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यूपी चुनाव विशेष- क्षत्रिय वोटरों में हवा के रूख को बदलने की है ताकत

up map chatriya यूपी चुनाव विशेष- क्षत्रिय वोटरों में हवा के रूख को बदलने की है ताकत

नई दिल्ली। सूबे का सियासी पारा अपने शबाब पर है। चारों तरफ रैलियों का दौर जारी है। राजनीतिक दल एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप का बाजार गरम किए हुए हैं। राजनीति के महारथी लगातार अपने समीकरणों को साधने में लगे हुए हैं। सूबे के चुनावी दंगल में जातीय समीकरण सबसे अहम महत्व रखते हैं। उत्तर प्रदेश की चुनावी गणित कई माइने में खास और अहम है। क्योंकि यहां पर राजनीति के कई नये समीकरण हैं। कभी जातीय समीकरण तो कभी दलीय समीकरण दोनों का नाप-तौल चलता है। इसके बाद भी यहां पर कई समीकरण बनते और बिगड़ते रहते हैं।

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क्षत्रिय वोटरों पर सभी दलों की नजर

वैसे तो चुनावी समर में हर वोटरों की कीमत होती है। लेकिन कुछ वोटरों के सहारे सत्ता का दंगल जीतना काफी आसान हो जाता है। क्योंकि कुछ एक अगड़ी जाति के वोटरों के लिए कभी भी सत्ता के लिए एक हवा को तैयार कर दिया जाता है। ब्राह्मणों के बाद ऐसी जाति केवल क्षत्रियों की है। हांलाकि सूबे में इनका प्रतिशत महज 7 फीसदी ही है। लेकिन ये अपने रूतबे से किसी भी पार्टी के लिए हवा जरूर बना देते हैं। वैसे देखा जाये तो क्षत्रिय वर्ग के प्रत्याशी और नेता आर्थिक और समाजिक तौर पर काफी मजबूत होते हैं। इनकी दबंग छवि किसी भी पार्टी के लिए एक मजबूती से जुटती है। इसके साथ जनता के बीच इनकी दबंग छवि जनता के बीच एक हवा का रूख तय करती है। इनका फायदा इस बार हर पार्टी उठाने की फिराक में लगी है।

कांग्रेस के साथ पुराना है नाता

देखा जाये तो जब ब्राह्मणों बर्चश्व काग्रेस पर खत्म होता दिखा तो क्षत्रियों का रूख कांग्रेस के पाले में जा गिरा । इसके पहले ये वर्ग गैर कांग्रेसी दलों की ओर रहता रहा है। कांग्रेस ने इस वर्ग को साधने के लिए दो बार इसको सत्ता की चाभी भी सौंपी थी। जिसमें विश्वनाथ प्रताप सिंह और वीर बहादुर सिंह ने कांग्रेस से अपने कार्यकाल में बड़े पैमाने पर क्षत्रियों को लामबंद किया था। लेकिन जब वीर बहादुर सिंह को पार्टी ने दरकिनार किया तो क्षत्रियों का रूख बदल गया। हांलाकि क्षत्रियों का एक गुट कांग्रेस के साथ जुड़ा रहा है। जिसमें अमेठी के राज परिवार के साथ कालाकांकर राज परिवार ने क्षत्रियों के गुट को कांग्रेस के पाले में रखा है। इसके चलते यूपी में इस बार कांग्रेस में कई और बड़े दिग्गज क्षत्रिय नेताओं का समर्थन मजबूत हवा तैयार कर रहा है।

क्षत्रिय समीकरण को भाजपा ने भी खेला है

भाजपा के पास भी क्षत्रिय कार्ड के कई दांव हैं। राजनाथ सिंह के अलावा योगी आदित्यनाथ, संगीत सोम और लल्लू सिंह, कीर्तिवर्धन सिंह, ब्रजभूषण शरण सिंह, अजय प्रताप सिंह ‘लल्ला भाईया’ जैसे एक बड़े नाम भाजपा के लिए क्षत्रिय समीकरण को एक बड़ी मजबूती पश्चिम के साथ पूर्वांचल में देते हैं। राजनाथ को लेकर 2002 में भाजपा ने चुनावी कार्ड खेला था। हांलाकि पार्टी सत्ता की सीढ़ी नहीं चढ़ पाई थी। लेकिन पार्टी से क्षत्रिय वोटरों को बड़े पैमाने से बिखरने से रोका हुआ था। इसका फायदा उसे 2014 के चुनावी रण में भी दिखा है। इन बड़े चेहरों की लोकप्रतियता के साथ जनता पर और इलाके पर पकड़ से पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह भी पूरी तरह से वाकिफ है। क्योंकि इन नामों में कई ऐसे बड़े चेहरे हैं जो चुनावी गणित और रूख को पलटने की ताकत रखते हैं।

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