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कविता: ‘माँ अब जब मिलती है’ : ऋचा चतुर्वेदी

richa chaturvedy कविता: 'माँ अब जब मिलती है' : ऋचा चतुर्वेदी

माँ अब जब मिलती है …

माँ अब जब भी मिलती है,
बिलकुल नानी सी लगती है।

बेकार चिंता करती है,
मैं तो बिलकुल ठीक हूँ,
अपने दर्द छिपा कर कहती है।
परियों की कहानी सी लगती है।

तुझे सिर दर्द हो जाता है,
धूप में कम निकलना,
मुझको मुझसे ज्यादा समझती है।
बड़ी हैरानी सी लगती है।

देख अपना ध्यान रख,
अपने हिसाब से आजाना जब चाहे,
कहकर गले जब मिलती है।
सारी दुआए याद उसे जुबानी लगती है।

मेरे हाथ में कुछ जब रखती है,
एक चमक उसके चेहरे पर उभरती है।
माँ की कसम उस मिनट मुझे,
सारी दुनियाँ बेमानी सी लगती है …….

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