सूफियों में एक कहानी है, एक फकीर ने स्वप्न में देखा कि परमात्मा उसके सामने खड़ा है और उससे कह रहा है कि तेरी प्रार्थनाएं पहुंच गयीं, तेरी अर्चनाएं पहुंच गयीं, तेरी उपासनाएं पहुंच गयीं, तू मांग ले क्या मांगना है। ले यह तलवार लेता है? उस फकीर ने कहा, तलवार का मैं क्या करूंगा प्रभु? पर परमात्मा ने कहा, यह तलवार ऐसी तलवार है कि तू सारे संसार को जीत सकता है।
इस तलवार का गुण यह है कि जीत सुनिश्चित है। सोच ले। वह फकीर कहने लगा, मेरे पास ज्यादा नहीं है, थोडा है, लेकिन वह काफी तकलीफ दे रहा है, आप क्यों मेरे पीछे पड़े हैं? ऐसे ही परेशान हूं, और सारी दुनिया का उपद्रव मैं क्यों लूं? तलवार आप अपनी खुद ही रखो, मुझे नहीं चाहिए। तो परमात्मा ने अपनी अंगूठी उसे निकाल कर दी और कहा कि देख, यह हीरा देखता है, यह संसार का सबसे बडा हीरा है, यह तेरे पास होगा तो तू सबसे बड़ा धनी हो जाएगा, यह ले ले।
उसने कहा, यह मैं क्या करूंगा न: हीरे को खाऊंगा कि पीयूंगा कि पहनूंगा, कि क्या करूंगा? पत्थर देकर मुझे आप उलझाए मत। किसको धोखा देने चले हैं? मैं कोई बच्चा नहीं हूं। उमर ऐसे ही नहीं गंवायी है, यह बाल ऐसे ही धूप में सफेद नहीं हुए हैं, किसको धोखा देने चले हैं?
तो परमात्मा ने कहा, क्या तुझे फिर चाहिए? यह मेरे पीछे अप्सरा खड़ी है, स्वर्ण की इसकी देह है और यह सदा युवा रहेगी, कभी की न होगी, इसे ले ले। उसने कहा, जिनकी देह स्वर्ण की नहीं है और जो आज नहीं कल की हो जाएंगी और मर जाएंगी, जो क्षणभंगुर हैं, उनसे ही काफी पीड़ा मिलती है, यह सदा के लिए उपद्रव हो जाएगा। क्षणभंगुर से तो छुटकारा भी हो जाता है कि चलो, कभी तो अंत आ जाएगा, इसका तो अंत ही न आएगा। आप कहते हैं, मेरी प्रार्थनाएं पहुंच गयीं, आप मुझ पर नाराज हैं या क्या बात है, मुझे क्यों झंझट में डालना चाहते हैं? मुझ गरीब आदमी को छोड़ो। इससे तो बेहतर कि अगर यही प्रार्थनाओं का फल होता हो तो मैं प्रार्थनाएं करना बंद कर दूं।
तो परमात्मा ने कहा, फिर तू क्या चाहता है? कुछ भी मांग ले, क्योंकि बिना मांगे तो तुझे न जाने दूंगा। तो परमात्मा के पास एक छोटा—सा पौधा गुलाब का रखा था, उसने कहा, यह मुझे दे दें। तो परमात्मा ने कहा, इसे तू क्या करेगा? यह फूल सुबह खिलेगा, सांझ मुरझा जाएगा। तो उसने कहा, इससे मुझे जीवन की खबर मिलती रहेगी, कि सुबह खिला, सांझ मुरझा गया। और इसकी सुगंध मुझे याद दिलाती रहेगी कि ऐसी ही सुगंध मैं भी अपने भीतर छिपाए हूं, हे प्रभु, कब प्रगट होगी? इसके सौंदर्य से मुझे एक खयाल आता रहेगा कि जब फूल इतना सुंदर है, तो मनुष्य की आत्मा कितनी सुंदर न होगी! कब मुझे उसका दर्शन होगा?
परमात्मा तुम्हारी सुगंध है, जैसे गुलाब की सुगंध। परमात्मा कोई वस्तु नहीं है जिसे तुम खोजने जाते हो, परमात्मा तुम्हारी सुगंध है। जब तुम शात होकर अपने नासापुटों को उसकी तरफ उन्मुख करते हो, जब तुम अपनी आंखें भीतर मोड़ते हो, जब तुम अपने हाथ भीतर फैलाते हो, तब तुम अचानक पाते हो कि मिल गया, मिल गया। और तब तुम ऐसा नहीं पाते कि तुम्हें जो मिला है उससे तुम अलग हो, तब तुम ऐसा ही पाते हो कि अपने से मिलन हो गया—आत्म—मिलन।
-ओशो