केन्द्रीय मंत्री पीयूष गोयल बुद दिनों परेशान नजर आ रहे हैं ऐसा लगता है कि उनके ग्रह-नक्षत्र ठीक नहीं चल रहे हैं। वे जिस काम में हाथ डाल रहे हैं उसमें उनका दांव उलटा पड़ जा रहा है। पिछले दिनों उन्होंने इस साल का नोबल पुरस्कार जीतने वाले अभिजीत बनर्जी पर बयान दिया। उनको वामपंथी रूझान का बताया और यह भी कहा कि उनके आइडिया को देश ने खारिज कर दिया है। इस पर खुद बनर्जी ने निराशा जताई और इसके तुरंत बाद बनर्जी की मुलाकात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हुई तो मोदी ने उनकी जम कर तारीफ की। उससे पहले गोयल ने आर्थिक मंदी के मुद्दे पर बयान दिया था और प्रेस कांफ्रेंस में कह दिया था कि लोग गणित के चक्कर में नहीं पड़ें, अगर आइंस्टीन गणित के चक्कर में पड़ते तो गुरुत्वाकर्षण की खोज नहीं कर पाते। इसके लिए उनकी बड़ी फजीहत हुई। बाद में उन्होंने सफाई न्यूटन की जगह आइंस्टीन का नाम लेने पर सफाई दी।
असल में ये सारी गड़बड़ी इस साल मई में शुरू हुई, जब सारे अनुमानों के उलट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनको वित्त मंत्री नहीं बनाया। इस सरकार ने पांच साल अरुण जेटली के वित्त मंत्री रहे पीयूष गोयल को ही भविष्य में उनके उत्तराधिकारी के तौर पर तैयार किया था। पर जेटली की जगह वित्त मंत्री बनाने की बारी आई तो प्रधानमंत्री ने निर्मला सीतारमण को वित्त मंत्री बना दिया। उसी समय से गोयल की गाड़ी पटरी से उतरी है। अब नया मामला क्षेत्रीय समग्र आर्थिक संधि यानी आरसीईपी का है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस संधि पर समझौते के लिए जब बैंकॉक जा रहे थे तब वाणिज्य मंत्री की हैसियत से पीयूष गोयल ने जी जान से इस संधि का बचाव किया। उन्होंने इसका विरोध करने के लिए कांग्रेस पर जम कर हमला किया। कांग्रेस को याद दिलाया कि इस संधि पर चर्चा कांग्रेस ने ही शुरू कराई थी। पर यहां भी उनका दांव उलटा पड़ गया। प्रधानमंत्री मोदी ने इस संधि को भारत के हित में नहीं बताते हुए इस पर दस्तखत करने से इनकार कर दिया। अब कांग्रेस इसे अपनी जीत बता कर जश्न मना रही है और गोयल ने चुप्पी साधी हुई है।