सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि गृहिणियां काम नहीं करतीं, आर्थिक योगदान नहीं देतीं, यह सोच ही गलत है. वर्षों से प्रचलित इस मानसिकता को बदलने की जरूरत है. इनकी आय तय करना महत्वपूर्ण है. यह उन हजारों महिलाओं के काम को महत्व देने जैसा है जो सामाजिक और सांस्कृतिक मान्यताओं के कारण ऐसा करने को बाध्य हैं.
जस्टिस एन वी रमन्ना, जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने एक सड़क दुर्घटना में मारे गए दंपति के परिजनों द्वारा दायर अपील का निपटारा करते हुए ये बात कही है. इस मामले में वाहन दुर्घटना मुआवजा पंचाट ने पीड़ित पक्ष को 40.71 लाख रुपये को मुआवजा देने का आदेश दिया था. पंचाट के फैसले को बीमा कंपनी ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. हाईकोर्ट ने अपील को आंशिक रूप से स्वीकार किया था लेकिन भविष्य की संभावना वाले हिस्से को हटा दिया.
मुआवजे को लेकर याचिका दायर
सुप्रीम कोर्ट ने पीड़ित पक्ष की अपील को स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट द्वारा तय की गई मुआवजे की रकम 22 लाख से बढ़ाकर 33.20 लाख कर दी है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने इस फैसले में कहा है कि सड़क दुर्घटना में पीड़ित पक्ष को मुआवजा निर्धारित करते वक्त दुर्घटना का शिकार हुए व्यक्ति की भविष्य में कमाई की संभावना पर विचार किया जा सकता है भले ही घटना के वक्त उसकी कमाई नाममात्र ही क्यों न हो. जस्टिस सूर्यकांत द्वारा अलग से लिखे गए फैसले में कहा गया है कि ऐसे मामलों में अदालत को ऐसी स्थिति से भी गुजरना होता है जब उसे कमाई न करने वाले पीड़ित मसलन बच्चे, छात्र या होममेकर्स की आमदनी का निर्धारण करना होता है.
घरेलू महिलाओं के बारे में भी सोचना जरूरी
अदालत ने कहा है कि घर के कामकाज में महिलाओं की हिस्सेदारी बहुत अधिक है. इसमें पूरे परिवार के लिए भोजन बनाना, बच्चों की जरूरतों को पूरा करना, साफ सफाई, बुजुर्गों की देखभाल सहित कई कामों को अंजाम देना होता है. ऐसे में परिवार की अर्थव्यवस्था में उसकी हिस्सेदारी पर गौर करने की जरूरत है.