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क्या है वो चौरी-चौरा कांड, जिसके उपलक्ष्य में योगी सरकार मना रही जश्न,जल्दी से जानें…

WhatsApp Image 2021 02 04 at 12.02.47 PM क्या है वो चौरी-चौरा कांड, जिसके उपलक्ष्य में योगी सरकार मना रही जश्न,जल्दी से जानें…

जलियांवाला बाग नरसंहार के बाद गांधीजी ने सितम्‍बर 1920 से देशभर में असहयोग आंदोलन शुरू किया. इसने भारतीय आजादी की लड़ाई को नई जागृति दी. जब भी गांधीजी के इस आंदोलन की बात चलती है, तब चौरी-चौरा कांड की याद भी इसके साथ जुड़ जाती है. आज उसी चौरी चौरा के 100 साल पूरे हो गए हैं. इसे लेकर उत्तर प्रदेश सरकार आज गोरखपुर में कार्यक्रम भी जिसमें प्रधानमंत्री शिरकत भी की।ऐसे में हमारे लिए यह भी जानना ज़रूरी है की क्या था चौरी-चौरा कांड, जो भारतीय आजादी की लड़ाई में हमेशा हमेशा के लिए अमिट हो गया.दरअसल जब पूरे देश में असहयोग आंदोलन चरम छू रहा था. देशभर के लोगों के असहयोग के कारण अंग्रेज सरकार को पसीने छूटने लगे थे, तब एक ऐसी घटना हुई, जिससे महात्मा गांधी ने इस आंदोलन को वापस ले लिया.
हालांकि बहुत से कांग्रेस नेता इस वजह से उनसे नाराज भी हुए. ये चौरी-चौरा कांड ही था, जिसमें 4 फरवरी 1922 के दिन कुछ लोगों की गुस्साई भीड़ ने गोरखपुर के चौरी-चौरा के पुलिस थाने में आग लगा दी थी. इसमें 23 पुलिस वालों की मौत हो गई थी.नाराज भीड़ ने थाना घेर लिया था।इस घटना में तीन नागरिकों की भी मौत हो गई थी. ये कांड इस खबर के साथ शुरू हुआ कि चौरी-चौरा पुलिस स्टेशन के थानेदार ने मुंडेरा बाज़ार में कुछ कांग्रेस कार्यकर्ताओं को मारा है, इसके बाद लोगों की नाराजगी बढ़ने लगी. गुस्साई भीड़ ने पुलिस स्टेशन को घेरना शुरू किया. देखते ही देखते काफी भीड़ वहां इकट्ठी हो गई.

23 पुलिसकर्मी जलकर मारे गए

इस भीड़ ने पुलिसवालों से थाने से निकलने को कहा. वहीं पुWhatsApp Image 2021 02 04 at 12.02.47 PM क्या है वो चौरी-चौरा कांड, जिसके उपलक्ष्य में योगी सरकार मना रही जश्न,जल्दी से जानें…लिस कर्मी लगातार बढ़ती भीड़ को देखकर अंदर थाने में छिप गए. उसे बाहर से बंद कर लिया. नतीजतन थाने को आग लगा दी गई. इसमें पुलिस थाने में मौजूद 23 पुलिसकर्मी जल गए.ये ऐसी घटना थी, जो बहुत तेजी से साथ देशभर में फैली. ब्रिटिश सरकार के हुक्मरानों के हाथ-पांव फूल गए. यहां तक की गोरखपुर में मौजूद प्रशासन के लोग डर गए कि अब उनका क्या हाल होगा.

गांधीजी ने आंदोलन वापस ले लिया

लेकिन जैसे ही इस हिंसा की खबर महात्मा गांधी के पास पहुंची, उन्होंने 12 फरवरी 1922 को असहयोग आंदोलन वापल ले लिया था. गांधीजी के इस फैसले को लेकर क्रांतिकारियों का एक दल और कांग्रेस के कई शीर्ष नेता उनसे खासे नाराज हुए.16 फरवरी 1922 को गांधीजी ने अपने लेख ‘चौरी चौरा का अपराध’ में लिखा कि अगर ये आंदोलन वापस नहीं लिया जाता तो दूसरी जगहों पर भी ऐसी घटनाएं होतीं.

हालांकि गांधीजी ने पुलिसवालों को ही बताया था कसूरवार

हालांकि गांधीजी ने इस घटना के लिए पुलिस वालों को ही कसूरवार बताया, जिन्होंने ऐसी उकसाने वाली कार्रवाई की, जिससे लोगों में नाराजगी फैली और ऐसा माहौल तैयार हुआ. हालांकि उन्होंने इस मामले में जिम्मेदार लोगों से अपील भी की कि वो खुद को पुलिस के हवाले कर दें, क्योंकि उन्होंने अपराध किया है.

ब्रिटिश सरकार ने राहत की सांस ली

हालांकि आंदोलन वापस लेने के चलते अंग्रेज सरकार ने जहां राहत की सांस ली वहीं आजादी की लड़ाई को बडा़ झटका लगा. अंग्रेजों ने गांधीजी पर ही राजद्रोह का मुकदमा चलाया. मार्च 1922 में उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया. असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में 4 सितंबर 1920 को पारित हुआ था. गांधीजी का मानना था कि अगर असहयोग के सिद्धांतों का सही से पालन किया गया तो एक साल के अंदर अंग्रेज़ भारत छोड़कर चले जाएंगे.

बहुत कामयाब हुआ था असहयोग आंदोलन

असहयोग आंदोलन में सभी वस्तुओं, संस्थाओं और व्यवस्थाओं का बहिष्कार करने का फैसला किया था जिसके तहत अंग्रेज़ भारतीयों पर शासन कर रहे थे. उन्होंने विदेशी वस्तुओं, अंग्रेज़ी क़ानून, शिक्षा और प्रतिनिधि सभाओं के बहिष्कार की बात कही. खिलाफत आंदोलन के साथ मिलकर असहयोग आंदोलन बहुत हद तक कामयाब भी रहा था. लोगों ने स्कूल, कॉलेज जाना छोड़ दिया. नौकरियां त्याग दी थीं. बड़े पैमाने पर हर जगह विदेशी सामानों की होली जलाई जाने लगी थी

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