नई दिल्ली। जामिया निजामिया के मुफ्ती मोहम्मद अजीमुद्दीन ने फतवा जारी करके मुस्लमानों से कहा है कि वो झींगे खाने से तोबा करें क्योंकि इसे खाना इस्लाम में हराम माना गया है। वहीं फतवे के खिलाफ जमीयत-उलेमा-ए-हिंद के मुफ्ती मोहम्मद अबरार ने झींगे को हराम बताने वाले फतवे का विरोध करते हुए कहा कि झींगे के अंदर खून नहीं होता है क्योंकि ये मछली की प्रजाती का है इसलिए इसे खाने में कोई हर्ज नहीं है। इसी के साथ उलेमा-ए-देवबंद ने भी झींगे खाने को इस्लाम में हराम बताने वाले फतवे का विरोध किया है। झींगे न खाने का फतवा जारी करने को लेकर मुस्लिम छात्रों का कहना है कि खाने पीने पर प्रतिबंध नहीं लगाया जाना चाहिए और इस तरह का फतवा स्वीकार नहीं किया जा सकता।
गौरतलब है कि सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी झींगे की खपत तेजी से बढ़ी है। अकेले भारत में सालाना 30 हजार करोड़ रुपये के झींगे का उत्पादन होता है, जिसमें ज्यादातर विदेशों में ही निर्यात होता है। बता दें कि भारत में ही ताजा झींगे का बाजार तकरीबन 7,700 करोड़ रुपये का है और इसे खाने वाले हिंदू और मुसलमान दोनों हैं। आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम के झींगा कारोबारी मोहम्मद कासिम जामिया निजामिया के फतवे को सही नहीं मानते। उन्हें उम्मीद है ‘इस तरह के फतवों से झींगे की खपत पर कोई असर नहीं पड़ने वाला।
दूसरी तरफ जामिया निजामिया के प्रमुख मुफ्ती मोहम्मद अजीमुद्दीन फतवे पर कायम है। उन्होंने फतवा दिया है कि मुसलमानों के लिए झींगे घृणित है और इस्लाम उसे खाने की इजाजत नहीं देता। जामिया निजामिया 142 साल पुराना दक्षिण भारत का एक अहम मदरसा है। मुफ्ती मोहम्मद अजीमुद्दीन के फतवे के मुताबिक झींगे मछली नहीं है, इसलिए वो मकरुह तहरीम है। मकरुह तहरीम का मतलब ऐसी चीज जिसे किसी भी हाल में खाया नहीं जाना चाहिए।