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जानिए पितृपक्ष में कौवों से जुड़ा कारण और इसका पौराणिक महत्व

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जैसा कि हम सभी जानते हैं कि पितृपक्ष में कौवों  को खाना खिलाने की परम्परा चली आ रही है। कहा जाता है कि पितृपक्ष में अगर कोवों को खाना ना खिलाया जाये श्राद्ध पूरा नहीं माना जाता है। बता दें कि भाद्रपद महीने की पूर्णिमा से लेकर आश्विन महीने की अमावस्या तक का समय श्राद्ध और  पितृ पक्ष कहलाता है। कहा जाता है कि इस महीने में, पितरों का आशीर्वाद पाने के लिये उनकी पसंद की चीजें दान करने या खिलाने से वो खुश होते हैं। और अपना आर्शीवाद हम पर बनाये रखते हैं।

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श्राद्ध पक्ष के 16 दिनों में पितरों के अलावा देव, गाय, श्वान, कौए और चींटी को भोजन खिलाने को भी कहा जाता  है। आपको बता दें कि  गाय में सभी देवी-देवताओं का वास होता है, इसलिए गाय का भी काफी महत्व माना जाता है। वहीं पितर पक्ष में श्वान और कौए पितर का रूप होते हैं इसलिए उन्हें भोजन देने का भी अपना एक महत्व होता है।

हमारे देश में कई परम्परायें चली आ रही हैं, और उनमें से ही एक है पितृपक्ष में खाना खिलाने की, दरअसल, कौआ को यमराज का प्रतीक माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, अगर कौआ श्राद् का खाना खा लेता है तो इसका मतलब है कि आपका दिया हुआ खाना आपके पितृ ने स्वीकार कर लिया है। और वो आपसे खुश हैं।

आपको बता दें कि पुराण, रामायण, महाकाव्यों  और कई  धर्म शास्त्रों में भी पितृपक्ष में कौवों के महत्तव के बारे में बताया गया है।

शास्त्रों के मुताबिक  पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध हमेशा दोपहर के समय  ही करना  चाहिए। इस दौरान गाय, कौआ, कुत्ते, देव और चीटी आदि को भोग लगाना चाहिए.।

पितृ पक्ष के दौरान खाना  बनाने के बर्तन कभी भी लोहे के नहीं होने चाहिए. कहा जाता है कि अगर आप ऐसा करते हैं तो  परिवार पर बुरा प्रभाव पड़ता है. साथ ही ऐसा करने से आर्थिक परेशानी बढ़ती है और आपस में लोगों के बीच टकराव भी बढ़ता है.।

पितृ पक्ष में कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए, ना कपड़े खरीदने चाहिये, और ना ही कोई शादी ब्याह का काम करना चाहिये।   पितरों को याद करना चाहिए.।

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