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गांधी जयंती विशेषः मोहनदास से राष्ट्रपिता बनने तक के सफर के पहलू..

गांधी जयंती विशेषः मोहनदास से राष्ट्रपिता बनने तक के सफर के पहलू..

आजादी की लड़ाई में पूरा जीवन संघर्ष करने वाले महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्तूबर 1869 को में हुआ था।गांधी जी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी है।गांधी ने सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलकर दुनिया के सबसे ताकतवर ब्रिटिश साम्राज्य को भी घुटने टेकने के लिए मजबूर किया था। आज पूरा देश 150वीं जयंती के मौके पर गांधी जी को याद कर रहा है। आइए  गांधी जयंती के मौके पर जानते हैं, आखिर मोहनदास को महात्मा बनाने में किन घटनाओं का योगदान रहा।

 

गांधी जयंती विशेषः मोहनदास से राष्ट्रपिता बनने तक के सफर के पहलू..
गांधी जयंती विशेषः मोहनदास से राष्ट्रपिता बनने तक के सफर के पहलू..

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मोहनदास  पिता करमचंद गांधी  से ज्यादा उनकी माता पुतली बाई के धार्मिक संस्कारों से प्रभावित था।मोहनदास को बचपन में उनकी मां की सुनाई हुई,सत्य हरिश्चंद्र और श्रवण कुमार की कथाओं ने गांधी जीवन पर इतनी गहरी छाप छोड़ी कि गांधी ने इन आदर्शों को अपना मार्ग बना लिया। जिस पर चलते हुए बापू देश के राष्ट्रपिता बन गए।गांधी जी का विवाह वर्ष 1883 में 14 वर्ष की कस्तूरबा से हुआ। दो साल बाद गांधी के पिता का देहांत हो गया। गांधी ने राजकोट के अल्फ्रेड हाई स्कूल और भावनगर के शामलदास स्कूल में प्रारंभिक पढ़ाई पूरी की।मोहनदास 1888 में वकालत की पढ़ाई के लिए लंदन पहुंच गए।

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गांधी ने स्वदेश लौटकर बंबई में वकालत शुरू की, लेकिन सफलता नहीं मिलने पर 1893 में वकालत करने दक्षिण अफ्रीका चले गए। वहां गांधी को अंग्रेजों द्वारा भारतीयों के साथ हो रहे भेदभाव का पता चला तो गांधी ने इसके खिलाफ संघर्ष करना शुरू कर दिया। गांदी जी द्वारा अंग्रजी हुकूमत के खिलाफ संघर्ष का अध्याय ही यहीं से शुनरू हेता है।

दक्षिण अफ्रीका में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ गांधी की सफलता ने गांधी को भारत में भी मशहूर कर दिया, और वर्ष 1917 में उन्होंने चंपारण के नील किसानों पर अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ आंदोलन शुरू किया। इसके बाद तो गांधी जी के जीवन का एकमात्र लक्ष्य सिर्फ और सिर्फ ब्रिटिस हुकूमत को देश के बाहर का रास्ता दिखाना ही रह गया था। और एक दिन ऐसा आया भी  आखिर 15 अगस्त 1947 को देश से अग्रेज सत्ता का सफाया हो गया। साथ ही  देश ने गांधी को अपना ‘राष्ट्रपिता’ माना।

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गांधी के जीवन का एक ऐसा पहलू असहयोग आंदोलन (1920) है जिसने अंग्रेजी सरकार के छ्क्के छुपड़ा दिए थे।इस आंदोलन के तहत दमनकारी रॉलेट एक्ट और जालियांवाला बाग हत्या कांड की पृष्ठभूमि में गांधी ने भारतीयों से ब्रिटिश हुकूमत के साथ किसी तरह का सहयोग नहीं करने के आह्वान के साथ यह आंदोलन शुरू किया। इस पर हजारों लोगों ने स्कूल-कॉलेज और नौकरियां छोड़ दीं थी।

  • सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930) – स्वशासन और आंदोलनकारियों की रिहाई की मांग व साइमन कमीशन के खिलाफ था।
  • भारत छोड़ो आंदोलन (1942)- गांधी के नेतृत्व में यह सबसे बड़ा आंदोलन था। गांधी ने 8 अगस्त 1942 की रात अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के बंबई सत्र में ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ का नारा दिया। कई जगहों से अंग्रेजो को भागना पड़ा था।
  • गांधी दर्शन के तौर पर कुछ पुस्तकेः

हिंद स्वराज्य – गांधी की लिखी यह पुस्तक उनके सबसे करीब रही। इसे 1909 में लंदन से दक्षिण अफ्रीका लौटते हुए लिखा था।

सत्य के प्रयोग -गांधी जी ने गुजराती में लिखी अपनी आत्मकथा में जीवन के आरंभ से 1921 तक के हिस्से को सहेजा  है।

दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह का इतिहास –पुस्तक में गांधी जी ने वहां किए अपने सत्याग्रह की बातें कही हैं।

महात्मा गांधी रोम्यां रोलां- पुस्तक में नोबेल विजेता फ्रांसीसी साहित्यकार ने उनके जीवन और दर्शन को सत्य, अहिंसा, प्रेम, विश्वास और आत्मत्याग जैसी धारणाओं के संदर्भ में तोला है।

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  महेश कुमार यादव

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