सांप्रदायिकता के मामले के कितने उतरे खरे
वहीं एनडीए सरकार के आते ही सांप्रदाय़िकता को लेकर पहले से और सरकार के दौरान कई बार सवाल उठे हैं। जब इस बारे में लोगों से राय मांगी गई तो लोगों का साफ कहना था कि सरकार के कार्यकाल में भले भी ये बातें उठी हो लेकिन काफी हद तक इसका प्रतिशत कम रहा है। 61 फीसदी लोगों का मानना है कि सरकार इस मुद्दे पर सफल रही है। तो वहीं 31 फीसदी लोगों ने ना में जबाब दिया है।
बेरोजगारी की समस्या पर कितने हैं संजीदा
देश में सबसे बड़ी समस्या है युवाओं के रोजगार की एनडीए सरकार ने अपने पहले साल की कार्यकाल में ही मेक इन इंडिया के जरिए स्वरोजगार के अवसरों को तलाशने और उसे बढ़ावा देने के लिए कई प्रोजेक्ट लांच किए। लेकिन जब लोगों से इस बारे में राय जानने की कोशिश की गई तो परिणाम सरकार के योजनाओं और मनसूबों से इतर निकले 63 फीसदी लोगों का माना है कि रोजगार के अवसरों में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया है। तो वहीं 21 फीसदी लोगों ने माना है कि बेरोजगारी की दर पहले की अपेक्षा कम हुई है।
मोदी सरकार के साथ भविष्य होगा कैसा
वहीं जब लोगों से अपने आने वाले कल और भविष्य को लेकर मौजूदा सरकार के रवैये को बेहतर बताया है। तकरीबन 69 फीसदी लोग अपने बेहतर भविष्य के लिए मौजूदा सरकार को बेहतर मानते हैं। तो वहीं 21 फीसदी लोगों का कहना है सरकार के रवैये से उन्हें कोई खास उम्मीद नहीं दिख रही है। देश में व्यापार में अपना भविष्य तलाशने वालों की माने तो 36 फीसदी की राय है देश में अब व्यापार करना पहले से आसान है तो वहीं 36 फीसदी लोगों का कहना है पहले से राहें मुश्किल हैं। जबकि 28 फीसदी लोगों ने इस बारे में कोई जबाब नहीं दिया है।
स्वच्छ भारत अभियान और अन्य सेवा के मोर्चे पर कितने सफल
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2 अक्टूबर 2014 से देश में एक बड़ा अभियान छेड़ा है स्वच्छ भारत अभियान । इस अभियान के तहत सरकार ने करोड़ों का बजट भी दिया है। इस अभियान के तहत देश में व्यक्तिगत शौचालय शहरी और ग्रामीण इलाकों में बनाने के साथ ग्रामीण इलाकों में ग्राम पंचायत स्तर पर पारस्परिक संवाद, कार्यान्वयन और वितरण तंत्र को मज़बूती के साथ-साथ लोगों में व्यावहारिक बदलाव लाने पर बल दिया गया है। लेकिन इस परियोजना की जमीनी हकीकत जानने की कोशिश जब सर्वे के जरिए हुई तो परिणाम थे कि 57 फीसदी लोगों का कहना है कि शहरों की साफ सफाई में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया है। तो वहीं 35 फीसदी लोगों ने माना है कि पहले से इस मामले में काम दिख रहा है। स्वास्थ्य सेवाओं और अन्य सेवाओं में सुधार के मामले में 58 फीसदी लोगों का कहना है कि कोई सुधार नहीं दिखा है। 23 फीसदी मानते है पहले से सुधार आया है।