featured देश

यौन शोषण के लिए जरूरी नहीं ‘स्किन टू स्किन’ कॉन्टैक्ट, पॉक्सो पर सुप्रीम कोर्ट ने बदला हाईकोर्ट का फैसला

suprim court यौन शोषण के लिए जरूरी नहीं ‘स्किन टू स्किन’ कॉन्टैक्ट, पॉक्सो पर सुप्रीम कोर्ट ने बदला हाईकोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने आज यानि गुरुवार को POCSO एक्ट को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है। आपको बता दें कि सर्वोच्च अदालत ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस फैसले को पलट दियाए जिसमें कहा गया था कि यौन उत्पीड़न मामले में स्किन टू स्किन कॉनटैक्ट होना जरूरी है।

सुप्रीम कोर्ट ने दिए नए आदेश

सुप्रीम कोर्ट के अब नए आदेश के बाद यह साफ हो गया है कि पॉक्सो एक्ट यौन उत्पीड़न के मामले में स्किन टू स्किन कॉन्टेक्ट के बिना भी लागू होता है।

यह भी पढ़े

सुप्रीमकोर्ट: ऑनलाइन नहीं होंगीं 10वीं और 12वीं बोर्ड की परीक्षाएं

 

अदालत ने सुनाया फैसला

अदालत ने यह कहा कि शरीर के सेक्सुअल हिस्से का स्पर्श सेक्सुअल मंशा से करना पॉक्सो एक्ट के अंदर आएगा। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि यह नहीं कहा जा सकता कि बच्चे को कपड़े के ऊपर से स्पर्श करना यौन शोषण नहीं है। इस तरह की परिभाषा बच्चों को यौन शोषण से बचाने की खातिर बने पॉक्सो एक्ट को कमजोर कर देगी।

ये है पूरा मामला

आपको बता दें कि यह मामला दिसंबर 2016 का है। जब 39 वर्षीय एक आरोपी पर 12 साल की बच्ची की मां ने शिकायत दर्ज करवाई थी कि उस शख्स ने लड़की का यौन शोषण करने की कोशिश की। बता दें कि शख्स नाबालिग को कुछ खिलाकर अपने घर ले गया था। इस मामले में हाईकोर्ट ने कहा था कि ‘त्वचा से त्वचा का संपर्क’ नहीं होने पर यौन उत्पीड़न नहीं कहा जा सकता है। ऐसे में आरोपी को POCSO अधिनियम से बरी कर दिया गया था।

दोषी को 3 साल की सजा

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट से बरी हुए आरोपी को दोषी पाया। आरोपी को पोक्सो एक्ट के तहत 3 साल की सजा का ऐलान किया गया। कोर्ट ने अपने फैसले में पॉक्सो एक्ट को परिभाषित करते हुए कहा कि सेक्सुअल मंशा के तहत कपड़ों के साथ भी छूना पॉक्सो एक्ट के तहत आता है। इसमें ‘टच’ शब्द का इस्तेमाल प्राइवेट पार्ट के लिए किया गया है। जबकि फिजिकल कॉन्ट्रेक्ट का मतलब ये नहीं है कि इसके लिए स्किन टू स्किन कॉन्ट्रेक्ट हो।

यह इतिहास में दूसरा मौका है जब देश के एटॉर्नी जनरल ने खुद हाईकोर्ट के किसी फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की हो। इससे पहले 1985 में तत्कालीन एटॉर्नी जनरल के परासरन की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने एक दोषी को सार्वजनिक रूप से फांसी देने पर रोक लगाई थी। अपनी बहू को जला कर मार देने वाली लछमा देवी नाम की महिला को राजस्थान हाई कोर्ट ने जयपुर में सार्वजनिक रूप से फांसी देने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि न तो जेल मैनुअल में इसकी व्यवस्था है, न ही इस तरह की फांसी संविधान सम्मत है।

 

Related posts

श्रीदेवी की मौत पर स्वामी ने उठाए सवाल, कहा- श्रीदेवी की हत्या की आशंका

Vijay Shrer

तीन तलाक के खिलाफ मुस्लिम महिलाओं का अभियान

bharatkhabar

गौरी खान ने शेयर की पेंटिंग लोगों ने कहा शराब पी रखी है क्या?

mohini kushwaha