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विश्वकल्याण को वृन्दावन- यमुना जी में  किये हजारो  दीपदान,  दीपदान का बड़ा महत्व  

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कोरोना वायरस का कहर पूरी दुनिया पर टूट रहा है। लाख कोशिश करने के बाद भी कोरोना की अब तक तक कोई दवाई नहीं बन सकी है।और आगे भी कुछ महीनों तक तक कोरोना की दवाई बनेगी इसकी उम्मीद नजर नहीं आ रही है।कोरोना के प्रकोप ने पूरे विश्व को थाम कर रख दिया है। जैसे-जैस दिन बढ़ते जा रहे हैं वैसे-वैसे मौतों का आंकडा और संक्रमित लोगों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।

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इस बीच लोगों की उम्मीद सिर्फ उस परमेश्वर पर है। जिसने इस धरती को बनाया। यही कारण है कि, दुनियाभर के लोग जो विभिन्न धर्मों और समुदायों से तालुक रखते हैं। वो सिर्फ ईश्वर से कोरोना नाम की महामारी को खत्म करने के लिए दुआएं कर रहे हैं।

kanha 1 विश्वकल्याण को वृन्दावन- यमुना जी में  किये हजारो  दीपदान,  दीपदान का बड़ा महत्व  गड़ते हालतों को देखते हुए कल ब्रज की आराध्या एवं योगीराज भगवान श्री कृष्ण की पटरानी के नाम से विख्यात मां यमुना के सभी तटों पर भव्य दीपदान महोत्सव आयोजित किया गया था।

ये आयोजन तुलसी आश्रम वृन्दावन के मुख्य संत एवं कथावाचक डॉ संजय कृष्ण सलिल जी द्वारा किया गया।

जिसमें कई लोगों ने भाग लिया। दीप दान का उद्देश्य विश्वकल्याण व कोरोना रूपी दैत्य के संहार हेतु किया गया हैं।मान्यता हैं कि यमुना जी, ब्रज में दीपदान का बड़ा महत्व हैं । इसलिए कान्हा की नगरी मथुरा में अकसर दीप दान का खूबसूरत नजारा देखा जा सकता है।तस्वीरों मे आप युमना में बहते खूबसूरत दीपों का नजारा ,देख सकते हैं। मन को मोहित कर देना वाला ये दृश्य शांति और आस्था से भरा हुआ।

डॉ संजय कृष्ण सलिल जी द्वारा किए गये दीप दान महोत्सव में सोशल डिस्टेंसिंग का पूरा ध्यान रखा गया। आपको बता दें जब से देश में लॉकडाउन लगा है तब से सार्वजनिक तौर पर कान्हा की नजरी भक्तों के लिए फिलहाल बंद है।उम्मीद की जा रही है कि, बहुत जल्द भारत कोरोना की जंग को हराएगा और जीतेगा।

इसी उद्दश्य से तुलसी आश्रम वृन्दावन के मुख्य संत एवं कथावाचक डॉ संजय कृष्ण सलिल जी दीप दान महोत्सव का आयोजन किया।

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ताकि कान्हा जी इस भयंकर महामारी से पूरी सृष्टि को बचा सकें।

यमुना का इतिहास..
सनातन धर्म में भगवान श्रीकृष्ण को सर्वेश्वर माना गया है। हिंदू धर्मग्रंथों में उनकी जिन आठ पटरानियों का उल्लेख है। भगवती यमुना भी उनमें से एक हैं। पुराणों के अनुसार यमुना जी भगवान सूर्य की पुत्री होने के साथ यमराज एवं शनिदेव की बहन भी हैं।

कैसे हुआ यमुना का जन्म
द्वापर युग में भगवती यमुना का आविर्भाव चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी के दिन हुआ था। अत: यह पावन तिथि यमुना जयंती के नाम से सिद्ध हो गई। ब्रज मंडल में प्रतिवर्ष यह महोत्सव बडे धूमधाम से मनाया जाता है। मार्कण्डेय पुराण के मतानुसार गंगा-यमुना सगी बहनें हैं।जिस तरह गंगा का उद्गम गंगोत्री के समीप स्थित गोमुख से हुआ है। उसी तरह यमुना जी जब भूलोक में पधारीं, तब उनका उद्गम यमुनोत्री के समीप कालिंदगिरि से हुआ।

मथुरा में यमुना पूजा का महत्व..
भगवान श्रीकृष्ण की प्रिया यमुना ब्रजमंडल की आराध्या हैं। ब्रजवासी इन्हें नदी नहीं, बल्कि साक्षात देवी ही मानते हैं। मथुरा के विश्राम घाट तथा वृंदावन के केशी घाट पर प्रतिदिन होने वाली यमुना जी की आरती में अंसख्य श्रद्धालु भाग लेते हैं।ब्रज में आने वाला हर तीर्थयात्री यमुना जी का पूजन करके उन्हें दीपदान अवश्य करता है।मनोरथ पूर्ण होने पर भक्तगण अनेक साडियों को जोडकर यमुना जी को चुनरी चढाते हैं।ब्रजमंडल में ठाकुर जी का स्नान तथा उनके भोग की तैयारी यमुना जल से ही होती है।

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श्रीनाथ जी का श्रीविग्रह ब्रज से मेवाड भले ही पहुंच गया हो, पर उनकी सेवाओं में केवल यमुनाजल का ही प्रयोग होता है। शाम के वक्त यमुना तट की खूबसूरती देखने लायक होती है। यही कारण है कि, भगवान कृष्ण पर आस्था रखने वाले हजारों लोग हर रोज मथुरा पहुंचते हैं।

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