नई दिल्ली: आपने रास्ता गाईड करने वालों के बारें में तो जरूर सुना होगा पर क्या आपने ये सुना है कि मरें हुए लोग भी गाईड बनकर काम कर रहें है और लोगों को रास्ता दिखा रहे हैं। मेरे इस सवाल को सुनने के सबाद शायद आप सोंच रहें होगें की ये पागल हो गया या फिर मुस्कुरा रहे होंगें अगर मुस्कुरा रहें है तो मुस्कुराईये नही क्योंकि मेरी बातें सच है और हो सकता है कि मेरी बाते सुन आपके होश उड़ जाए।
एवरेस्ट की चढ़ाई नहीं है आसान
माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई ना तो आसान है, ना ही सस्ती। फिर भी सालों से यहां लोग पर्वतारोहण के लिए जा रहे हैं। इस दौरान उन लोगों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। कई लोगों का तो सफर भी अधुरा रह जाता है, कई तो बीच रास्ते में दम तोड़ देते है ,दुर्भाग्यवश, कईयों को तो अंतिम संस्कार भी नसीब नहीं होता। माउंट एवरेस्ट पर कम से कम 200 लाशें ऐसी हैं जो बरसों से वहां पड़ी हुई हैं। माउंट एवरेस्ट पर मौजूद कई लाशें अब अन्य पर्वतारोहियों को रास्ता दिखाने का काम करती है। लगभग हर लाश को एक नाम दिया गया है और उन्हें बतौर लैंडमार्क मानकर ट्रैकर्स आगे का रास्ता पता लगाते हैं। तस्वीर में दिख रही लाश को ‘ग्रीन बूट्स’ कहा जाता है यह सेवांग पालजोर का शव है उनकी मौत 1999 में आए तूफान की वजह से हो गई थी।
आपको बता दें कि दो पर्वतारोही जब हिमालय की चढ़ाई कर रहे थे, तब उन्हें रास्ते में एक महिला चीखती नजर आई. वह बर्फ में दबी हुई थी और रो रोकर गुजारिश कर रही थी ‘प्लीज मुझे बचा लो’.।मगर उसे बचाना मुमकिन नहीं था. उस वक्त महिला को बचाते-बचाते खुद उन दोनों की जान भी चली जाती। लिहाजा, दोनों पर्वतारोही आगे बढ़ गए और महिला की मौत हो गई। मगर उन दोनों को अपने इस फैसले पर इतनी ग्लानी हुई कि उन्होंने आठ साल तक पैसे इकट्ठा किए और वापस वहां जाकर उस महिला का शव नीचे लेकर आए फिर उसका सम्मानजनक अंतिम संस्कार किया।