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सौ करोड़ हिंदुओं की आस्था का सवाल, कोर्ट ने कहा जमीनी विवाद पर होगी सुनवाई

Supreme Court Reuters 2 सौ करोड़ हिंदुओं की आस्था का सवाल, कोर्ट ने कहा जमीनी विवाद पर होगी सुनवाई

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में राम मंदिर विवाद को लेकर गुरुवार को सुनवाई की। इसी के साथ कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 14 मार्च की तारिख तय की है। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के खिलाफ अपील करने वाले पक्षों से कहा है कि वो दो हफ्तों के अंदर ट्रांसलेशन और बाकी के डॉक्यूमेंट्स जमा कराएं। राम मंदिर विवाद को लेकर चीफ जस्टिस दीपक्ष मिश्रा की अध्यक्षता में संपन्न हुई आज की कार्रवाई में जजों की खंडपीठ ने कहा कि अब इस मामले की सुनवाई 14 मार्च को होगी। इसी के साथ कोर्ट ने ये भी साफ कर दिया कि ऐसा जरूरी नहीं है कि इस केस की सुनवाई रोजाना हो।

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के अलावा खंडपीठ में शामिल जस्टिस अशोक भूषण और एस.एस नजीर की बेंच ने कहा कि इसे पूरी तरह से जमीनी विवाद मानकर सुनवाई की जाएगी। कोर्ट ने ये बात राम मंदिर का पक्ष रख रहे वकील द्वारा देश के 100 करोड़ हिंदुओं की आस्था का ख्याल रखने की दलील पर कही। कोर्ट ने कहा कि मातृभाषा हिंदी में लिखी सभी चीजें जोकि इस केस से जुड़ी हुई है उनका अनुवाद अंग्रेजी मे कराकर दो हफ्ते के अंदर कोर्ट के समक्ष पेश किया जाए। अदालत ने रजिस्ट्रार को ये निर्देश दिए कि सभी पक्षों को वीडियो कैसेट्स की कॉपी भी दे जोकि हाई कोर्ट के रिकॉर्ड्स में हिस्सा रहे थे।
Supreme Court Reuters 2 सौ करोड़ हिंदुओं की आस्था का सवाल, कोर्ट ने कहा जमीनी विवाद पर होगी सुनवाई

बता दें कि इससे पहले पांच दिसंबर को सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच ने कहा था कि वे याचिकाओं पर 8 फरवरी से अंतिम सुनवाई शुरू करेगी। इसके साथ ही सभी पार्टियों से निश्चिम समय सीमा के भीतर अपने दस्तावेज जमा करने को कहा था। वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और राजीव धवन ने इस बात पर जिरह की कि इस मामले को या तो पांच या सात सदस्यी बेंच के पास भेजा जाना चाहिए या नहीं तो इसकी संवेदनशीलता को देखते हुए 2019 तक टाल देना चाहिए।

गौरतलब है कि साल 2010 में यानी लगभग आठ साल पहले अदालत की विशेष बेंच ने उन 14 अपीलों पर सुनवाई कर रही है जो इलाहबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ की गई है। इलाहाबाद हाईकोर्ट की तीन सदस्यीय जजों की बेंच ने 2:1 साल 2010 में अपना फैसला सुनाया था। इस फैसले में जमीन को तीन टुकड़ों में बांटकर इसे सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला को देने के लिए कहा गया था।

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