नई दिल्ली। भारत के प्रधान न्यायाधीश टी. एस. ठाकुर ने शनिवार को कहा कि सिकुड़ती हुई दुनिया में हमें हर हाल में अंतर्राष्ट्रीय कानून से अवगत रहना चाहिए और आने वाले परिदृश्यों से निपटना चाहिए।
प्रधान न्यायाधीश ने ‘प्रिंसपल्स ऑफ द इंगेजमेंट ऑफ डोमेस्टिक कोर्ट्स विद इंटरनेशनल ला’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी के उद्घाटन भाषण में यह बात कही। उन्होंने कहा, “हमें हर हाल में इससे अवगत रहना चाहिए कि दुनिया में क्या चल रहा है। इस क्षमता के साथ तैयार रहें कि उनसे किस तरह निपटना है।”
इस संगोष्ठी का आयोजन इंटरनेशनल लॉ एसोसिएशन के क्षेत्रीय चैप्टर ने किया था।
ठाकुर ने कहा कि इस वैश्वीकृत दुनिया की राजनीतिक सीमाओं का हो सकता है कि अभी कुछ औचित्य हो लेकिन आर्थिक सीमाएं व्यर्थ हो गई हैं।
जिस गति और आयाम से अंतर्राष्ट्रीय कानून सामने आ रहे और आकार ले रहे हैं वे किसी राष्ट्र की समझ से बाहर चले गए हैं।
विभिन्न देशों के अधिकार क्षेत्र को लेकर हो रहे विवाद के संदर्भ में मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि एक देश की अदालतों के फैसले अपना प्रभाव खो देंगी जब तक दूसरे देशों के शासन उनका सम्मान नहीं करें।
हालांकि उन्होंने कहा कि भारत का यह कर्तव्य है कि अंतर्राष्ट्रीय कानून का पालन या पुष्टि करने को संविधान के प्रावधानों एवं जो कानून हैं उन्हीं के तालमेल से देखे।
प्रधान न्यायाधीश ने एक उदाहरण देते हुए कहा कि बच्चे को अप्रवासी भारतीय पिता के संरक्षण में सौंपने के आदेश को भारतीय अदालतों द्वारा यांत्रिक ढंग से नहीं लागू किया जा सकता।
ठाकुर ने कहा कि समुद्र, अंतरिक्ष, शरणार्थी संकट और पर्यावरण जैसे क्षेत्रों में अंतर्राष्ट्रीय कानूनों की महत्वपूर्ण भूमिका का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि भारत जैसे उभरती अर्थव्यवस्थाओं को ग्रीन हाउस इफेक्ट के लिए दंडित नहीं किया जा सकता।
उन्होंने कहा कि अमेरिका जैसे विकसित देश कार्बन का ज्यादा उत्सर्जन कर रहे हैं और ग्रीनहाउस प्रभाव में योगदान दे रहे हैं।
(आईएएनएस)