शख्सियत

रैना तो बीती…नहीं बीता तो, आर डी बर्मन की आवाज का जादू

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नई दिल्ली। पिया तू अब तो आजा, दम मारो दम, रैना बीती जाए जैसे गीतों को देने वाले महान संगीतकार आर डी बर्मन को भुलाना आसान नहीं है। बाॅलीवुड में बहुमुखी प्रतिभा के धनी आर डी बर्मन का पूरा नाम राहुल देव बर्मन था। उनका जन्म 27 जून को 1939 को हुआ था। उनके पिता सचिन देव बर्मन भी हिन्दी सिनेमा के महान संगीतकारों में से एक थे। उन्हें हिन्दी जगत में पंचमदा कहकर पुकारा जाता था।

भिन्न शैली के संगीतकार 

60 से 80 तक के दशक में कई सुपरहिट गीत बनाने वाले पंचमदा ने सारी सीमाएं तोड़ते हुए हिन्दी सिनेमा को अपने अनुभव और प्रतिभा से एक अलग मुकाम पर खड़ा कर दिया था। उन्होंने हर उस चुनौती को अपनाया जो उनकी राहों में आती गई। अपनी अद्वितीय सांगीतिक प्रतिभा के कारण इनका नाम दुनिया के सर्वश्रेष्ठ संगीतकारों में लिया जाता है। पंचमदा की शैली इतनी भिन्न और उस दौर में प्रचलित हो चुकी थी कि हर कोई उनका अनुसरण करने लगा था। कामयाबी के पन्नों में अपना नाम लिख चुके आर डी बर्मन आज हमारे बीच नहीं हैं। संगीत की पुरानी धुनों को छोड़ बर्मन की फितरत कुछ अलग ही थी। संगीत में नए प्रयोग करना, म्युजिक इंस्टरूमेंट से कुछ अलग धुनें बनाना, नई तरह की आवाजों को गानों में इस्तेमाल करना, आदि उनके शौक थे।

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पंचमदा की पढ़ाई-लिखाई कोलकाता में हुई। सेटजेवियर्स काॅलेज में उन्होंने अपनी शुरूआती शिक्षा ली। उन्होंने 9 साल की उम्र में अपना पहला गाना लिखा जिसे फिल्म “फ़ंटूश” में उनके पिता ने इस्तेमाल किया। इसके बाद छोटी सी उम्र में  “सर जो तेरा चकराये …” की धुन तैयार कर लिया जिसे फिल्म “प्यासा” में ले लिया गया जो कि आज भी चाहने वालों की पहली पसंद बना हुआ है। बच्चे हों या बूढ़े हर कोई इस गीत को सुनते ही अपनी सारी परेशानियों को भूल जाता है।

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1970 के दशक में पंचम दा को हर कोई अपना गुरू मानने लगा था। इस 70 से 80 दशक तक उनके गीतों ने खूब वाहवाही बंटोरी। इसके अलावा 1972 में ‘सीता और गीता’, ‘रामपुर का लक्ष्‍मण’, ‘बोम्‍बे टू गोवा’, ‘अपना देश’, ‘परिचय’ जैसी फिल्‍मों में हिट संगीत दिया. इसके बाद 1973 में ‘यादों की बारात’, 1974 में ‘आप की कसम’, 1975 में ‘शोले’ और ‘आंधी’, 1978 में ‘कसमें वादे’, 1978 में ‘घर’, 1979 में ‘गोलमाल’, 1980 में ‘खूबसूरत’, 1981 में ‘सनम तेरी कसम’ जिसके लिए उन्‍हें फिल्‍मफेयर अवॉर्ड मिला, ‘रॉकी’, ‘मासूम’, ‘सत्ते पे सत्ता’, ‘लव स्‍टोरी’ जैसी फिल्‍मों में भी पंचम दा ने अपने संगीत से उन्हें यादगार बना दिया।

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ऐसा रहा जिंदगी का सफर

पंचमदा ने अपनी संगीतबद्ध की हुई 18 फिल्मों में आवाज देने के साथ-साथ प्यार का मौसम में एक्टिंग भी की। पंचम दा की निजी जीवन के बारे में ज्यादा बातें नहीं हुई लेकिन जीवन के अंतिम समय में वो बिल्कुल अकेले हो गए थे। उनकी पहली पत्नी रीता पटेल से उन्होंने 1996 में शादी की थी लेकिन ये रिश्ता ज्यादा समय तक नहीं चल पाया 1971 में उनका पत्नी से तलाक हो गया। कहा जाता है कि फिल्‍म ‘परिचय’ का गाना ‘मुसाफिर हूं यारो, न घर है न ठिकाना’ की धुन उन्‍होंने तलाक के बाद एक होटल में लिखी थी। काफी समय बाद 1980 उन्होंने आशा भोसले से शादी कर जीवन का सफर दोबारा शुरू किया।

 

 

 

 

 

 

 

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