टीम इंडिया ने हॉकी के नए फॉर्मेट का पहला मैच जीत लिया है। उसने शनिवार को 5 ए-साइड मैच में स्विट्जरलैंड को 4-3 से हराया। पाकिस्तान से मैच 2-2 से ड्रॉ रहा।
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पहली बार इंटरनेशनल लेवल पर 5 ए-साइड हॉकी टूर्नामेंट खेला जा रहा है। यह प्रतियोगिता इस फॉर्मेट के माध्यम से हॉकी को लोकप्रिय बनाने की मुहिम का हिस्सा है। ताकि दर्शकों को मैदान की तरफ खींचा जा सके।
FIH ने सबसे पहले 2013 में हॉकी का सबसे छोटा फॉर्मेट लागू किया था। लेकिन, यह तब 6 ए-साइड हॉकी होता था और इसमें जूनियर और यूथ टीमें ही हिस्सा लेती थीं। 2014 और 2018 के यूथ ओलिंपिक गेम्स के मुकाबले भी आयोजित किए गए थे। अब इसे 5 ए-साइड कर दिया गया है और पहली बार सीनियर टीमें खेल रही हैं। ये मैच इनडोर टर्फ में खेले जा रहे हैं।
ये है हॉकी का नया फॉर्मेट
टर्फ का साइज : इस फॉर्मेट की हॉकी टर्फ नार्मल हॉकी टर्फ से आधी होती है। हालांकि यह टूर्नामेंट पर भी डिपेंड करता है। यह ज्यादा से ज्यादा 55 मी. x 42 मी. होगा और कम से कम 40 मी. x 28 मी. होगा। जबकि नार्मल साइज 91 मी. x 55 मी.होता है।
गोल पोस्ट : 3.66 मी. चौड़ा और 2.14 मी. ऊंचा रहेगा। जबकि नार्मल साइज 6 मी. चौड़ा और 2.14 मी. ऊंचा होता है।
डी नहीं होती: कोई डी या अर्धवृत्त नहीं होता है। बैकलाइन के समानांतर एक मध्यरेखा से कोर्ट दो हिस्सों में बंटा होता है। दो क्वार्टर लाइन हर हॉफ को दो बराबर हिस्सों में बांटती है।
कहीं से भी गोल: इस फॉर्मेट में खिलाड़ी मैदान में कहीं से भी गोल कर सकता है। जबकि अभी हॉकी में डी के भीतर जाकर गोल करना जरूरी है।
बिना गोलकीपर के भी मैच संभव: हर टीम में एक समय मैदान पर पांच खिलाड़ी होते हैं, जिसमें गोलकीपर शामिल है। खिलाड़ी कम होने की स्थिति में बिना गोलकीपर के भी मैच खेला जा सकता है।
पेनाल्टी कॉर्नर नहीं होता: नए फॉर्मेट में पेनाल्टी कार्नर नहीं होता। फाउल होने पर शूटआउट मांगा जा सकता है। रेफरी से मांग स्वीकार होने पर विरोधी गोलकीपर के आमने-सामने शूटआउट का मौका मिलेगा।
20 मिनट का होता है मैच
सबसे छोटे फॉर्मेट का एक मैच 20 मिनट का होगा। इसे दो हाफ में बांटा जाएगा। अभी मैच 60 मिनट का होता है। जिसमें 2 हाफ और चार क्वार्टर होते हैं।
साइड लाइन की जगह साइड बोर्ड होते हैं। जबकि मेन हॉकी में साइड लाइन होती है। जब गेंद साइडलाइन को पार कर जाती है तो उसके लिए विपक्षी टीम को फ्री हिट मिलती है, लेकिन इस फॉर्मेट में अगर गेंद बाउंड्री बोर्ड से टकरा जाती है तो उसे फाउल नहीं माना जाएगा। गेंद टकराकर वापस आएगी और उसे जो टीम कब्जे में ले लेगी, वहां से खेल शुरू होगा। फाउल तभी माना जाएगा, जब गेंद बोर्ड को पार कर जाए।