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इन वजहों से उत्तराखंड में भाजपा का सत्ता पाने का सपना हो सकता है चूर

baagi vidhayak 1 इन वजहों से उत्तराखंड में भाजपा का सत्ता पाने का सपना हो सकता है चूर

देहरादून। देवभूमि उत्तराखंड में भाजपा के सत्ता पाने के सपनों पर एक करारा झटका लग सकता है। इस झटके की वजह के खुद भाजपा क्योंकि बीते साल मार्च में सूबे में बदले सियासी समीकरणों ने जबा रावत सरकार को सकते में डाल दिया था तो भाजपा की बाँछें खिल गई थीं। सत्ता के साथ भाजपा को पहाड़ पर सरकार बनाने के सपने को पंख लग गये थे। क्योंकि कांग्रेस से बागी बन जो विधायक भाजपा के पाले में आये वो आने वाले दिनों में भाजपा के लिए सूबे में सत्ताधारी कांग्रेस सरकार के लिए ब्रह्मास्त्र से कम ना थे।लेकिन अब ये ब्रह्मास्त्र भाजपा के लिए ही आने वाले समय में काल बन सकते हैं।

baagi vidhayak 1 इन वजहों से उत्तराखंड में भाजपा का सत्ता पाने का सपना हो सकता है चूर

जरा गौर फरमायें इन बागियों और इनकी सीटों पर तो पता चलाता है इन सीटों पर भाजपा में खुद बड़े और गद्दावर नेता मौजूद हैं जो कि अपना पिछला चुनाव चंद वोटों के फासले से हार गये थे। इसके साथ ही इन नोताओं का जनाधार और जनता में पकड़ वर्तमान के इन बागियों से कहीं ज्यादा है। अब भाजपा के लिए एक बड़ा एक कठिन दौर है कि अगर इनका टिकट कटता है और कहीं ये भाजपा से ठीक चुनावी मौसम में बगावत कर कांग्रेस की राह पकड़ते हैं तो भाजपा के लिए पहले तो ये वर्तमान सीट पर संकट पैदा करेंगे । इसके अलावा अपने जनाधार की ताकत से साथ की अन्य सीटों पर भी भाजपा के समीकरण को बिगाड़ देंगे।

इसके अलावा अगर भाजपा कांग्रेस के बागियों के टिकट काटती है। तो इन बागियों ने साथ जनता के बीच भाजपा की दगेबाजी सामने आयेगी। जिससे भाजपा के लिए जनता में तैयार माहौल पर असर पड़ेगा। अब लगातार भाजपा का शीर्ष नेतृत्व इसी बात के मंथन में लगा है, कि कैसे इस बात को शांति से बेहतर तरीके से सुलझा लिया जाये। क्योंकि अब चुनाव आयोग ने तारीखे फाइनल कर दी हैं। सूबे में चुनावी रण का आगाज हो चुका है। सत्ताधारी दल और भाजपा लगातार एक दूसरे पर हमलावर हैं। लेकिन इस जंग में भाजपा के लिए अब सबसे बड़ा संकट का समय है।

अगर ये होने वाले इस चुनावी सीटों के बंटवारे के पहले अपने संगठन में होने वाले टिकटों के झगड़े को नहीं सुलझा लेती है, तो आने वाले समय में भाजपा के लिए उत्तराखंड की सत्ता पर बैठना एक बार फिर बड़ा सपना ही होगा। क्योंकि भाजपा ने जिसे मीठा गुलगुला समझा था वो अब जहर बनाता जा रहा है। अब इस हलाहल को पीना कैसे होगा ये बड़ा संवेदनशील प्रश्न है।

वहीँ दूसरी ओर ,सतपाल महाराज का पहली बार विधान सभा चुनाव लड़ने का आगाज ने बीजेपी के धुरंधरों के मंसूबो पर पानी फेर दिया हैं क्योंकि अगर महाराज विधान सभा चुनाव लड़ते ह तो ये साफ़ हैं कि सतपाल महाराज ही मुख्यमंत्री पद पर बैठेंगे , और तीन पुर्व मुख्य मंत्रियो को मार्ग दर्शक मंडल का हिस्सा बनना पड़ेगा ।

कांग्रेस बागी विधायक प्रदीप बत्रा के खिलाफ हाई कोर्ट में स्वीकार हुई रीट में बीजेपी के मंसूबो को एक और झटका , आगामी 17 तारिख़ को हाई कोर्ट में सुनवाई तक बागी विधायक प्रदीप बत्रा का भविष्य अधर में हैं , यदि बत्रा के “मुन्ना भाई प्रकरण “में विरुद्ध कोई आदेश आता हैं तो भाजपा की एक सीट काम हो सकती है और मुंह की खानी पड़ सकती हैं ।

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