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रिफ्यूजी के दर्द की कहानी बयां करती है ये फिल्मे, आप भी नेटफिलक्स पर देखकर जान सकते हैं इनके बारे में

refugee रिफ्यूजी के दर्द की कहानी बयां करती है ये फिल्मे, आप भी नेटफिलक्स पर देखकर जान सकते हैं इनके बारे में

कोई भी इंसान किसी भी देश में शरणार्थी बनकर रहना पंसद नहीं कर करता लेकिन हालात उनको ऐसा करने पर मजबूर कर देते हैं।

नई दिल्ली।  कोई भी इंसान किसी भी देश में शरणार्थी बनकर रहना पंसद नहीं कर करता लेकिन हालात उनको ऐसा करने पर मजबूर कर देते हैं। दुनिया में ना जाने कितने ऐसे लोग हा जो अपनी जमीन जायदाद सब गवां कर दर-ब-दर की ठोकरे खा रहे हैं। जिनको अपना मुल्क छोड़कर दूसरे मुल्क में रहने लगे है। 20 जून 2020 को वर्ल्ड रिफ्यूजी डे है। इस मौके पर हम आपको ऐसी फिल्मों के बारे में बताने जा रहे जो शरणार्थियों की दर्दभरी कहानी बयां करती है।

बीस्ट ऑफ नो नेशन-

इस फिल्म को 2015 में रिलीज किया गया था। ये एक अमेरिकन मूवी है। इस फिल्म को एक मासूम ल़के की कहानी के उपर बनाया गया था। जिसने अपने देश को बचाने के लिए छोटी उम्र में सैनिक बन गया था। इस कहानी को फिल्म में बारीकी से दिखाया गया था कि कैसे एक छोटे से बच्चे के अंदर संवेदनशीलता आ जाती है और वो छोटी सी उम्र में सैनिक बन जाता है। उस बच्चे के अंदर आक्रोश दिखाई देता है ये आक्रोश देश के प्रति उस छोटे से लड़के की भावना का प्रतिबिंब होती है।

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अमेरिका में इसे थियेटर में ज्यादा जगह नहीं मिली और बॉयकॉट का सामना भी करना पड़ा था। मगर अंत में फिल्म को नेटफ्लिक्स पर रिलीज किया गया।

बॉर्न इन सीरिया

ये फिल्म 6 नवंबर, 2016 को रिलीज की गई थी। सीरिया में चल रही हिंसा पर ये फिल्म बनाई गई थी। साल 2011 के मुताबिक करीब 9 मिलियन लोगों को सीरिया में अपना घर छोड़ना पड़ा था। इसमें से आधे तो बच्चे ही थे। ये बच्चे इतनी विपरीत परिस्थितियों में गुजारा करने के काबिल नहीं थे। फिल्म के निर्माता-निर्देशक Hernán Zin थे।

फर्स्ट दे किल्ड माई फादर

ये फिल्म 2017 में रिलीज हुई थी। ये फिल्म एक बायोग्राफिकल हिस्ट्री थ्रिलर फिल्म थी। फिल्म में उंग नाम के एक 5 साल के बच्चे की कहानी दिखाई गई है जिसे जबरदस्ती सैनिक बनाने के लिए मजबूर होना पड़ता है। फिल्म का निर्देशन एंजलीना जोली ने किया था। इसकी कहानी वियतनाम वॉर के दौरान की कहानी है। फिल्म बॉक्स ऑफिस पर खास कमाल नहीं दिखा पाई थी मगर फिल्म को क्रिटिक्स से अच्छा रिस्पॉन्स मिला था। इसके अलावा फिल्म कंबोडियन सिनेमा की ओर से ऑस्कर के लिए भी भेजी गई थी मगर नॉमिनेशन में जगह नहीं बना सकी थी। वहीं भारत में भी इससे रिलेट्ड कई फिल्मे बनी है। जिनमें अपना सबकुछ छोड़कर दूसरे देशों में आकर रह रहे हैं।

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