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यूपी, उत्तराखण्ड और पंजाब में अकेले चुनाव लड़ेगी बसपा

mayawati यूपी, उत्तराखण्ड और पंजाब में अकेले चुनाव लड़ेगी बसपा

लखनऊ। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने भारत निर्वाचन आयोग द्वारा उत्तर प्रदेश सहित देश के पांच राज्यों में विधानसभा आमचुनाव के लिये मतदान कार्यक्रम घोषित करने का स्वागत करते हुए प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए कहा कि बसपा उत्तर प्रदेश के साथ-साथ उत्तराखण्ड व पंजाब इन तीनों ही राज्य में विधानसभा का चुनाव अकेले पूरी तैयारियां पूरी कर चुकी है।

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तीन राज्यों में बसपा अकेले चुनाव लड़ेंगी। मायावती ने साफ किया है कि  बी.एस.पी. मूवमेन्ट के हित के मद्देनज़र किसी के साथ किसी भी प्रकार का कोई गठबंधन या समझौता नहीं किया जायेगा।

शांति और निष्पक्ष चुनाव की अपील

प्रदेश में विधानसभा चुनाव शांति और निष्पक्ष तरीके से संपन्न हो सकें इसके लिए मायावती ने कहा कि प्रदेश की वर्तमान सपा सरकार में हर प्रकार का अपराध काफी बढ़ा ही नहीं है बल्कि काफी चरम पर पहुंच गया है व अराजकता एवं जंगलराज का दौर लगातार जारी है। प्रदेश की सपा सरकार द्वारा पुलिस व प्रशासन को भी संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थ की पूर्ति के लिये लगातार इस्तेमाल किया जाता रहा है। आगे भी सपा की काम चलाऊ सरकार द्वारा सरकारी मशीनरी के दुरूपयोग की आशंका है।

केन्द्रीय सुरक्षा बलों की तैनाती

मायावती ने कहा कि इसलिए निर्वाचन आयोग के सामने यह एक प्रकार की चुनौती है कि यहां उत्तर प्रदेश में विधानसभा का आमचुनाव पूरी तरह से स्वतन्त्र, निष्पक्ष व शान्तिपूर्ण हो तथा खासकर गरीब, कमजोर व उपेक्षित वर्ग के लोग निर्भीक होकर पूरी आज़ादी के साथ अपने मताधिकार का इस्तेमाल कर सकें। उन्होंने कहा कि इसके लिये जरूरी है कि केन्द्रीय सुरक्षा बलों की अधिक से अधिक तैनाती हो और स्थानीय पुलिस पर भी कड़ी नज़र रखी जाये और उन्हें मनमाना व पक्षपाती रवैया अपनाने से रोकना सुनिश्चित हो।

आचार संहिता के पालन के लिए  बैठक

मायावती ने कहा कि आचार संहिता का सख्ती से पालन कराने के लिए बसपा के तमाम कार्यकर्ताओं को नेताओं को निर्देश देने के लिए पार्टी एक बैठक का आयोजन करने जा रही है। हालांकि जैसा कि हर चुनाव में देखने को मिलता है कि विरोधी पार्टियों में से ख़ासकर भाजपा, सपा व कांग्रेस आदि जानबूझकर आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन करती हैं और आयोग को इनसे निपटने में काफी दुश्वारी का सामना करना पड़ता है। ऐसा कड़वा अनुभव खासकर साल 2014 के पिछले लोकसभा के आमचुनाव में देखने को मिल चुका है। इसलिये इस सम्बन्ध में निर्वाचन आयोग को विशेष सतर्क रहने की जरूरत है।

 

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