भोपाल। मध्य प्रदेश के चर्चित जमीन घोटाला मामले में एक अजीबो-गरीब मोड़ सामने आया है। इस मामले को लेकर गठित की गई लोकायुक्त की विशेष पुलिस टीम के एक वरिष्ठ अधिकारी ने जांच के दौरान नौ साल पहले मर चुके किसान का न सिर्फ बयान दर्ज किया है, बल्कि भोपाल की विशेष अदालत में इसे जमा भी कर दिया। इस मामले में जब पीड़ित पक्ष ने किसान का मृत्यु प्रमाणपत्र अदालत में जमा करवाया तब जाकर ये गड़बड़ी सामने आई। इस तरह के कृत्य के सामने आने के बाद सीधे तौर पर जांच ऐजेंसी पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं।
दरअसल ये मामला 800 एकड़ कृषि भूमि से जुड़ा हुआ है, जोकि 141 किसानों के नाम पर थी। दरअसल इन किसानों ने जिला सहकारी ग्रामीण विकास बैंक और भूमि विकास बैंक से लोन लिया था, लेकिन ये किसान अपना कर्ज चुका नहीं पाए थे। इस मामले ने घोटाले का रूप तब लिया जब बिना किसानों से पूछे अधिकारियों ने उनकी जमीनों को नीलाम कर दिया। नीलामी को लेकर पीड़ित किसानों का कहना था कि कलेक्टर की गाइडलाइन के हिसाब से इन जमीनों की कीमत लगभग 1600 करोड़ रुपये थी, लेकिन हमारी जमीनों को केवल 1.5 करोड़ रुपये में ही नीलाम कर दिया गया।
इसके बाद किसानों ने इसकी शिकायत लोकायुक्त से की थी, जिसके बाद पुलिस ने 4 जुलाई 2013 को एफआईआर दर्ज की। इस एफआईआर में कई अधिकारी और जमीन खरीदने वाले लोग शामिल थे। मामले की जांच शुरू करने के बाद इस केस से जुड़े सभी लोगों के बयान दर्ज किए गए और सारे सबूतों और दस्तावेजों के साथ कोर्ट में चार्जशीट भी दायर की गई, जिसके बाद मामले की सुनवाई शुरू की गई। इस मामले में पीड़ित श्रीराम के बेटे राधेलाल का बयान भी लिया गया। राधेलाल भोपाल की हुजूर तहसील के सगोनी कल्याण गांव के निवासी थे।
उनका बयान 20 अप्रैल 2013 को लिया गया और कोर्ट में जमा किया गया। बयान में राधेलाल ने कहा कि उसने 8,000 रुपये का लोन बैंक से लिया था लेकिन वो लोन वापस नहीं कर सके। बाद में उसकी 7.10 एकड़ जमीन अधिकारियों ने बिना उसकी अनुमति के बेच दी। यहां तक कि आरोपी पक्ष की तरफ से विशेष कोर्ट में राधेलाल का मृत प्रमाणपत्र भी दाखिल कर दिया गया। इस प्रमाणपत्र से खुलासा हुआ है कि राधेलाल की मृत्यु उसके बयान देने से 9 साल पहले हो गई थी। ऐसे में जांच टीम ने उसका बयान कैसे लिया?