कोहिमा। 27 फरवरी को नगालैंड में विधानसभा का चुनाव होना है, लेकिन इससे पहले ही राज्य की सत्ता पर काबिज नगा पीप्लस फ्रंट, बीजेपी, कांग्रेस सहीत 11 दलों ने 27 फरवरी को होने वाले विधानसभा चुनाव में शामिल न होने का फैसला लिया है। दरअसल लंबित नगा राजनीतिक समस्या को पहले सुलझाने के लिए आदिवासी संगठनों और नागरिक समाज समूहों की मांगों का इन सियासी दलों ने समर्थन किया है।
इन दलों ने एक सुर में कहा है कि जबतक केंद्र सरकार दशकों पुरानी नगा लोगों की समस्याओं को नहीं सुलझा लेती तब तक वे सियासी मैदान में अपने प्रत्याशी नहीं उतारेंगे। सभी राजनीतिक दलों का मानना है कि केंद्र और नगा नागरिक समूहों के बीच के 2015 में दिल्ली में पीएम नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में शांति समझौता के लिए फ्रेमवर्क अग्रीमेंट हुआ था। उस दिशा में अभी कोई कार्य नहीं हुआ है। नगालैंड आदिवासी होहो और नागरिक संगठन की कोर कमेटी की बैठक में चुनाव का बहिष्कार करने का फैसला लिया गया है, जिसमें 11 दलों के प्रतिनिधि भी मौजूद थे।
11 दलों द्वारा संयुक्त पत्र में दस्तखस्त किए गए, जिसमें लिखा गया है कि वे 27 फरवरी को राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव में भाग नहीं लेंगे। इन दलों में नगा पीपल्स फ्रंट के अलावा कांग्रेस,बीजेपी की राज्य यूनिट, नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक पीपल्स पार्टी, नगालैंड कांग्रेस, यूनाइटेड नगालैंड डेमोक्रेटिक पार्टी, आम आदमी पार्टी, नेशनल कांग्रेस पार्टी, लोक जन पार्टी, जनता दल युनाइटेड और नेशनल पीपल्स पार्टी शामिल है।
घोषणापत्र में कहा गया है कि नगा लोगों की सर्वसम्मत राय है कि राजनीतिक समाधान या नगा शांति समझौता, चुनाव से ज्यादा महत्वपूर्ण है। इस वजह से अमन चैन के लिए नगालैंड के विधानसभा चुनाव को टालना जरूरी है। केंद्र को भेजे गए अपने कड़े संदेश के साथ सीसीएनटीएचसीओ ने चुनाव आयोग के चुनाव की अधिसूचना घोषित करने के एक दिन बाद यानी गुरुवार को बंद बुलाया है। सभी राजनीतिक पार्टियों के साथ नगालैंड आदिवासी होहो-नागरिक संगठन की कोर कमिटी और छह अलग संगठन ने प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित कर संयुक्त घोषणापत्र के बारे में जानकारी दी।