- योगी की जिद के आगे झुकी BJP, सरकार नहीं संगठन में भेजे गए मोदी के खास सिपहसालार ए के शर्मा
लखनऊ। यूपी (Uttar Pradesh) की सियासत में पिछले एक साल से चर्चाओं का केंद्र बने पूर्व आईएएस और भाजपा (BJP) के एमएलसी ए के शर्मा (MLC A K SHARMA) पर आखिरकार शनिवार को विराम लग ही गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (NARENDRA MODI)के खास सिपहसालारों में से एक ए के शर्मा को यूपी सरकार में बड़ी जिम्मेदारी मिलना तय माना जा रहा था, लेकिन उन्हें यूपी भाजपा के उपाध्यक्ष से संतोष करना पड़ा है। जबकि पिछले एक सालों से अटकलों का बाजार गर्म था कि यूपी की नौकरशाही पर लगाम लगाने के लिए उन्हें योगी (Yogi Adityanath) कैबिनेट में जगह दी जाएगी। साथ ही यूपी का उपमुख्यमंत्री भी बनाया जाएगा।
ए के शर्मा को लेकर न सिर्फ यूपी की सियासत में हलचल मची थी, बल्कि पूरी बीजेपी में ही उथलपुथल मच गई थी। लखनऊ से लेकर दिल्ली तक बैठकों का दौर शुरू हुआ। यूपी बीजेपी के नेताओं के साथ केंद्रीय नेतृत्व में कई दौर में बैठकें की। उसके बाद यूपी में ए के शर्मा को लेकर तस्वीर साफ हुई। हालांकि एक साल से सियासी गलियारे में हलचल थी कि ए के शर्मा को उपमुख्यमंत्री बनाया जाएगा, लेकिन फिलहाल उन्हें संगठन में भेजा गया है।
ऐसे हुई ए के शर्मा की इंट्री
उत्तर प्रदेश सरकार में हावी नौकरशाही को लेकर दिल्ली तक लगातार शिकायतें जा रहीं थीं। यूपी सरकार के मंत्रियों, विधायकों, संगठन के कार्यकर्ताओं और सांसदों आदि अफसरों की मनमानी से नाराज थे। कई बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व से कई बार इसकी शिकायत की गई थी। सूत्रों ने बताया कि योगी सरकार में हावी अफसरों की कार्यशैली से आरएसएस भी नाखुश है। इसको देखते हुए 2022 के विधानसभा चुनावों के मद्देनजर नौकरशाही पर लगाम लगाने की कवायद शुरू की गई। इसके लिए प्रधानमंत्री कार्यालय में बतौर सचिव काम कर रहे आईएएस ए के शर्मा को यूपी भेजने की रणनीति बनाई गई। जिन्हें यूपी के अफसरों पर लगाम लगाने की जिम्मेदारी दी जानी थी।
प्रधानमंत्री के सबसे खास अफसरों में शामिल ए के शर्मा और नरेंद्र मोदी का साथ करीब 18 साल पुराना है। गुजरात कैडर के आईएएस ए के शर्मा गुजरात सरकार में भी कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे। जब नरेंद्र मोदी पीएम बने तो ए के शर्मा को पीएमओ में तैनात कर दिया गया। गुजरात से लेकर नरेंद्र मोदी के अगुवाई वाली केंद्र सरकार तक को कई मौकों पर ए के शर्मा ने संभाला। कई जटिल मुद्दों को सुलझाने में मदद की। उनकी इसी योग्यता को देखते हुए पीएम मोदी की अनुशंसा पर उन्हें यूपी भेजा गया। यूपी के मऊ जिले के मूलनिवासी ए के शर्मा के यूपी आने की आहट के बाद अटकलों का बाजार गर्म हो गया। ए के शर्मा ने वीआरएस का एलान करते हुए पिछले साल ही इस्तीफा दे दिया था। उसके बाद उन्होंने बीजेपी का दामन थामा और एमएमलसी बनाए गए।
ए के शर्मा की इंट्री के बाद अंतर्कलह आई सामने
यूपी की सियासत में ए के शर्मा की इंट्री के बाद बीजेपी की अंतर्कलह खुलकर सामने आ गई। यूपी बीजेपी तीन धड़ों में बंटती दिखाई देने लगी। सूत्रों की मानें तो ए के शर्मा को उपमुख्यमंत्री बनाए जाने की अटकलों के बाद केशव प्रसाद मौर्या चौकन्ना हो गए। एक धड़ा सीएम योगी, दूसरा केशव प्रसाद मौर्या और तीसरा धड़ा ए के शर्मा के साथ आ गया। सूत्रों के अनुसार ए के शर्मा को उपमुख्यमंत्री के साथ-साथ गृह विभाग और कार्मिक विभाग भी दिए जाने की कवायद शुरू हो गई थी। लेकिन, सीएम योगी ने इस पर साफ मना कर दिया। ये दोनों ही विभाग सीएम योगी के पास हैं। उन्होंने किसी भी शर्त पर ये विभाग दूसरे को सौंपने को तैयार नहीं हुए। सीएम योगी के विरोध के बाद करीब एक साल तक ए के शर्मा को जिम्मेदारी मिलने का इंतजार करना पड़ा।
बीएल संतोष को आना पड़ा आगे
यूपी बीजेपी में मचे घमासान के बीच राष्ट्रीय महासचिव बीएल संतोष (BL SANTOSH) को आगे आना पड़ा। वे पिछले दिनों लखनऊ के बीएल संतोष को कई दिनों तक प्रवास करना पड़ा। इस दौरान बीएल संतोष ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या, डॉ दिनेश चंद्र शर्मा, प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह समेत कई पदाधिकारियों और अन्य जिम्मेदारों से मुलाकात की। उनकी राय जानने के बाद रिपोर्ट केंद्रीय नेतृत्व को सौंपा। जिसके बाद मामले का पटाक्षेप किया गया। हालांकि बीएल संतोष एक बार फिर यूपी के दो दिवसीय दौरे पर आने वाले हैं।
मोदी बनाम योगी बनी स्थिति
ए के शर्मा के मामले में बीजेपी में कई गुट दिखाई देने लगे थे। राजनीतिक घटनाक्रमों पर नजर डालें तो यह परिस्थिति मोदी-शाह बनाम योगी आदित्यनाथ हो गई थी। योगी सरकार के सोशल मीडिया अकाउंट के कवर फोटो से मोदी-शाह की जोड़ी गायब हो गई थी। राजनीतिक पंडित यह बताने लगे थे कि जिस प्रकार 2017 के दौरान अखिलेश यादव और शिवपाल यादव के बीच राजनीतिक मतभेद कब मनभेद में बदल गए और सत्ता हाथ से चली गई, वही हाल बीजेपी का होने वाला है। लेकिन, इस विरोधाभास और कयास पर अब लगाम लगती दिखाई दे रही है।
यूपी में हो सकता है ये असर
राजनीतिक विद्वानों की मानें तो मोदी-शाह बनाम योगी आदित्यनाथ की लड़ाई में फिलहाल योगी भारी पड़ रहे हैं। 2022 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी के चेहरे के सवाल पर पार्टी में मतभेद अभी भी दिखाई दे रहे हैं। उपमुख्यमंत्री और 2017 में बतौर प्रदेश अध्यक्ष पार्टी को शानदार पूर्ण बहुमत दिलाने वाले केशव प्रसाद मौर्या कहते दिखाई दे रहे हैं कि यह निर्णय केंद्रीय नेतृत्व तय करेगा लेकिन वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह साफ तौर पर कह रहे हैं कि अगला विधानसभा का चुनाव योगी आदित्यनाथ के ही नेतृत्व में लड़ा जाएगा।
पार्टी के दो बड़े नेताओं के बयानों से साफ है कि अंदरखाने अभी तक पूरी तरह सबकुछ सामान्य नहीं हुआ है। हालांकि, पार्टी के मतभेदों को दरकिनार कर दें तो सीएम योगी के लिए 2022 का चुनाव किसी भी अग्निपरीक्षा से कम नहीं होने वाला है। बेरोजगारी, महंगाई, कानून-व्यवस्था, किसानों आदि की समस्याओं के साथ सत्ता विरोधी लहर का असर साफ तौर पर सीएम योगी और बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी करने जा रहा है।