संयुक्त राष्ट्र की एक वैज्ञानिक समिति के प्रमुख ने मार्च, 2014 में चेतावनी दी कि अगर ग्रीनहाउस गैसों का प्रदूषण कम नहीं किया गया तो जलवायु परिवर्तन का दुष्प्रभाव बेकाबू हो सकता है। अब समय की मांग है कि कार्रवाई की जाए। अगर ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम नहीं किया गया, तो हालात बेकाबू हो जाएंगे। नोबल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिकों के दल द्वारा तैयार रिर्पोट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव ज्यादा बढ़ा तो खतरा और बढ़ जाएगा।
उत्तर भारत के कई राज्यों के साथ-साथ नेपाल में अभी हाल ही में भूकंप आया, उत्तराखंड में भीषण प्राकृतिक आपदा आई। प्रशांत महासागर में जापान के पिछले 140 सालों के इतिहास में आए सबसे भीषण 8.9 की तीव्रता वाले भूकंप के कारण सुनामी आई। इसके अलावा अमेरिका में दावानल, यूरोप में जानलेवा लू, आस्ट्रेलिया में भीषण सूखा व मोजाम्बिक और थाईलैंड व पाकिस्तान में प्रलयकारी बाढ़ जैसी आपदाओं ने पूरी दुनिया का ध्यान विनाशकारी समस्या की ओर खींचा।
आज दक्षिण अमेरिका में जब जंगल कटते हैं तो उसका प्रभाव भारत के मानसून पर भी पड़ता है। इस तरह प्रकृति का कहर किसी देश की सीमा, जाति व धर्म को नहीं जानती। आज वास्तव में पूरी दुनिया के जलवायु में होने वाले परिवर्तन इंसानों के द्वारा ही उत्पन्न किए गए हैं। नाभिकीय यंत्रों का परीक्षण और पेड़ों को काटकर वह भयंकर जल, वायु और ध्वनि प्रदूषण फैला रहा है। पृथ्वी का जो वातावरण कभी पूरी दुनिया के लिए वरदान था, आज वही अभिशाप बनता जा रहा है।
हमारा मानना है कि कई दशकों से पर्यावरण बचाने के लिए कोशिशें कर रही दुनिया अब अलग-अलग देशों के कानूनों से ऊब चुकी है। दुनिया की कई जानी-मानी हस्तियों का मानना है कि अब प्रभावशाली विश्व न्यायालय के गठन का ही रास्ता बचा है, जिससे हमारी गलतियों की सजा अगली पीढ़ी को न झेलनी पड़ी।
कोरोना काल में प्रदूषण भी ऑक्सीजन की कमी भी एक बड़ा कारण है। पेड़-पौधे हमारे सबसे बड़े मित्र हैं। वे हमें जीवनदायिनी ऑक्सीजन देते हैं और हमारे द्वारा छोड़ी विषैली कार्बन-डाई-ऑक्साइड को शोषित कर पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाते हैं। इसलिए विश्व के हर नागरिक को एक पौधा लगाने और उसे संरक्षित करने का संकल्प लेना चाहिए।
दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन से पैदा होने वाले खतरों से निपटने के लिए सभी देशों को एक मंच पर आकर तत्काल विश्व संसद, विश्व सरकार और विश्व न्यायालय के गठन पर सर्वसम्मति से फैसला लेना चाहिए। इस विश्व संसद द्वारा विश्व के 2.4 अरब बच्चों के साथ ही आगे जन्म लेने वाली पीढ़ियों के सुरक्षित भविष्य के लिए जो भी नियम व कानून बनाए जाएं, उसे विश्व सरकार द्वारा प्रभावी ढंग से लागू किया जाए। किसी देश द्वारा यदि इन कानूनों का उल्लघंन किया जाता है तो उस देश को विश्व न्यायालय द्वारा दंडित करने का प्रावधान पूरी शक्ति के साथ लागू किया जाए।
-डॉ. जगदीश गांधी, संस्थापक-प्रबंधक, सिटी मोंटेसरी स्कूल, लखनऊ