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क्या फणनवीस का साथ छोड़ शिवसेना का हाथ थामने वाली हैं पंकजा मुंडे

PANKAJA MUNDE क्या फणनवीस का साथ छोड़ शिवसेना का हाथ थामने वाली हैं पंकजा मुंडे

मुंबई। महाराष्ट्र में भाजपा को स्थापित करने वाले दिवंगत गोपीनाथ मुंडे की बेटी, भाजपा की फायर ब्रांड नेता और राज्य की पूर्व मंत्री पंकजा मुंडे की एक फेसबुक पोस्ट से महाराष्ट्र के राजनीतिक हलके में एक बार फिर उथल-पुथल के संकेत मिल रहे हैं। पंकजा मुंडे मराठावाडा की परली सीट पर अपने चचेरे भाई धनंजय मुंडे से हाल ही में विधानसभा का चुनाव हारी हैं। अपनी इस हार को पंकजा पचा नहीं पाई हैं। वह पब्लिक के सामने और अपने समर्थकों के बीच तब से खामोश हैं। लेकिन भाजपा के कई बड़े नेताओं के समक्ष वह अपनी व्यथा व्यक्त कर चुकी हैं। बड़े नेताओं को पंकजा यह बता चुकी हैं कि वह चुनाव हारी नहीं हैं, उन्हें चुनाव हरवाया गया है। पंकजा ने ऐसी कई बातें वरिष्ठ नेताओं को सबूत के साथ बताई हैं कि किस तरह उन्हें चुनाव हरवाने के लिए काम किया गया। सूत्र बताते हैं कि वरिष्ठ नेताओं के समक्ष व्यथा व्यक्त करते वक्त पंकजा का सारा रोष पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के खिलाफ रहा है।

अपनी हार से आहत पंकजा मुंडे ने फेसबुक पर एक भावुक पोस्ट लिखकर अपने समर्थकों को 12 दिसंबर के दिन गोपीनाथ मुंडे की जयंती पर बीड के गोपीनाथगढ पहुंचने को कहा है। ऐसे में सवाल यह है कि क्या उस दिन पंकजा वही सब कहेंगी, जो वह भाजपा के वरिष्ठ नेताओं को बता चुकी हैं? क्या वह इस बात का खुलासा करेंगी कि उनकी हार में किस-किस का हाथ है? क्या वह इस बहाने राज्य की ओबीसी राजनीति में कोई नया कार्ड प्ले करने जा रही हैं? यह और इस तरह के तमाम सवाल रविवार को मुंबई से लेकर बीड तक चर्चा में रहे। भाजपा के कुछ बड़े नेताओं से जब इस बारे में चर्चा की, तो उनका कहना था कि पंकजा मुंडे नाराज जरूर हैं, लेकिन ऐसा नहीं लगता कि वह पार्टी के खिलाफ कुछ करेंगी। हालांकि इन नेताओं का कहना है कि किसी व्यक्ति विशेष के बारे में अगर उनके मन में गुस्सा है, तो वह उसे अपने समर्थकों के समक्ष प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से व्यक्त कर सकती हैं। जब इस बारे में पंकजा से बात करने की कोशिश की गई तो उनसे संपर्क नहीं हो पाया।

चुनाव हारने के बाद से बड़े नेताओं के साथ चर्चा में पंकजा मुंडे लगातार एक मुद्दा पूरे फोर्स के साथ उठाती रही हैं कि देवेंद्र फडणवीस की सरकार ने कैसे राज्य में भाजपा के ओबीसी नेताओं को खत्म करने की कोशिश की है। उन्होंने कई बार अपने करीबी लोगों के साथ भी इस बात को उठाया है कि इस चुनाव में भाजपा के प्रमुख ओबीसी नेताओं को राजनीति की मुख्यधारा से हटाने का काम सुनियोजित तरीके से किया गया। पहले एकनाथ खडसे को अलग-थलग किया गया। फिर उन्हें चुनाव हरवाया गया। राज्य मंत्री रहे राम शिंदे को चुनाव हरवाया गया। पांच साल सत्ता में रहने के बाद भी धनगर समाज को आरक्षण का मुद्दा भी जानबूझकर प्रलंबित रखा गया। पंकजा को लग रहा है कि उन्हें राजनीतिक रूप से नुकसान पहुंचाने के लिए यह सब किया गया।

भाजपा सूत्रों के मुताबिक, पंकजा अब विधायक भी नहीं हैं। राजनीतिक बेरोजगारी की यह स्थिति किसी को भी व्यथित कर सकती है। राज्य में अगले पांच साल या भाजपा सरकार वापस आने तक कुछ मिलने की स्थिति नहीं है। ऐसे में उन्हें अपना राजनीतिक वजूद बचाने के लिए केंद्रीय मदद की जरूरत है। राज्यसभा नहीं तो कम से कम मंत्री दर्जा प्राप्त किसी केंद्रीय संस्थान का अध्यक्ष तो उन्हें नियुक्त किया ही जा सकता है। बहुत संभव है कि पंकजा इसके लिए दबाव बनाने की कोशिश कर रही हों।

पंकजा मुंडे ने मराठी में एक लंबी पोस्ट लिखी है। उसका हिंदी में संक्षिप्त लब्बोलुआब यह है- ‘राज्य में बदले राजनीतिक परिदृश्य को देखते हुए यह सोचने और निर्णय लेने की आवश्यकता है कि आगे क्या किया जाए। मुझे स्वयं से बात करने के लिए आठ से 10 दिन की आवश्यकता है। मौजूदा राजनीतिक बदलावों की पृष्ठभूमि में भावी यात्रा पर फैसला किए जाने की आवश्यकता है। अब क्या करना है? कौन सा मार्ग चुनना है? हम लोगों को क्या दे सकते हैं? हमारी ताकत क्या है? लोगों की अपेक्षाएं क्या हैं? मैं इन सभी पहलुओं पर विचार करूंगी और आपके सामने 12 दिसंबर को आऊंगी।

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