शल्य चिकित्सा उपचार की आवश्यकता होती है। ज्यादातर मामलों में इलाज से सामान्य जीवन को फिर से शुरू करना संभव है। जीवनशैली में कुछ सामान्य परिवर्तनों में स्वस्थ संतुलित आहार का सेवन, शारीरिक रूप से सक्रिय रहना, नियमित व्यायाम करना, धूम्रपान नहीं करना और रक्त कोलेस्ट्रॉल और शुगर के स्तर को नियंत्रित करना शामिल है। इससे सीएचडी, स्ट्रोक और डिमेंशिया का जोखिम कम हो सकता है और अन्य स्वास्थ्य लाभ भी हो सकते हैं।

सीएचडी के इलाज के लिए कई अलग-अलग दवाओं का उपयोग किया जाता है। कोलेस्ट्रॉल, उच्च रक्तचाप और मधुमेह को आमतौर पर दवाओं से अच्छी तरह से नियंत्रित किया जा सकता है। अन्य दवाओं का उद्देश्य दिल की धडक़न को धीमा करना, रक्त को पतला करना और उसे थक्का बनने से रोकना है। इनमें से कुछ दवाओं के सिरदर्द, चक्कर आना और त्वचा का लाल होना, कमजोरी, शरीर-दर्द, याददाश्त में कमी और यौनेच्छा कम होने जैसे दुष्प्रभाव हो सकते हैं। किसी भी दवा को लंबे समय तक लेते रहने पर समय-समय पर रक्त परीक्षण विशेषकर किडनी और लीवर फंक्शन टेस्ट कराने की सलाह दी जाती है।

डा. एस.एस. सिबिया के अनुसार हालांकि हार्ट फेल्योर खतरनाक लगता है, लेकिन इसकी बेहतर देखभाल और निदान के साथ इलाज किया जा सकता है हार्ट फेल्योर को रोकने का एकमात्र और सबसे आसान तरीका मोटापा, मधुमेह, उच्च रक्त चाप को प्रोत्साहित करने वाले जीवनशैली और खान-पान की आदतों से परहेज करना है. हार्ट फेल्योर या कार्डियो वैस्कुलर रोग इस तथ्य को दर्शाता है कि आपका दिल उतना स्वस्थ नहीं है, जितना होना चाहिए। इसके बेहतर ढंग से काम करने के लिए आपको इसकी बेहतर देखभाल करनी होगी। लेकिन सबसे अच्छी बात यह है कि आप स्वस्थ जीवनशैली को अपनाकर इसे रोक सकते हैं।

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