रिपोटर निर्मल उप्रेती
उत्तराखंड के सांस्कृतिक नगर के नाम से प्रसिद्ध अल्मोड़ा जिलें में अब रामलीला के लिए महीने भर से तैयारी चलती है। यहां की रामलीला में बहुत खास बात है जो शास्त्रीय संगीत के रागों और ठुमरी जैसी विधाओं में की जाती है। उत्तराखंड की सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा में रामलीला के मंचन का इतिहास डेढ़ सौ साल पुराना है।
आज भी यहां सदियों से चली आ रही गौरवशाली परंपरा जिंदा है। रामलीला के मंचन के लिए एक माह तक कलाकार तालीम लेते हैं और रियाज़ करते हैं। यहां की रामलीला की एक खास बात यह भी है कि कलाकार गायन भी खुद करते हैं और रामलीला कई तरह के रागों में गाई जाती है। सांस्कृतिक नगरी में एक दर्जन से ज़्यादा जगहों पर रामलीला का मंचन होता है. कलाकारों की ज़ुबानी जानिए कि परंपरा कितनी ऐतिहासिक और रोचक रही है|
अल्मोड़ा के मंचन करने वाले कलाकार एक माह तक देर रात तक अभ्यास करते हैं। कई दशकों से मंचन कर रहे कलाकार बताते हैं कि रामलीला भैरवी, श्याम कल्याण, जयजयवन्ती, परज, विहाग सहित कई रागों में गाई जाती है।