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उत्तर प्रदेश की राजनीति में मायावती को दुबारा संजीवनी देने के लिए करना होगा जद्दोजहद

mayawati bsp उत्तर प्रदेश की राजनीति में मायावती को दुबारा संजीवनी देने के लिए करना होगा जद्दोजहद

लखनऊ। यूपी लोकसभा चुनाव में बसपा भले ही गठबंधन में 38 सीटों पर चुनाव लड़ रही हो पर इनमें से 12 सीटें ऐसी हैं, जहां आजादी के बाद से उसे कभी सफलता नहीं मिली है। बसपा के लिए इन सीटों पर जीत बड़ी चुनौती के रूप में देखी जा रही है। बसपा सुप्रीमो मायावती को इन सीटों पर जीत के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी। यह बात अलग है कि बसपा ने इस बार उम्मीदवारों के चयन बहुत सोच समझ कर किया है, ताकि जातीय समीकरण के आधार पर सीट पर जीत का परचम लहराया जा सके।
आरक्षित सीट का भी नहीं मिला फायदा
यूपी की आरक्षित 17 सीटों में बसपा के खाते में 10 सीटें गई हैं। इनमें से पांच सीटें मोहनलालगंज, बुलंदशहर, आगरा, शाहजहांपुर और बासगांव की बात करें तो बसपा को इन सीटों पर आजादी के बाद से कभी सफलता नहीं मिली है। राजधानी से ठीक सटे मोहनलालगंज क्षेत्र के आरके चौधरी बसपा के कद्दावर नेता रहे हैं और कांशीराम के करीबी माने जाते रहे। वह मोहनलालगंज विधानसभा सीट से 1996, 2002 और 2007 में लगातार तीन बार विधायक बने, लेकिन वर्ष 2014 में बसपा लोकसभा उम्मीदवार बनकर मैदान में उतारने के बाद भी जीत का सेहरा उनके सिर पर नहीं बंध सका। उन्हें दूसरे नंबर पर संतोष करना पड़ा। अब वह कांग्रेसी हैं। बसपा ने इस बार मोहनलालगंज से नए उम्मीदवार सीएल वर्मा पर दांव लगाया है। सीएल पासी बिरादरी के हैं और मोहनलालगंज संसदीय सीट पर इस बिरदारी का अच्छा खासा वोट बैंक बताया जाता है।
पश्चिम की कई सीटें पर नहीं खुल सका खाता
पश्चिमी यूपी की आगरा, बुलंदशहर जैसी सीटों पर बसपा का खाता तक नहीं खुल पाया है। आगरा सीट पश्चिमी यूपी की प्रमुख सीटों में से एक मानती जाती रही है। बसपा भले ही यहां मैदान में आती रही पर उसे सफलता कभी नहीं मिल सकी। कांग्रेस और भाजपा के लिए यह सीट हमेशा से अच्छी मानी गई। कांग्रेस सात बार तो भाजपा पांच बार यहां बाजी मार चुकी है। यहां तक की गठबंधन की सहयोगी सपा का भी दो बार इस सीट पर कब्जा रहा है। यह बात अलग है कि बसपा 2009 और 2014 के चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करते हुए दूसरे स्थान पर पहुंचने में सफल रही थी। वर्ष 2009 के चुनाव में तो बसपा बहुत कम मार्जिन से हारी। भाजपा को 31.48 और बसपा को 29.98 फीसदी वोट मिले थे। बुलंदशहर सीट पर भी बसपा का कुछ ऐसा ही हाल रहा। यह बात अलग है कि गठबंधन के सहयोगी दल सपा और रालोद इस सीट पर जीत दर्ज कर चुकी है।

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