भारतीय क्रिकेट में इन दिनों भारी उथुल पुथल मची हुई है, किसी को समझ नहीं आ रहा है कि आखिरकार ये सब क्या हो रहा है। मौजूदा घटनाक्रम की अगर बात करें तो विराट कोहली और सौरव गांगुली आमने-सामने आ चुके हैं।
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भारतीय टेस्ट कप्तान और भारतीय क्रिकेट के मुखिया के बीच तलवारें खिंच चुकी हैं। विराट ने तो एक तरह से गांगुली को झूठा ही करार दे दिया।
मामला सुलझने के बजाए और उलझा
पहेली एक तरफ सुलझती है तो दूसरी तरफ उलझ जाती है। 15 दिसंबर को दोपहर 1 बजे पूरी दुनिया को प्रेस कॉन्फ्रेंस का इंतजार था। विराट सामने तो आए साउथ अफ्रीकी दौरे पर वनडे सीरीज खेलने से लेकर लेकिन इस दौरान उन्होनें रोहित के साथ अपने अनबन की खबरों पर भी विराम लगा दिया। मगर टी-20 की कप्तानी पर जो बोल गए उसने भारतीय क्रिकेट को दो फाड़ कर दिया है। कहानी सुलझने से ज्यादा उलझ चुकी है।
वक्त का पहिया फिर से घूमा
वक्त का पहिया फिर से घूम चुका है। आज जिस जगह विराट खड़े हैं। ठीक 16 साल और तीन माह पहले गांगुली की भी यही हालत थी। तब सौरव टीम इंडिया के कप्तान हुआ करते थे। घटिया प्रदर्शन ने उन्हें टीम से बाहर निकलवा दिया था। कोच ग्रेग चैपल ने तीखे ई-मेल लिखते हुए बीसीसीआई से शिकायत की थी। बोला था कि सौरव कप्तानी के लायक नहीं। उनसे टीम को नुकसान हो रहा है। कैप्टेंसी छीनकर राहुल द्रविड़ को दे दी गई थी। ठीक वैसे ही जैसे आज विराट की जगह रोहित ने ले ली है।
भारतीय बोर्ड ने दिया था गांगुली का साथ
संघर्ष और मुश्किल समय में उस वक्त गांगुली ने बीसीसीआई को अपने साथ खड़ा पाया। तब बोर्ड के अध्यक्ष रणबीर सिंह महेंद्र ने संकट में गांगुली के समर्थन में मीडिया को एक बयान जारी किया और कहा कि कोच और क्रिकेटर को प्रोफेशनल रिलेशन कायम रखना चाहिए। बोर्ड के समर्थन और जबरदस्त कोशिशों की वजह से 10 महीने बाद गांगुली ने भारतीय टीम में वापसी की थी। कोहली के साथ ऐसा नहीं है। वह खराब फॉर्म, नहीं बल्कि एक फोन कॉल पर कप्तानी से हटाए जाने की वजह से शर्मिंदा होंगे।
कोहली को भी बीसीसीआई की जरूरत
बीसीसीआई और कोहली के बीच कप्तानी में बदलाव को लेकर कोई चर्चा नहीं हुई थी। चैपल और गांगुली मामले को देखते हुए यह कहीं से भी ऑफ द फील्ड अच्छा बिहेवियर नहीं माना जा सकता है। पूरे मामले को करीब से समझने वालों का कहना है- फिलहाल कोहली को बीसीसीआई की जरूरत है।
बोर्ड को जरूरत है कोहली की शर्मिंदगी, गुस्से और हताशा को दूर करे, जिससे वह गुजर रहे होंगे। अब सवाल उठता है कि क्या गांगुली (बीसीसीआई अध्यक्ष) को भी अपने जूनियर क्रिकेटर का उसी तरह साथ नहीं देना चाहिए, जिस तरह कभी बोर्ड उनके साथ खड़ा था।
अब देखना ये होगा कि कब तक इस मामले पर और कुछ नई डब्लेपमेंट होती है। क्योंकि इस तरह के मौहाल से खिलाडियों की परफारमेंस पर भी फर्क पड़ सकता है।