भारत सहित कई देशों को राष्ट्रगान देने वाले रविंद्रनाथ टैगोर की आज पुणयतिथि है। उनकी पुणयतिथि पर उनके जीवन की उपलब्धियों के बारे में हर जगह बात हो रही है। और हो भी क्यों न क्योंकि रविंद्रनाथ टैगोर का पूरा ही जीवन प्रेरणा से भरा हुआ है।
रवींद्रनाथ टैगोर का जन्म कलकत्ता के जोड़ासांको ठाकुरबाड़ी में हुआ था। रवींद्रनाथ टैगोर का 7 अगस्त 1941 को कोलकाता में निधन हुआ था। हमारे देश का राष्ट्रगान तो उनका लिखा है ही साथ ही बांग्लादेश का एंथेम भी उन्हीं का लिखा है। साथ ही श्रीलंका के राष्ट्रगान के सुरों में उनका असर है। वो शायद पहले ऐसे शख्स हैं, जिन्होंने ये खास उपलब्धि हासिल की हुई है।
रवींद्रनाथ टैगोर को ‘गुरुदेव’ भी कहा जाता है। बचपन में ही उनका रुझान कविता और कहानी लिखने की ओर हो चुका था। उन्होंने अपनी पहली कविता 8 साल की उम्र में लिखी थी। 1877 में वह 16 साल के थे जब उनकी पहली लघुकथा प्रकाशित हुई थी। गुरुदेव को उनकी सबसे लोकप्रिय रचना गीतांजलि के लिए 1913 में नोबेल अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था।
टैगोर को ‘नाइटहुड’ की उपाधि भी मिली हुई थी. जिसे टैगोर ने जलियांवाला बाग हत्याकांड (1919) के बाद अपनी लौटा दिया था. 1921 में उन्होंने ‘शांति निकेतन’ की नींव रखी थी. जिसे ‘विश्व भारती’ यूनिवर्सिटी के नाम से भी जाना जाता है. टैगोर को बाद में गीतांजलि काव्य संकलन के लिए नोबल पुरस्कार हासिल हुआ।
रविन्द्र नाथ टैगोर की शिक्षाों को आज भी याद किया जाता है। इसके साथ ही उनके दिखाए हुए रास्तों का अनुसरण आज भी लोग करते हैं। यही कारण है कि, उनके मरने के इतने साल बाद भी उनकी शिक्षाओं और उनकी कला ने उन्हें लोगों के दिलों में जिन्दा रखा है।
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टैगोर के राष्ट्रवाद संबंधी विचारों की तो आज भी धाक है। कवि, कहानीकार, गीतकार, संगीतकार, निबंधकार, नाटककार और चित्रकार सभी रहे रवींद्रनाथ टैगोर वाकई अपनी प्रतिभा में बेजोड़ थे। उनका व्यक्तित्व ऐसा भव्य और आकर्षक कि किसी को भी आकर्षित कर ले।