सियासत में कब कौन सिकंदर बन जाए कहा नहीं जा सकता? कौन सा वक्त किसका आएगा ये कोई नहीं जानता। ऐसा ही देखने को मिल रहा है उत्तर प्रदेश में चाचा-भतीजे की जोड़ी में, जहां अरसे से सियासत की तलवार मयान में जा पहुंची है।
हम यहां बात कर रहे हैं उस रसूखदार यादव परिवार की जिसने बरसों तक यूपी की गद्दी पर राज किया। चाचा-भतीजे की जोड़ी चुनावी मैदान में एक बार फिर साथ दिखाई देने जा रही है।
जो शिवपाल कभी मीडिया के माइक को झटक देते थे आज वो टीवी पर चर्चा का हिस्सा हैं, और भतीजे से हुई रार बस अब एक किस्सा बनती दिखाई दे रही है । कभी कैसे हआ करते थे शिवपाल पहले आप नीचे दिए गए वीडियो में देख लें…
महज 26 सेकंड के इस पुराने वीडियो में आप शिवपाल यादव के रसूख को अच्छे से समझ गए होंगे। ये कहना गलत नहीं होगा कि मुलायम सिंह यादव की सरकार में शिवपाल ही राज करते थे औऱ बड़े-ब़ड़े मंत्रालयों को अपनी जेब में रखते थे।
दीवाली पर भतीजे ने चाचा को दिया तोहफा
दरअसल चाचा-भतीजे के बीच खिंची सियासी तलवार अब मयान में जाने को है। इसकी वजह है सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव का वो बयान जो उन्होंने सैफई में दिया है। दिवाली पर शिवपाल यादव को इससे बड़ा तोहफा और क्या हो सकता है, क्योंकि उनके प्यारे भतीजे अखिलेश ने इस बार खुले मन से दोस्ती की दरार को खत्म करने का काम किया है।
अखिलेश यादव ने सैफई में कहा है कि सैफई पहुंचे अखिलेश यादव ने चाचा शिवपाल सिंह यादव से गठबंधन का ऐलान भी कर दिया है। चाचा शिवपाल से गठबंधन के सवाल पर अखिलेश यादव ने कहा कि समाजवादी पार्टी ने लगातार प्रयास किया है कि क्षेत्रीय दलों व छोटे दलों को साथ लेकर चले और इसमें कई दल समाजवादी पार्टी के साथ आए भी हैं। उन्होंने कहा कि सभी छोटे दलों को साथ लिया जाएगा। चाचा का भी एक दल है। इसको भी साथ लाने का काम करेंगे। चाचा का पूरा सम्मान होगा।
क्या भाजपा के डर से हुआ मिलन?
उत्तर प्रदेश चुनाव में अब ज्यादा वक्त नहीं है, चुनावी बिगुल बज चुका है। यही वजह है कि हर पार्टी में नेता इधर से उधर हो रहे हैं। भाजपा के किले पर फतेह करना किसी के लिए आसान नहीं यही वजह है कि अखिलेश ने छोटे दलों को साथ लाना का फैसला लिया है। अपने इस सियासी पैंतरे में उन्हें अब वो चाचा भी अच्छे लगने लगे जो कुछ वक्त पहले तक सियासी दुश्मन बन चुके थे।
अभी कुछ दिनों पहले ही शिवपाल ने एख बयान में कहा था कि अगर उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं को सम्मान मिलता है तो वो सपा में विलय के लिए तैयार हैं। यानि चाचा के नरम रुख के बाद अब भतीजे ने भी दरियादिली दिखाई है।
चुनाव सिर पर हैं तो गद्दी और ताज दोनों पर हर किसी की पैनी नजर है। लेकिन इस दरवाजे की चाभी यूपी की जनता के पास है। अब देखना होगा की क्या चाचा-भतीजे की ये जोड़ी इस दरवाजे को खोल पाती है या फिर भाजपा खुद को दोहराती है।