लखनऊ। शुक्रवार के सत् प्रसंग में रामकृष्ण मठ लखनऊ के अध्यक्ष स्वामी मुक्तिनाथानंद जी ने बताया कि संसार के कर्तव्य पालन के साथ-साथ भगवत् भक्ति भी करनी चाहिए। उन्होंने बताया कि भगवान श्री रामकृष्ण कहते हैं कि ईश्वर की प्राप्ति ही मानव जीवन का उद्देश्य है।
एक भक्त को श्री रामकृष्ण ने कहा आप लोगों से यही कहता हूँ- आप दोनों करें, संसार धर्म भी करें और जिससे भक्ति हो वह भी करें अर्थात संसार में रहते हुए एवं सर्वकर्तव्य पालन करते हुए भगवान को भी पकड़ कर रहो, तभी यह मानव जीवन का उद्देश्य सफल होगा।
स्वामी जी ने बताया कि भगवत् गीता में भी भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को यही संदेश दिया हैं। उन्होंने कहा- ‘तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च’ अर्थात मुझे निरन्तर स्मरण करो एवं साथ-साथ अपना जो धर्म है जैसे क्षत्रिय का धर्म युद्ध करना वह भी करते रहो।
ऐसा करने से तुम्हारी मन और बुद्धि दोनों ही भगवान में समर्पित रहेगी एवं अन्त में तुम मुझे ही प्राप्त करोगे। स्वामी जी ने कहा कि जब भगवान का स्मरण-मनन किया जाता है उस समय हमारा मन भगवान पर केंद्रित हो जाता है, मन शांत हो जाता है और यही योग की अवस्था है।
श्रीमद्भगवद्गीता मे कहा गया है ‘समत्वं योग उच्यते’ मन की समता का नाम ही योग है। इसके साथ-साथ सांसारिक कर्म भगवान के चरणों में समर्पित बुद्धि से करें। तब हमारी बुद्धि भी भगवान में लिप्त हो जाएगी और कर्म भी कुशल होगा इसलिए श्रीमद्भगवद्गीता में यह भी कहा गया है-‘योगः कर्मसु कौशलम्’ अर्थात कर्म मे कुशलता ही योग है।
इस प्रकार भगवान को स्मरण करते हुए कर्म करने से मन एवं बुद्धि दोनों ही भगवान से युक्त रहेगा और इसका परिणाम होगा हम भी इस जीवन में भगवत् प्राप्ति करते हुए जीवन सार्थक कर पाएंगे।