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मुस्लिमों के पक्ष में आया फैसला तो भी राम मंदिर के लिए 2.77 एकड़ जमीन हिंदुओं को कर दी जाएगी गिफ्ट 

ayodhya babri मुस्लिमों के पक्ष में आया फैसला तो भी राम मंदिर के लिए 2.77 एकड़ जमीन हिंदुओं को कर दी जाएगी गिफ्ट 

लखनऊ. एक ओर जहां सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या के राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद जमीन विवाद पर सुनवाई पूरी करने की डेडलाइन 17 अक्टूबर तय की है। वहीं दूसरी और मामले में मध्यस्थता की कवायद भी शुरू है। लखनऊ में मुस्लिम बुद्धजीवियों ने गुरुवार शाम को इस मसले पर बैठक किया। जिसमें इस प्रस्ताव पर सहमति बनी कि फैसला यदि मुस्लिमों के पक्ष में आया तो भी राम मंदिर के लिए 2.77 एकड़ जमीन हिंदुओं को गिफ्ट कर दी जाए।

बता दें कि इंडियन मुस्लिम्स फॉर पीस के बैनर तले हुई मुस्लिम बुद्धजीवियों की बैठक में पूर्व जज, शिक्षाविद्, पूर्व नौकरशाह, वकील और पत्रकार शामिल हुए। इस बैठक में इस प्रस्ताव पर सहमति बनी कि अयोध्या की विवादित जमीन हिंदुओं को सौंप दी जाए। बदले में मस्जिद के लिए कहीं वैकल्पिक जमीन दी जाए। इस प्रस्ताव को सुप्रीम कोर्ट और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड भेजने पर भी सहमति बनी।

वहीं अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के पूर्व कुलपति रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल जमीरुद्दीन शाह ने कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट का फैसला हमारे पक्ष में आ भी जाए तो मस्जिद बनना मुमकिन नहीं है। लिहाजा बहुसंख्यक हिंदुओं की भावनाओं को देखते हुए जमीन उन्हें गिफ्ट कर दी जाए। इससे सौहार्द बना रहेगा। उन्होंने कहा कि इस बात पर सुन्नी सेंट्रल बोर्ड भी हमारे साथ है। हालांकि सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के पदाधिकारियों ने इस तरह की किसी भी बातचीत से इनकार किया है।

साथ ही पूर्व आईएएस अनीस अंसारी ने कहा कि हमने जो प्रस्ताव पास किया है, उसे सुन्नी वक्फ बोर्ड के मार्फत सुप्रीम कोर्ट की मध्यस्थता समिति को भेजेंगे। हमारा मानना है कि सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा लड़ना संवैधानिक अधिकार है, लेकिन मध्यस्थता बेहतर रास्ता है। उस पर विचार किया जाना चाहिए।

यहीं उधर मुस्लिम बुद्धजीवियों की मध्यस्थता की कोशिश का विरोध भी देखने को मिला। आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल बोर्ड के सचिव जफरयाब जिलानी ने कहा कि अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट जो भी फैसला करेगा उसे ही माना जाएगा। इस मामले में पर्सनल लॉ बोर्ड और बाबरी एक्शन कमेटी का स्टैंड आज भी वही है। इंडियन मुस्लिम्स फॉर पीस के पहल पर उन्होंने कहा कि वो खुद तय करें कि वो मुस्लिमों की नुमाईंदगी कर रहे हैं या फिर सरकार की। इस मामले में पक्षकार इक़बाल अंसारी ने भी कहा कि वो सुप्रीम कोर्ट का ही फैसला मानेंगे।

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