एजेंसी, नई दिल्ली। उड़ान योजना की सफलता से उत्साहित सरकार ने देश के विभिन्न हिस्सों में बेकार पड़ी तथा कम इस्तेमाल वाली हवाई पटि्टयों को पूरी तरह से विकसित करने की समय सीमा बढ़ा दी है जिनके विकास पर 4500 करोड़ रुपए की लागत आने का अनुमान है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में आज यहां हुई आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति की बैठक में इस आशय के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई।
राज्य सरकारों, भारतीय हवाई अड्डा प्राधिकरण, सिविल एंकलेव और केंद्र के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की इन हवाई पट्टियों, हेलिपैड़ों तथा वाटर एयरोड्रम के विकास पर 4500 करोड़ रुपए की लागत आएगी। इस कदम से जहां क्षेत्रीय संपर्क बढ़ेगा वहीं स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसर भी बढेंगे। इसका बड़ा फायदा यह होगा कि कुछ राज्यों के जो हिस्से अब तक हवाई संपर्क से नहीं जुड़े हैं वे भी हवाई मार्ग से जुड़ जाएंगे।
सरकार ने उडान योजना के 1.0 और 2.0 संस्करण के दौरान 28 बेकार पड़ी तथा 3 कम इस्तेमाल वाली हवाई पट्टियों की पहचान की थी। तीसरे संस्करण के दौरान पर्यटन के पहलू को ध्यान में रखते हुए इसमें वाटर एयरोड्रम के विकास को भी शामिल किया गया।
उड़ान योजना के दो दौर में एयरलाइनों की ओर से अच्छी पहल की गयी और इस दौरान 43 हवाई पट्टियों पर पांच एयरलाइनों को 128 मार्ग आवंटित किए गए। इसके बाद पिछले वर्ष जनवरी में 15 एयरलाइनों को 325 रूट दिए गए। वित्त मंत्री अरूण जेटली ने वर्ष 2016-17 के बजट भाषण में बेकार पड़ी और कम इस्तेमाल वाली एयरलाइनों के लिए पर्याप्त बजटीय प्रावधान करने की घोषणा की थी। सरकार का कहना है कि देश की लगभग 7500 किलोमीटर लंबी तटीय सीमा के आस-पास कई नदियां और ऐसी जगह हैं जहां पर वाटर एयरोड्रम विकसित किये जाने की संभावना पर विचार किया जा सकता है।