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महापुण्यदायक दुर्लभ ‘जयंती योग’ में मनाएं श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, ऐसे रखें व्रत 

महापुण्यदायक दुर्लभ ‘जयंती योग’ में मनाएं श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, ऐसे रखें व्रत 

पिछले आठ वर्षों के बाद इस साल 30 अगस्त को एक दुर्लभ योग बन रहा है। इस योग में सोमवार को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन अर्द्धरात्रि व्यापिनी, अष्टमी तिथि सोमवार, रोहिणी नक्षत्र एवं वृषस्थ चंद्रमा का दुर्लभ एवं पुण्यदायक योग बन रहा है। इस दिन सुबह 6:38 बजे के बाद रोहिणी नक्षत्र, वृष राशि का चंद्र रहेगा और अर्धरात्रि-व्यापिनी अष्टमी रहेगी। जबकि वैष्णव संप्रदाय 31 अगस्त को उदयकालिक नवमी तिथि, वृष राशिस्थ चंद्रमा में व्रत, जन्मोत्सव आदि मनाएगा।

बरेली के बालाजी ज्योतिष संस्थान के ज्योतिषाचार्य पं. राजीव शर्मा के मतानुसार 30 अगस्त के दिन ही श्रीकृष्ण-जन्माष्टमी का व्रत, चंद्रमा को अर्ध्य-दान, जागरण-कीर्तन और श्रीकृष्ण जन्म से संबद्ध अन्य सभी पूजन कार्य करने शास्त्र सम्मत रहेंगे। अगले दिन 31 अगस्त को व्रत का पारण होगा। उन्‍होंने कहा कि, इस बार श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत “जयंती योग” में होगा, क्योंकि इस बार जन्माष्टमी रोहिणी नक्षत्र युक्त है। जन्माष्टमी पर जयंती योग में बुधवार या सोमवार का योग आ जाए तो वह अत्युत्कृष्ट फलदायक हो जाती है।

कैसे रखें जन्माष्टमी व्रत व कैसे करें पूजा

जन्माष्टमी के दिन सुबह स्नानादि के बाद श्रीकृष्ण भगवान के लिए व्रत करने, उपवास करने एवं भक्ति करने का संकल्प लेना चाहिए। प्रात: काल ध्वजारोहण एवं संकल्प के साथ व्रतानुष्ठान करके “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय। ॐ कृष्णाय वासुदेवाय गोविन्दाय नमो नम:” आदि मंत्र जाप करें और फिर चौकी पर लाल या पीला वस्त्र बिछाकर कलश पर आम के पत्ते या नारियल स्थापित करें एवं कलश पर स्वास्तिक का चिन्ह भी बनायें।

इन आम के पत्तों से वातावरण शुद्ध एवं नारियल से वातावरण पूर्ण होता है। अब पूर्व या उत्तर की ओर मुंह करके बैठें। एक थाली में कुमकुम, चंदन, अक्षत, पुष्प, तुलसी दल, मौली, कलावा, रख लें। खोये का प्रसाद, ऋतु फल, माखन मिश्री ले लें और चौकी के दाहिनी ओर घी का दीपक प्रज्जवलित करें और इसके बाद वासुदेव-देवकी एवं नन्द-यशोदा की पूजा अर्चना करें। इसके बाद चंद्रमा का पूजन करें।

इसके बाद दिन में व्रत रखने के बाद रात्रि 8 बजे फिर पूजा शुरू करें और एक खीरे को काटकर उसमें श्रीकृष्ण का विग्रह रूप स्थापित करें अर्थात् श्री कृष्ण अभी मां के गर्भ में हैं, इसके बाद लगभग रात्रि 10 बजे विग्रह अर्थात लड्डू गोपाल को खीरे से निकाल कर पंचामृत से उसका अभिषेक करें। पंचामृत में विधमान दूध से वंशवृद्वि, दही से स्वास्थ्य, घी से समृद्वि, शहद से मधुरता, बूरा से परोपकार की भावना एवं गंगा जल से भक्ति की भावना प्राप्त होती है।

श्रीकृष्ण को पंचामृत का अभिषेक शंख से करने से कई गुणा फल प्राप्त होता है। इसके बाद तीसरे चरण की पूजा रात्रि 12 बजे शुरू करें, क्योंकि श्रीकृष्ण जी का इस धरती पर प्राकट्य रात्रि 12 बजे हुआ था। इसके बाद इस समय भगवान श्रीकृष्ण का निराजन 11 अथवा 21 बत्तियों के दीपक से करें। अंत में नमस्कार करके प्रार्थना करें- हे प्रभु! दुःख व शोकरूपी समुद्र से मेरी रक्षा करो फिर भगवान श्रीकृष्ण के ध्यान/नाम मंत्रों का यथाशक्ति जाप करें।ध्यान मंत्र:- *ॐ नारायणाय नमः,अच्युताय नमः,अनन्ताय नमः,वासुदेवाय नमः।

कैसे करें व्रत का पारण

हर व्रत के अंत में पारण होता है, जो व्रत के दूसरे दिन सुबह किया जाता है। ब्रह्मवैवर्त पुराण, काल निर्णय के अनुसार जब तक अष्टमी चलती रहे या उस पर रोहिणी नक्षत्र रहे तब तक पारण नहीं करना चाहिए। अत: तिथि और नक्षत्र के अन्त में ही पारण करना चाहिए। व्रत का पारण नंदोत्सव में कढ़ी चावल से करें एवं तुलसी की पूजा करें। इस प्रकार व्रत अर्चन करने से व्रती की सभी मनोकामनायें पूर्ण होती है और नि:संतान दंपत्ति को संतान प्राप्त होती है। साथ ही इस दिन अभीष्ट संतान प्राप्ति के लिए विधिपूर्वक संतान गोपाल स्तोत्र या हरिवंश पुराण का पाठ करने का विशेष माहात्म्य है।

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