दुनिया featured

चीन ने समुद्र में उतारा पहला स्वदेशी विमानवाहक युद्धपोत

Untitled 64 चीन ने समुद्र में उतारा पहला स्वदेशी विमानवाहक युद्धपोत

नई दिल्ली। चीन की ओर से अपना पहला स्वदेश निर्मित विमानवाहक युद्धपोत परीक्षण के लिए उतार दिया गया है। बता दे कि चीन की ओर से अपनी सेना को मजबूत बनाने और विवादित समुद्री इलाकों पर पैठ बनाने की दिशा में इसे बड़ा कदम माना जा रहा है। बता दे कि पचास हजार टन वजनी युद्धपोत चीन के जहाजी बेड़े का दूसरा युद्धपोत है। फिलहाल इसे कोई नाम नहीं दिया गया है।

Untitled 64 चीन ने समुद्र में उतारा पहला स्वदेशी विमानवाहक युद्धपोत

स्की जंप पट्टी

चीन की इस युद्धपोत को अमेरिका के मुकाबले का काफी विछड़ा हुआ माना जा रहा है। विशेषज्ञों के मुताबिक इससे एशिया में भले ही चीन की ताकत बढ़ जाए लेकिन इस युद्धपोत की तकनीक अमेरिका के मुकाबले काफी पिछड़ी हुई है। इसके चीनी सेना में 2020 तक शामिल होने की उम्मीद है।चीन के पहले युद्धपोत लियाओनिंग के मुकाबले यह युद्धपोत बड़ा और अधिक भारी है, जिससे यह अधिक विमानों को ले जाने में सक्षम है।हालांकि इसका आधारभूत डिजायन लियाओनिंग से ही लिया गया है, जिसमें विमान के उड़ान भरने के लिए विशेष स्की जंप पट्टी शामिल है। यह पोत संचालित होने के लिए परमाणु प्रपल्शन तकनीक के बजाय पारंपरिक तकनीक का इस्तेमाल करता है दोनों युद्धपोतों में एक बड़ा फर्क यह है कि लियाओनिंग को प्रशिक्षण पोत के तौर पर तैयार किया गया था, जबकि यह पोत युद्ध अभियानों के लिए तैयार किया गया है।

संघाई में तीसरे विमानवाहक युद्धपोत पर काम शुरू

इसके जरिए चीन दुनिया के सर्वक्षेष्ठ नौसैनिक क्षमताओं वाले देशों के समकक्ष आ गया है, जिसमें रूस, फ्रांस, अमेरिका और ब्रिटेन शामिल हैं। चीन की ओर से संघाई में तीसरे विमानवाहक युद्धपोत पर काम शुरू कर दिया है। यह परमाणु ऊर्जा संचालित होगा। 2030 तक चीन अपने बेड़े में चार विमानवाहक युद्धपोत शामिल करना चाहता है, जिससे वह दक्षिण चीन सागर में अपना दबदबा कायम कर सके। चीन ने एजे-15 नामक नया जेट फाइटर विमान भी र तैयार कर लिया है, जो उसके विमानवाहक युद्धपोतों के डेक से संचालित हो सकेगा।

चीन के लिए खतरा

चीन की ओर से जिस तरह से सैन्य क्षमताओं में इजाफा किया जा रहा है। ये भारत के लिए एक चिंता का विषय बन गया है। सिर्फ 44,400 टन वजनी आइएनएस विक्रमादित्य विमानवाहक युद्धपोत सेवा में है। भारत ने इसे रूस से 2013 में 2.33 अरब डॉलर में खरीदा था। 40 हजार टन वजनी स्वदेशी निर्मित आइएसएन विक्रांत कोचीन शिपयार्ड में बन रहा है। इसका परीक्षण अक्टूबर, 2020 में शुरू होगा और यह पूरी संचालित 2023 तक हो पाएगा। भारत को नौसैन्य क्षमता में तेजी से इजाफा करना होगा वरना दक्षिण चीन सागर और भारत की पूर्वी समुद्र सीमा पर चीन अपनी गतिविधियां बढ़ाकर भारत के लिए परेशानी खड़ी कर सकता है।

अमेरिकी तकनीक

बात करे अगर अमेरिका की तो वर्तमान समय में अमेरिका के पास 11 परमाणु ऊर्जा संचालित युद्धपोत हैं, जिसमें से हर एक का वजन लगभग एक लाख टन है। सभी पर 80-90 विमान रखे जा सकते हैं। यह संख्या दुनिया के किसी भी अन्य देश के मुकाबले कहीं अधिक है।
अमेरिकी पोत में में कैटापुल्ट तकनीक मौजूद है, जिसमें भाप संचालित पिस्टन से जुड़ा एक गियर पोत के डेक से उड़ान भरने वाले विमानों को गति प्रदान करता है। इस तकनीक से लांच होने वाले विमान अधिक ईंधन और हथियारों के साथ हवा में उड़ान भर पाते हैं। यह तकनीक अमेरिकी विमानों को चीनी विमानों से बेहतर बनाती है।

Related posts

पुलवामा जैसे हमले की आशंका के चलते उत्तरी कश्मीर हाई अलर्ट पर    

Rani Naqvi

कांग्रेस के लोग भी जमानत पर ही रिहा हैं, मुझे एनआईए ने दी है क्लीन चिट

bharatkhabar

जया बच्‍चन के बयान पर कंगना रनौत ने किया पलटवार

Samar Khan