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देश में जन्माष्टमी की धूम, मंदिरों में लग रहे ‘जय कन्हैया लाल के’ जयकारे, ऐसे करें पूजा और आरती

radha krishan 2 देश में जन्माष्टमी की धूम, मंदिरों में लग रहे ‘जय कन्हैया लाल के’ जयकारे, ऐसे करें पूजा और आरती

आज पूरे देश में जन्माष्टमी की धूम है। बीती रात से ही मंदिरों में ‘जय कन्हैया लाल के’ जयकारे लग रहे हैं। गोकुल-मथुरा समेत देशभर में ये त्योहार बेहद धूमधाम से मनाया जाता है।

इस दिन लोग रखते हैं व्रत

इस दिन लोग व्रत रखते हैं। दिन भर पूजन करते हैं। भोग बनाते हैं। घरों में उत्सव सा माहौल रहता है। भक्त श्रीकृष्ण की पालकी सजाते हैं और झांकियां भी निकाली जाती हैं। साल 2021 में जन्माष्टमी आज यानी सोमवार 30 अगस्त को मनाई जा रही है। अष्टमी तिथि की शुरुआत रविवार रात 11 बजकर 25 मिनट से हुई थी जो आज देर रात 01 बजकर 59 मिनट तक रहेगी।

श्री कृष्ण की जन्माष्टमी कथा

हिंदू धर्म के अनुसार श्री कृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ था। बताया जाता है कि उनका जन्म कंस का वध करने के लिए हुआ था। आपको बता दें कि पौराणिक कथाओं में उनके जन्म का जिक्र करते हुए बताया गया है कि द्वापर युग में कंस ने अपने पिता उग्रसेन राजा की राज गद्दी छीन कर, उन्हें सिंहासन से उतार दिया था और जेल में बंद कर दिया था। इसके बाद कंस ने गुमान में खुद को मथुरा का राजा घोषित किया था। कंस की एक बहन भी थी। जिनका नाम देवकी था। देवकी की शादी विधि-विधान के साथ वासुदेव की गई थी और कंस ने धूम-धाम से देवकी का विवाह कराया लेकिन कथा अनुसार जब कंस देवकी को विदा कर रहा था, तब आकाशवाणी हुई कि देवकी का आठवां पुत्र कंस का वध करेगा। यह आकाशवाणी सुनकर कंस की रुह कांप गई और वह घबरा गया। ऐसी आकाशवाणी सुनने के बाद कंस ने अपनी बहन देवकी की हत्या करने का मन बना लिए लेकिन वासुदेव ने कंस को समझाया कि ऐसा करने का कोई फायदा नहीं होगा क्योंकि कंस को देवकी से नहीं, बल्कि उसकी आठंवी संतान से भय है। जिसके बाद वासुदेव ने कंस से कहा कि जब उनकी आठवीं संतान होगी तो वह उसे कंस को सौंप देंगे। ये सुनने के बाद कंस ने वासुदेव और देवकी को जेल में कैद कर लिया।

इसके बाद क्रूर कंस ने देवकी और वासुदेव की 7 संतानों को मार दिया। जब देवकी की आठवीं संतान का जन्म होने वाला था, तब आसमान में घने और काले बादल छाए हुए थे और बहुत तेज बारिश हो रही थी। इसके साथ ही आसमान में बिजली भी कड़क रही थी। मान्यता के मुताबिक मध्यरात्रि 12 बजे जेल के सारे ताले खुद ही टूट गए और वहां की निगरानी कर रहे सभी सैनिकों को गहरी नींद आ गई और वो सब सो गए। कहा जाता है कि उस समय भगवान विष्णु प्रकट हुए और उन्हें वासुदेव-देवकी को बताया कि वह देवकी के कोख से जन्म लेंगे। इसके बाद उन्होंने कहा कि वह उन्हें यानी उनके अवतार को गोकुल में नंद बाबा के पास छोड़ आएं और उनके घर जन्मी कन्या को मथुरा ला कर कंस को सौंप दें। इसके बाद वासुदेव ने भगवान के कहे अनुसार किया। वह कान्हा को नंद बाबा के पास छोड़ आए और गोकुल से लाई कन्या को कंस को सौंप दिया।

क्रोधित कंस ने जैसे ही कन्या को मारने के लिए अपना हाथ उठाया तो अचानक कन्या गायब हो गई। जिसके बाद एक आकाशवाणी हुई कि कंस जिस शिशु को मारना चाहता है वो गोकुल में है। यह आकाशवाणी सुनकर कंस डर गया को अपने भांजे कृष्ण को मारने के लिए उसने राक्षसों को गोकुल भेज कर कान्हा का असतित्व मिटाने की कोशिश की लेकिन श्रीकृष्ण ने सभी राक्षसों का एक-एक कर वध कर दिया और आखिर में भगवान विष्णु के अवतार ने कंस का भी वध कर दिया।

लड्डू गोपाल के जन्मोत्सव पर लोग प्रभु से स्वस्थ, सुखी और संपन्न जीवन प्राप्ति की कामना करते हैं। साथ ही, दूसरों को भी इस विशेष दिन की शुभकामनाएं देते हैं।

ऐसे करें श्रीकृष्ण की आरती

आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

गले में बैजंती माला,
बजावै मुरली मधुर बाला ।
श्रवण में कुण्डल झलकाला,
नंद के आनंद नंदलाला ।
गगन सम अंग कांति काली,
राधिका चमक रही आली ।
लतन में ठाढ़े बनमाली
भ्रमर सी अलक,
कस्तूरी तिलक,
चंद्र सी झलक,
ललित छवि श्यामा प्यारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की॥

कनकमय मोर मुकुट बिलसै,
देवता दरसन को तरसैं ।
गगन सों सुमन रासि बरसै ।
बजे मुरचंग,
मधुर मिरदंग,
ग्वालिन संग,
अतुल रति गोप कुमारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की॥

जहां ते प्रकट भई गंगा,
सकल मन हारिणि श्री गंगा ।
स्मरन ते होत मोह भंगा
बसी शिव सीस,
जटा के बीच,
हरै अघ कीच,
चरन छवि श्रीबनवारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की॥

चमकती उज्ज्वल तट रेनू,
बज रही वृंदावन बेनू ।
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू
हंसत मृदु मंद,
चांदनी चंद,
कटत भव फंद,
टेर सुन दीन दुखारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की॥

आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

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