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गजच्छाया योग में करें श्राद्ध तो मिलेगा अनन्त गुना लाभ

shrasha parv गजच्छाया योग में करें श्राद्ध तो मिलेगा अनन्त गुना लाभ

गजच्छाया योग क्या है और कैसे बनता है, इस आलेख में हम आपको बतायेंग पूरी जानकारी विस्तार से

  • धार्मिक डेस्क || भारत खबर

श्राद्ध पक्ष के दौरान कई सारी बातों का ध्यान रखना महत्वपूर्ण होता है लेकिन इस दौरान एक विशेष क्रिया ऐसी है जिसे करने से अनंत गुना ज्यादा लाभ मिलता है। शास्त्र का वचन है- ‘श्रद्धया इदं श्राद्धम’ अर्थात् श्रद्धापूर्वक अपने पितरों के निमित्त किया गया कर्म ही श्राद्ध है। श्राद्ध का समय समय हर साल भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से प्रारंभ होकर आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक रहता है।

इस अवधि काल में शास्त्रों में उल्लेखित विधियों के अनुसार लोग अपने पितरों को तर्पण करते हैं और उनसे अपने लिए शुभकामना मांगते हैं। कहते हैं कि श्राद्ध के लिए गया, पुष्कर, प्रयाग, हरिद्वार व ब्रह्मकपाली (बद्रीनाथ) आदि तीर्थों का विशेष महत्व है। श्राद्ध कर्म करने के लिए महालय अर्थात श्राद्ध पक्ष ही सर्वोत्तम है किंतु यदि श्राद्ध पक्ष में ‘गजच्छाया-योग’ मिल जाए तो यह अत्यंत ही उत्तम व सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त बन जाता है। इसके अतिरिक्त किसी पवित्र नदी के तट पर भी श्राद्ध करने का विधान शास्त्रों में निर्देशित है। 

श्राद्ध पक्ष के अतिरिक्त भी यदि ‘गजच्छाया योग’ मिले तो उसमें श्राद्ध अवश्य करना चाहिए। ‘गजच्छाया योग’ अत्यंत दुर्लभ होता है व कई वर्षों के उपरांत बनता है। इस योग में किए गए इस श्राद्ध से अनेक गुना ज्यादा फल मिलता है।

गजच्छाया योग क्या है

जिस दिन त्रयोदशी तिथि को मघा नक्षत्र हो एवं सूर्य हस्त नक्षत्र पर हो उस दिन ‘गजच्छाया-योग’ का निर्माण होता है। ‘गजच्छाया योग’ में श्राद्ध करने से अनंत पुण्य मिलता है। हालांकि इस वर्ष श्राद्ध पक्ष में ऐसा कोई सहयोग नहीं बन रहा है।

किस समय श्राद्ध अर्पण करना सबसे उचित होता है

श्राद्ध अर्पण करते समय सबसे महत्वपूर्ण बात होती है समय की किस समय अर्पण करना चाहिए और किस तरह पर करना चाहिए यह दोनों चीजें बेहद मायने रखती है क्योंकि कोरना का समय चल रहा है तो ऐसे में हमें खुद ही यह काम करना है हो सकता है कि आपके यहां आस-पास इस कर्म को संपन्न कराने के लिए कोई पंडित ना मिल सके। पुराणों के अनुसार, श्राद्ध करने का सबसे उत्तम समय है कुतप काल। इस समय में श्राद्ध करने से पूरा फल प्राप्त होता है।

आइए जानते हैं कि क्या है कुतप काल

ये दिन का आठवां प्रहर होता है। घड़ी के मुताबिक, दोपहर करीबन 11:30 बजे से 12:30 बजे के बीच का समय कुतप काल कहलाता है। इस समय में तर्पण, पिंडदान, दान आदि करना चाहिए।

17 सितंबर तक चलेगा पितृपक्ष

श्राद्ध पक्ष 2 सितंबर से 17 सितंबर तक चलेगा और श्राद्ध में तर्पण से पूर्वजों की आत्मा को संपन्नता और दृष्टि मिलती है। इन दिनों दूध चावल शहद आदि मिलाकर पिंड बनाए जाते हैं और उन्हें किसी पक्षी गाय या किसी कुत्ते को खिलाया जाता है। माना जाता है कि इससे पितरों की आत्मा को शांति मिलती है, इसके अलावा श्राद्ध के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराना व उन्हें नाना प्रकार की वस्तुयें देना फलदायी माना जाता है।

 

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