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मौत को मारने का जज्बा रखने वाले लखनऊ के कारगिल वीर मनोज कुमार पांडे की कहानी

मौत को मारने का जज्बा रखने वाले लखनऊ के कारगिल वीर मनोज कुमार पांडे की कहानी

लखनऊ: कहते हैं जिंदगी आपको एक बार हीरो बनने का मौका जरूर देती है। ऐसा ही मौका शहीद कैप्टन मनोज कुमार पांडे मिला और उन्होंने सबके सामने एक मिसाल प्रस्तुत कर दी। 25 जून 1975 में उनका जन्म उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में हुआ था।

1999 कारगिल के हीरो

परमवीर चक्र विजेता कैप्टन मनोज पांडे 1999 की कारगिल वार के हीरो साबित हुए। महज 22 साल की छोटी उम्र में उनके इरादे हिमालय जैसे मजबूत थे। NDA की परीक्षा पास करने के बाद उन्होंने भारतीय सेना प्रवेश लिया, इंटरव्यू के दौरान ही उन्होंने परमवीर चक्र जीतने की इच्छा जताई थी, उनके इरादे उसी समय इतने मजबूत थे। परमवीर चक्र जीतने का उनका कथन सिर्फ बात नहीं थी, उसमें विश्वास था और यही विश्वास कारगिल युद्ध के दौरान दिखाई दिया।

गोरखा राइफल्स में हुए शामिल

शहीद कैप्टन मनोज कुमार पांडे 6 जून 1995 को 1/11 गोरखा राइफल्स में शामिल हो गए। यह उनकी जिंदगी में एक बड़ा मौका था, 1999 में ऑपरेशन रक्षक शुरू हुआ, जिसमें कैप्टन मनोज कुमार पांडे की टीम कारगिल में भेजी गई। बर्फीले पहाड़ पर खुद को बचाते हुए देश की सीमाओं की रक्षा करना आसान काम नहीं था। जब मिशन पर आपको जिम्मेदारी दी जाती है, तब सब कुछ भूल कर देश की रक्षा ही एकमात्र लक्ष्य रह जाता है।

तीन दुश्मनों को एक साथ दी मात

कारगिल जैसी जगह पर जब जवानों को तैनात किया जाता है तो उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना होता है। इसमें ऊंचाई, मौसम और दुश्मन की सेना तीनों का सामना करना होता है। खालूबार पोस्ट इस लड़ाई में बहुत महत्वपूर्ण होने वाली थी, इस पोस्ट पर कब्जा जमाने के लिए 2 जुलाई को कैप्टन मनोज कुमार पांडे की बटालियन को आगे भेजा गया। खालूबार पर पहले चार्ली कंपनी भेजी गई थी, जिसने मदद का सिग्नल भेजा। इसके बाद कैप्टन मनोज कुमार पांडे की टीम आगे बढ़ी।

जब अचानक दुश्मन ने कर दिया हमला

भारतीय सैनिक आगे बढ़ते जा रहे थे और पाकिस्तानी सेना लगातार गोलीबारी कर रही थी, लेकिन भारतीयों का जज्बा देखकर उनके पसीने छूट गए। 16,700 फीट की ऊंचाई पर घमासान जारी था, पाकिस्तान की तरफ से भारतीय सेना को रोकने के लिए सभी जतन किए जा रहे थे, लेकिन भारतीय जवानों में कैप्टन मनोज कुमार पांडे जैसे वीर योद्धा थे, जिन्होंने अपने कदम पीछे नहीं रोके।

24 साल की छोटी उम्र में ही उन्होंने अपनी समझदारी से पाकिस्तानी सेना को टिकने नहीं दिया। कई बंकर ग्रेनेड और गोली से तबाह करने के बाद आखरी बंकर की तरफ बढ़ रहे थे। तभी हेलमेट को चीरती हुई एक गोली ने इस वीर को गिरा दिया, लेकिन गिरने के बाद भी कैप्टन मनोज कुमार पांडे ने अपने जवानों को आखरी आदेश दिया ‘इन्हें मत छोड़ना’। इसके बाद भारतीय जवानों ने आखरी बंकर को भी तबाह कर उस पर कब्जा कर लिया।

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