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पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का बिमारी के चलते हुआ निधन

प्रणब मुखर्जी

देश के 13 वें राष्ट्रपति रह चुके प्रणब मुखर्जी अब हमारे बीच नहीं रहे है। उन्हें दिमाग में खून का थक्का जमने के कारण आर्मी अस्पताल में भर्ती किया गया था जहां पर उनकी हालत में लगा उतार चढ़ाओ हो रहा था उनके बाद उनकी हालत स्थिर हो गयी और हालत में किसी भी प्रकार का सुधार नहीं हो रहा था जिसकी वजह से उन्हें वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया था जिसके चलते उन्होंने सोमवार को अपनी अंतिम सांसें ली। उनके बेटे अभिजीत बनर्जी ने ट्विटर पर इसकी जानकारी साझा की हैं। उन्हें राजनीति में सम्मानित राजनेता के रूप में पहचान मिली हुई थी।

13वें राष्ट्रपति के रूप में ली शपथ

प्रणब मुखर्जी एक वरिष्ठ नेता रह चुके है और अपने 60 साल के राजनितिक करियर में अलग-अलग समय पर भारत सरकार के अनेक महत्वपूर्ण मंत्रालयों और पदों पर कार्य कर चुके है। राष्ट्पति बनने से पहले वे यू.पी.ए गठबंधन सरकार में केंद्रीय वित्त मंत्री रह चुके थे। राष्ट्पति चुनाव में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के उम्मीदवार थे और उन्होंने अपने प्रतिपक्षी प्रत्याशी पी.ए संगमा को हराया और 25 जुलाई 2012 को भारत के तेरहवें राष्ट्रपति के रूप में पद और गोपनीयता की शपथ ली थी।

ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे प्रणब

प्रणब मुख़र्जी का जन्म 11 दिसम्बर 1935 में पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के मिरती नामक स्थान पर एक बंगाली ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन में सक्रीय रहे और सन 1952 से 1964 तक पश्चिम बंगाल विधान परिषद् के सदस्य रहे। वे आल इंडिया कांग्रेस कमेटी के सदस्य भी थे। प्रणब की मां का नाम राजलक्ष्मी था। उन्होंने बीरभूम के सूरी विद्यासागर कॉलेज में पढ़ाई की और बाद में राजनीति शाष्त्र और इतिहास विषय में एम.ए. किया। उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय से एल.एल.बी. की डिग्री भी हासिल की। इसके बाद उन्होंने डिप्टी अकाउंटेंट जनरल के कोलकाता कार्यालय में प्रवर लिपिक की नौकरी की। सन 1963 में उन्होंने दक्षिण 24 परगना जिले के विद्यानगर कॉलेज में राजनीति शाष्त्र पढ़ाना प्रारंभ कर दिया और ‘देशेर डाक’ नामक पत्र के साथ जुड़कर पत्रकार भी बन गए।

प्रणब मुखर्जी का राजनितिक सफर

प्रणब मुखर्जी का राजनितिक करियर सन 1969 में प्रारंभ हुआ जब उन्होंने वी.के. कृष्ण मेनन के चुनाव प्रचार (मिदनापुर लोकसभा सीट के लिए उप-चुनाव) का सफल प्रबंधन किया। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने उनके प्रतिभा को पहचाना और उन्हें भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस में शामिल कर जुलाई 1969 में राज्य सभा का सदस्य बना दिया। इसके बाद भी प्रणब मुखर्जी को 4 बार राज्य सभा के लिए चुना गया।

धीरे-धीरे प्रणब मुखर्जी इंदिरा गाँधी के चहेते बन गए और सन 1973 में उन्हें केंद्र सरकार के मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया गया। सन 1975-77 के आपातकाल के दौरान उनपर गैर-संविधानिक तरीकों का उपयोग करने के आरोप लगे और जनता पार्टी द्वारा गठित ‘शाह आयोग’ ने उन्हें दोषी भी पाया। बाद में प्रणब इन सब आरोपों से पाक-साफ़ निकल आये और सन 1982-84 में देश के वित्त मंत्री रहे। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने सरकार की वित्तीय दशा दुरुस्त करने में सफलता पायी। सन 1980 में उन्हें राज्यसभा में कांग्रेस पार्टी के नेता बनाया गया। इस दौरान प्रणब मुखर्जी को सबसे शक्तिशाली कैबिनेट मंत्री माना जाने लगा और प्रधानमंत्री की अनुपस्थिति में वे ही कैबिनेट की बैठकों की अध्यक्षता करते थे।

कांग्रेस छोड़ने के बाद पार्टी का किया गठन

इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद प्रणब मुखर्जी को प्रधानमंत्री पद का सबसे प्रबल दावेदार माना जा रहा था पर राजीव गाँधी के प्रधानमंत्री बनते ही प्रणब को हासिये पर कर दिया गया। ऐसा माना जाता है की वे राजीव गांधी की समर्थक मण्डली के षड्यन्त्र का शिकार हुए जिसके बाद उन्हें मन्त्रिमणडल में भी शामिल नहीं किया गया। इसके बाद उन्होंने कांग्रेस छोड़ अपने राजनीतिक दल ‘राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस’ का गठन किया ।  सन 1989 में उन्होंने अपने दल का विलय कांग्रेस पार्टी में कर दिया। पी.वी. नरसिंह राव सरकार में उनका राजनीतिक कैरियर पुनर्जीवित हो उठा, जब उन्हें योजना आयोग का उपाध्यक्ष बनाया गया और सन 1995 में उन्हें विदेश मन्त्री के तौर पर नियुक्त किया गया। उन्होंने नरसिंह राव मंत्रिमंडल में 1995 से 1996 तक पहली बार विदेश मन्त्री के रूप में कार्य किया। सन 1997 में प्रणब को उत्कृष्ट सांसद चुना गया। इसके बाद उन्हें पार्टी का महासचिव बनाया गया।

चुनाव जीतकर पहुंचे लोकसभा

सन 2004 में प्रणब मुखर्जी ने पहली बार लोकसभा के लिए चुनाव लड़ा और पश्चिम बंगाल के जंगीपुर संसदीय क्षेत्र से जीत हासिल की। वे लोकसभा में पार्टी के नेता चुने गए। सन 2004 से लेकर 2012 में राष्ट्रपति बनने तक प्रणब मुखर्जी यू.पी.ए. गठबंधन सरकार में कई महत्वपूर्ण भूमिकाओं में नजर आये। इस दौरान वे देश के रक्षा, वित्त और विदेश मंत्री रहे। इसी दौरान प्रणब मुखर्जी कांग्रेस संसदीय दल और कांग्रेस विधान दल के मुखिया भी रहे।

भारत रत्न सम्मान से थे सम्मानित

वे हर वर्ष दुर्गा पूजा का त्योहार अपने पैतृक गांव मिरती (पश्चिम बंगाल) में ही मनाते थे। उन्हें कई अंतरराष्ट्रीय सम्मान और पुरस्कार भी प्राप्त हुए हैं। भारत सरकार ने प्रणब मुखर्जी को भारत रत्न के सम्मान से किया है। इसके अलावा उन्हें पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है। बूल्वरहैम्पटन और असम विश्वविद्यालय ने उन्हें मानद डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया है।

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