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तबाही मचाने धरती की ओर तेजी से बढ़ रहे ये 5 उल्कापिंड, नासा ने किया सचेत

widget तबाही मचाने धरती की ओर तेजी से बढ़ रहे ये 5 उल्कापिंड, नासा ने किया सचेत
  • भारत खबर || नई दिल्ली

नासा ने खुलासा किया है कि पृथ्वी के करीब तबाही मचाने के लिए पांच उल्कापिंड बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं नासा ने चेतावनी भी जारी की है और कहा है कि हमें से सतर्क रहने की जरूरत है।  चेतावनी जारी करते हुए नासा ने कहा है कि इससे पहले इतने नजदीक से गुजरने वाले और कोई उल्का पिंडों को नहीं देखा गया।

 पृथ्वी के यह कितना निकट आएगा इसके लिए नासा पृथ्वी से उसकी दूरी की माप में जुट गया है। नासा पृथ्वी से इन स्टूडेंट्स के बीच की दूरी को ट्रैक करने के लिए Asteroid Watch Widget  का उपयोग करता है। कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में नासा जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी के अनुसार, 4.6 मिलियन मील की दूरी के भीतर 5 उल्का पिंड पृथ्वी से गुजरने वाली हैं। पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की औसत दूरी लगभग 239,000 मील यानि 385,000 किलोमीटर है। 

11 सितंबर को जिन तीन उल्कापिंड ओके धरती के करीब आने की संभावना है उनमें 2020 RT1, 2020 RM और 2020 RA1 शामिल है।  इनकी धरती से दूरी क्रमशः 4,400,000 मील, 651,000 मील और 2,070,000 मील है। इन उल्का पिंडों का आकार क्रमशः 140 फीट, 44 फीट और 92 फीट निर्धारित किया जाता है।

12 सितंबर को आने वाले उल्कापिंड को को 2012 आरएम 15 के रूप में जाना जाता है जो लगभग 140 फीट के आकार का है और यह 3,550,000 मील की दूरी से गुजर रहा होगा। अन्य निकट दृष्टिकोण 13 सितंबर को होने वाला है और ऑब्जेक्ट का नाम 2020 आरबी 1 है। यह 50 फीट के अनुमानित आकार का है और यह 2,790,000 मील की दूरी पर अपना रास्ता जारी रखेगा। 

जाने क्या है स्ट्राइड वॉच विडेज Asteroid Watch Widget

नासा की जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी की आधिकारिक साइट के अनुसार एस्टेरॉयड वॉच विजेट एक ऐसी मशीन है जो क्षुद्रग्रहों और धूमकेतुओं को ट्रैक करती है जो पृथ्वी के अपेक्षाकृत करीब पहुंचेंगे। विजेट दृष्टिकोण का प्रदर्शन करने और प्रत्येक मुठभेड़ के लिए पृथ्वी से निकटतम दृष्टिकोण, अनुमानित वस्तु व्यास, सापेक्ष आकार और पृथ्वी की दूरी को प्रदर्शित करने के लिए उपयोग किया जाता है।

जाने क्या होता है उल्का पिंड

अंतरिक्ष में एक जगह से दूसरी जगह की दूरी तय करने के दौरान वह तीव्रता से जाती हुई जो वस्तुएं दिखाई देती है या पिंड दिखाई देते हैं उनको उल्का कहते हैं साधारण बोलचाल की भाषा में इन्हें लूका भी कहा जाता है। इनकी तीव्रता इतनी तेज होती है कि इनका कुछ भाग टूट कर पृथ्वी पर आ गिरता है जिन्हें हम उल्कापिंड के नाम से जानते हैं।

हर रात को उल्काएं अनगिनत संख्या में देखी जा सकती हैं लेकिन इनमें से पृथ्वी पर गिरनेवाले पिंडों की संख्या काफी अल्प होती है। वैज्ञानिक दृष्टि से इनका महत्व बहुत अधिक है क्योंकि एक तो ये अति दुर्लभ होते हैं, दूसरे आकाश में विचरते हुए विभिन्न ग्रहों इत्यादि के संगठन और संरचना (स्ट्रक्चर) के ज्ञान के प्रत्यक्ष स्रोत केवल ये ही पिंड हैं। इनके अध्ययन से ये भी पता चलता है कि भूमंडलीय वातावरण में आकाश से आए हुए पदार्थ पर क्या-क्या प्रतिक्रियाएं होती हैं. इस प्रकार ये पिंड ब्रह्माण्डविद्या और भूविज्ञान के बीच संपर्क स्थापित करते हैं।

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