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45 वर्ष की महिला को तीसरी बार लगाया किडनी, ऑपरेशन हुआ सफल

operation 45 वर्ष की महिला को तीसरी बार लगाया किडनी, ऑपरेशन हुआ सफल

एजेंसी, नई दिल्ली। राष्ट्रीय राजधानी के एक अस्पताल में 45 वर्षीय महिला एतिका कालरा का तीसरी बार सफल गुर्दा प्रत्यारोपण (किडनी ट्रांसप्लान्ट) हुआ। महिला के पति ने अपनी किडनी देकर उसकी जान बचाई। चिकित्सकों ने इस बात की जानकारी दी। इन्द्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल्स के जनरल सर्जरी, जीआई सर्जरी एवं ट्रांसप्लान्टेशन के सीनियर कन्सलटेन्ट डॉ. (प्रोफेसर) संदीप गुलेरिया (पद्मश्री विजेता) और उनकी टीम ने इस मुश्किल ट्रंसप्लान्ट को सफलतापूर्वक किया। सर्जरी के बारे में बताते हुए डॉ. संदीप गुलेरिया ने कहा, “1996 में जब महिला 23 साल की थी और हाल ही में उनकी शादी हुई थी, तभी एक नियमित जांच में पता चला कि उनके गुर्दे सिकुड़ रहे हैं।

जांच करने पर पता चला कि वे ग्लोमेरूलोनेफ्राइटिस से पीड़ित हैं, इसमें किडनी का खून छानने वाले अंग खराब हो जाते हैं। तभी से महिला इस बीमारी से लड़ रही हैं। उन्होंने कहा, “पहले तो उन्होंने आयुर्वेदिक तरीकों से इलाज करवाया, लेकिन उन्हें बिल्कुल आराम नहीं मिला। उनके खून में क्रिएटिनाईन का स्तर लगातार बढ़ रहा था। दिसम्बर 2000 में उनके गुर्दो ने काम करना बिल्कुल बंद कर दिया और उन्हें नियमित डायलिसिस शुरू करना पड़ा। 2001 में उन्होंने पहली बार किडनी ट्रांसप्लान्ट करवाया। उस समय उनकी बड़ी बहन अंशु वालिया ने उन्हें अपनी किडनी दान में दी थी।

एक दशक तक यह किडनी ठीक से काम करती रही, लेकिन डोनेट किए गए अंग की लाइफ सीमित होती है, 2014 में उन्हें फिर से समस्या होने लगी। डॉ. संदीप गुलेरिया ने कहा कि जांच करने पर पता चला कि उनकी पहली किडनी ने काम करना बंद कर दिया था और अब हम उन्हें डायलिसिस पर भी नहीं रख सकते थे। उनकी हालत तेजी से बिगड़ने लगी। हमने फिर से ट्रांसप्लान्ट करने का फैसला लिया। अब उनकी दूसरी बहन रितु पाहवा ने उन्हें किडनी डोनेट की। डॉ. गुलेरिया ने ऑपरेशन में आई अप्रत्याशित जटिलताओं पर बात करते हुए कहा, “दूसरे ट्रांसप्लांट के कुछ ही दिनों बाद, जब महिला आईसीयू में थीं तब उन्हें तेज पेट दर्द की शिकायत हुई।

जांच करने पर पता चला कि उनकी आंत (इंटेस्टाईन) में गैंग्रीन हो गया था। हमें तुरंत उनकी जान बचाने के लिए मेजर सर्जरी करनी पड़ी और यह सब तब हुआ जब वह दूसरे किडनी ट्रांसप्लांट के बाद धीरे-धीरे ठीक हो रही थीं। दुर्भाग्य से दूसरी किडनी भी सिर्फ चार साल तक चली, जिसके बाद इसने भी काम करना बंद कर दिया। उन्होंने बताया, यह ट्रांसप्लान्ट किए गए अंग के लिए एक्यूट एंटीबॉडी रिजेक्शन का मामला था, जिसमें महिला के खुद के इम्यून सिस्टम ने किडनी को नुकसान पहुंचाना शुरू कर दिया। इस समय हमारे पास दो ही विकल्प थे, या तो फिर से किडनी ट्रांसप्लान्ट किया जाए या उन्हें शेष जीवन के लिए डायलिसिस पर रखा जाए।

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